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कोरोना काल में बाढ़ ने कई राज्यों की मुसीबत को बढ़ा दिया है. किसी तरह कोरोना पर काबू पाने के बाद अब फिर लोग परेशान हैं. फिर वे दर-दर भटकने को मजबूर हैं. कहीं खाना मिलना चुनौती हो रहा है तो कहीं पर रहने के लिए कोई जगह नहीं बची है. बाढ़ ने ऐसी तबाही मचा दी है कि सभी सिर्फ दहशत में रहने को मजबूर हैं. बिहार के कई गांव भी बाढ़ प्रकोप के आगे घुटने टेक चुके हैं. स्थिति विक्राल दिखाई पड़ रही है, लेकिन मदद कहीं नहीं हो पा रही.
बाढ़ के बाद गांवों में तबाही का मंजर
गोपालगंज प्रखण्ड के खाप मकसूदपुर गांव से जो तस्वीरें सामने आई हैं, वो हैरान कर देने वाली हैं. बाढ़ ने ऐसी तबाही मचा दी है कि अब कई लोग बेघर हो गए हैं. किसी ने बांस के सहारे खुद के लिए छत का इंतजाम किया है तो कोई चौकी पर खाना बनाने को मजबूर है. अब हर किसी का जुगाड़ अलग है लेकिन बाढ़ से होनी वाली तबाही का मंजर एक समान है. हालात कितने खराब हैं, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि अब कई गांवों का शहरों से संपर्क टूट गया है. ऐसे में इलाज के लिए भी अस्पताल जाना मुमकिन नहीं है.
लोग परेशान, प्रशासन उदासीन
बाढ़ पीड़ित महाबीर प्रसाद ने भी अपना यही दर्द बयां किया है. उन्हें उनके पोते का इलाज करवाना है. लेकिन क्योंकि अब बाढ़ आ गई है और सभी तरफ जलभराव है, ऐसे में कोई एंबुलेंस या दूसरी स्वास्थ्य सेवा उन तक नहीं पहुंच पा रही है. इसका नतीजा ये हुआ है कि अब वे एक खाट पर अपने पोते को लेटाकर इलाज के लिए ले जा रहे हैं. वे बता रहे हैं कि उनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आया है. ना गांव के प्रधान ने कोई सहायता की है और ना ही प्रशासन से मदद का आश्वासन मिल रहा है.
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पहले भी आई है बाढ़
वैसे हैरानी की बात ये है कि मकसूदपुर गांव पहले भी कई बार बाढ़ की चपेट में आया है. बिहार के कुछ ऐसे गांव हैं जहां पर साल में दो तीन बार तो बाढ़ आ ही जाती है. अब इसकी वजह या तो भारी बारिश रहती है या फिर ज्यादा मात्रा में डैम से छूटने वाला पानी. वजह कोई भी क्यों ना हो, ये गांव हमेशा बाढ़ के साय में रहने को मजबूर दिखते हैं. इस साल भी कहानी ने खुद को दोहराया है. प्रशासन की तरफ से पुख्ता इंतजाम नहीं हुए और उसका नतीजा ये गांव वाले भुगत रहे हैं.
सुनील तिवारी की रिपोर्ट