बिहार में इन दिनों जातिगत जनगणना को लेकर सियासत तेज हो गई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट कर केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना की मांग पर विचार करने की अपील की तो विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सीएम पर तंज करने में देर नहीं लगाई. अब पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी इसे लेकर बयान दिया है.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने गया के गोदावरी स्थित अपने आवास पर जातीय आधार पर जनगणना को लेकर कहा कि जिसकी जितनी जनसंख्या रहेगी, उसे उतनी हिस्सेदारी मिलेगी. संविधान में ही भीम राव आंबेडकर ने बताया है कि जो आरक्षण का आधार दिया है, वो यही है. जब हमारी जनसंख्या पर हिस्सा मिलना है तो जातीय जनगणना कराना ही चाहिए. जातिगत आधार पर जनगणना नहीं कराने का मतलब है कि जिसकी जनसंख्या कम है, वे हिस्सेदारी ज्यादा ले रहे हैं और जिसकी जनसंख्या ज्यादा है, उसकी हिस्सेदारी कम है.
पूर्व सीएम ने कहा कि ऐसी परिस्थति में किस जाति के कितने लोग हैं, उनकी आबादी में कितने प्रतिशत हिस्सेदारी है और उन्हें कितनी भागीदारी मिलनी चाहिए. ये सब सरकार तभी तो तय कर पाएगी जब इनके आंकड़े उपलब्ध हों. उन्होंने कहा कि हर जाति की जनगणना जातीय आधार पर होनी चाहिए, सबकी जातीय जनगणना होनी चाहिए. सिर्फ एससी और एसटी की ही नहीं होनी चाहिए.
फोन टैपिंग की हो उच्च स्तरीय जांच
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने फोन टैपिंग को लेकर कहा कि अगर टैपिंग हो रही है तो इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए. एक सवाल के जवाब में मांझी ने कहा कि पार्टी की बैठक में निर्णय लेंगे कि यूपी में हम चुनाव लड़ेंगे या नहीं. उन्होंने कहा कि कोरोना का समय है इसलिए अभी जनता को जागरूक करने में जुटे हैं. अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार नहीं कर रहे.
जीतनराम मांझी ने कहा कि 26 जुलाई से विधानसभा का सत्र शुरू होगा. ऐसे में हमारा एजेंडा केंद्र सरकार से संबंधित है. डिग्रीधारकों को 40 साल की उम्र तक बेरोजगारी भत्ता दिया जाए और भूमिहीनों को पांच डिस्मिल जमीन दी जाए. उन्होंने यह मांग भी किया कि नारी सशक्तिकरण के लिहाज से व्यावसायिक शिक्षण में महिलाओं को फ्री शिक्षा भी हमारे एजेंडे में शामिल है.
(रिपोर्टः पंकज कुमार)