'जज साहिबा, मेरी मां गंदी है, उसे फांसी की सजा दीजिए.' ये शब्द एक बार नहीं बल्कि कई बार कोर्ट के उस कमरे में सुनाई दिए, जहां न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठी एक जज साहिबा एक मामले में फैसला सुनाने वाली थी. कोर्ट से ये गुहार लगा रही थी एक बेटी वो भी किसी और के लिए नहीं बल्कि अपनी सगी मां के लिए.
ऐसा वाक्या शायद ही आपने पहले कभी सुना होगा. लेकिन ये हकीकत है बिहार के भागलपुर की जहां एक बेटी ने अपनी सगी मां के लिए कोर्ट से उसकी रिहाई के लिए नहीं बल्कि उसके लिए कठोर से कठोर सजा फांसी की मांग कर रही थी. जज साहिबा ने एक बेटी के दर्द को महसूस करते हुए सजा तो सुनाई लेकिन फांसी की नहीं बल्कि उम्र कैद की. कोर्ट से फांसी के सजा की गुहार लगा रही एक बेटी जज साहिबा के इस फैसले से संतुष्ट नहीं दिखी और वो इस फैसले के विरोध में ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात करती रही.
प्यार के लिए बच्चों की परवाह तक नहीं की
दरअसल ये कहानी है एक ऐसे परिवार की जिसमें एक महिला ने अपने प्रेमी के सहयोग से अपने पति की हत्या कर दी . महिला बेबी देवी और उसका पति रामानंद राम भागलपुर में अपने दो बच्चे नीलू और रितेश के साथ किराये के मकान में रहते थे. बेबी देवी और रामानंद राम भागलपुर के ही एक निजी स्कूल में काम कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे. काम करने के दौरान ही बेबी की मुलाकात स्कूल में ही ड्राइवर की नौकरी कर रहे मणिकांत यादव से हुई. दोनों में पहले बातचीत और फिर धीरे-धीरे मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हुआ. दोनों में फिर प्यार भी हुआ. दो बच्चे की मां अपने पति को धोखे में रखकर एक ड्राइवर के प्यार में इस तरह पागल हुई कि उसे अपने परिवार और बच्चों तक की परवाह नहीं रही.
रोड़ा बन रहे पति की हत्या की
प्यार अपने परवान पर था. अब दोनों ने मिलकर प्यार के रास्ते में रोड़ा बन रहे रामानंद राम को ही हटाने की योजना बना डाली. फिर योजना के तहत 15 फरवरी 2012 को बेबी और मणिकांत यादव ने रामानंद राम की हत्या कर उसके लाश को एक कुएं में फेंक दी. 23 फरवरी 2012 को रामानंद की लाश कुएं से बरामद की गई. लाश मिलने के बाद मृतक रामानंद के पिता कुमुद राम, बेटी नीलू और बेटे रितेश के बयान के आधार पर बेबी देवी और मणिकांत यादव को आरोपी बनाते हुए मुकदमा दर्ज कराया गया. पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर बेबी ने अपना जुर्म कबूल भी किया.