नरेंद्र मोदी की ताजपोशी को आडवाणी की नाराजगी से उतना खतरा नहीं हुआ, जितना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सख्त स्टैंड से. नीतीश ने पहले भी बीजेपी को साफ किया था कि उनकी पार्टी जेडीयू को सेकुलर चेहरा ही स्वीकार होगा. इसी वजह का हवाला देकर पिछले दिनों बिहार में जेडीयू ने बीजेपी से गठबंधन भी तोड़ लिया. दोनों तरफ से इसके बाद तीर चलने लगे. आज तक संवाददाता सुजीत कुमार झा ने की नीतीश कुमार से खास बातचीत और जाना उनकी राजनीति का मिजाज...
सवालः आपने 17 सालों का गठबंधन तोड़ दिया. लोग कह रहे हैं कि ये फैसला जल्दबाजी और दबाव में लिया गया.
जवाबः हम लोगों ने जल्दबाजी में फैसला नहीं लिया है. जो हालात थे, उसके मद्देनजर हम लोगों को एक राजनैतिक दल के तौर पर अपना निर्णय लेना था. हम लोगों के फैसले को समझने के लिए इस पृष्ठभूमि को को याद करना जरूरी है कि हमारा बीजेपी के साथ तालमेल क्यों हुआ, किन हालातों में हुआ. इसकी जरूरत पड़ी बिहार में विरोधी वोटों का बिखराव रोकने के लिए. 1995 में 27 फीसदी मत पाकर राज्य में सरकार बनी. बाकी वोट बिखरे थे. इन्हें एकजुट करने के लिए एक रणनीतिक समझ हुई हमारी बीजेपी के साथ. एनडीए का गठन तो 1999 में हुआ. केंद्र सरकार में हम एक साल पहेल 1998 में शामिल हो गए थे. मगर ऐसा तब हुआ, जब हमें आश्वासन मिला कि बीजेपी विवादित मुद्दों पर आगे नहीं बढ़ेंगी. केंद्र में अटल के नेतृत्व में जो सरकार चली, उनके काम का तरीका और गठबंधन का विस्तार जिस ढंग और कार्यशैली से हुआ, उसे देखिए. विवादों से दूर रहा गया. सबको साथ लेकर चलने की कोशिश हुई. यही आधार था हमारे गठबंधन का.
सवालः बीजेपी कह रही है कि उसके गठबंधन का अभी भी यही आधार है...
जवाबः नहीं, अब हमें हालात दिख गए कि विवादित मुद्दों की कौन कहे, एक नया दौर आ गया. जिसके प्रवाह में न सिद्धांत है न कार्यक्रम. हमने एक साल पहेल ही कह दिया था कि क्या होना चाहिए. ये गठबंधन का दौर है, कोई मुगालते में न रहे कि अकेले बहुमत पा लेगा. ये देश विविधताओं से भरा है. हमने जब देखा कि लोगों को अपनी ताकत के बारे में भ्रम हो गया है और इसे लेकर वो एक तरह से बुलडोज कर रहे हैं. तो ये फैसला किया. बिहार में तब तक ठीक ठाक चला जब तब गठबंधन का आधार सही सलामत था. इसमें जब बाहरी फैक्टर आने लगे, तो मुश्किल हुई.
यहां के लोग शुरू से ठीक रास्ते पर थे. लेकिन बाद में उनकी पार्टी में धीमे धीमे दबाव पैदा हो गया, इसमें वे भी आ गए. इसलिए आपने देखा कि 19 जून को जब विधानसभा में विश्वास मत पर चर्चा हुई तो जो नारे लगे...वे हमारे स्टैंड को जस्टीफाई करते हैं. हमने कोई जल्दबाजी नहीं की, पूरी तरह सोच समझकर फैसला लिया गया. अगर हम ये कदम नहीं बढ़ाते, तो ये अपने आप को धोखा देना होता.
सवालः बीजेपी बार बार कह रही है कि अभी तो पीएम के कैंडिडेट का ऐलान ही नहीं हुआ, जो फैसले हुए वे संगठन के अंदरूनी मामले हैं. ऐसे में जेडीयू की हड़बड़ाहट क्यों?
जवाबः हमें दुख इस बात का है कि यहां जो गठबंधन था, वो जिन मुद्दों पर था, उसे पीछे छोड़कर आप दूसरी बातें थोपने लगे. यहां जो मर्यादा बनी है, उसका उल्लघंन शुरू हुआ. खुले आम यहां के लोग बयान देने लगे. यहां गठबंधन की जो बुनियादी अवधाराणा थी, उसके ठीक प्रतिकूल था यह सब. हमने जब बिहार के काम की प्रशंसा की, तो लोगों को लगा कि उसमें भी शिकायत कर रहे हैं. ये काम तो जब हम साथ थे, तभी किया था न, तो वो आलोचना कैसे लगने लगा. अटल के काम की प्रशंसा की, तब भी ऐसा हुआ. जब आपस में बात इतनी बिगड़ जाए, तो साथ मुमकिन नहीं.
सवालः पीएम ने आपको सेकुलर बताया. विश्वास मत पर कांग्रेस साथ आई. क्या यह पार्टी आपकी नई साझेदार बनेगी?
जवाबः अभी कोई बात नहीं है. विधानसभा में विश्वास मत के पक्ष में सीपीआई ने भी समर्थन किया. उन्होंने सबसे पहले ऐलान किया कि जिन मुद्दों पर टूट हुई है, उसके आधार पर हम सरकार के विश्वास मत का समर्थन करेंगे. बाद में कांग्रेस के समर्थन का भी ऐलान हुआ. उन्होंने स्वयं फैसला किया. लेकिन उन्होंने सपोर्ट किया, तो हमने धन्यवाद किया.जिन निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दिया, उन छह में से पांच पहले ही एनडीए का सपोर्ट करते थे. हमने सबको धन्यवाद किया. अभी की तारीख में किसी के बारे में, गठबंधन के बारे में या किसी सहयोग के बारे में कोई गौर नहीं किया. जब ऐसा किया ही नहीं तो क्या उत्तर हो.
सवालः मगर देश की राजनीति में आज की तारीख में दो ही धाराएं हैं, किसी एक को तो पकड़ना होगा?
जवाबः देखिए, अभी का दौर गठबंधन का दौर है. कोई भ्रम में न रहे कि अकेले की सरकार बन सकती है. सरकार बनाने के लिए 272 चाहिए, जो जीतकर आएंगे. साथ लड़ने वाले या नहीं भी लड़कर बाद में साथ देने वालों के जरिए 272 की संख्या पूरी होगी, तब सरकार बनेगी, लोग बेकार का भ्रम पाले हैं.
2004 में याद है आपको, बीजेपी के वैंकेया नायडू कहते थे कि अकेले के दम पर 350 जीतेंगे, फिर भी साथियों को साथ रखेंगे. लगता था कि इतना कितना सर्वे करवाए हैं. अजीब लगता था. अभी भी सर्वे हो रहे हैं कई. मगर ये विश्वसनीय नीहं हैं. सब पीआर एक्सरसाइज है, प्रचार तंत्र है. देखते नहीं है सोशल मीडिया कैसा है. एक ही आदमी का कितना अकाउंट है कि अता पता तक नहीं.
सवालः यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश खुद पीएम बनना चाहते हैं, इसीलिए वक्त रहते अलग हो गए...
जवाबः हम अनेक बार कह चुके हैं कि मेरी पीएम पद की कोई ख्वाहिश नहीं है. रोज-रोज ये बात उठे औऱ कहना पड़े, हमने कभी भी इस बारे में नहीं सोचा. हम चाहते हैं कि पूरे देश का विकास हो, राजनीति समावेशी हो. सबकी जरूरत के मुताबिक योजना बने. विकास की रणनीति में गुणात्मक परिवर्तन पैराडाइम शिफ्ट होना चाहिए. पिछड़े राज्यों का विकास हो, तो देश का विकास तेजी से हो सकेगा. आज इसमें उतार-चढ़ाव है क्योंकि चंद राज्यों के विकास पर देश का विकास निर्भर है. विकास का मतलब सिर्फ कॉरपोरेट घराने का अभ्युदय नहीं होता, विकास का मतलब निचले पायदान का अभ्युदय है
सवालः तो आपके हिसाब से 2014 में किसकी सरकार बनने की संभावना है?
जवाबः जो हवा पानी बांधा जा रहा है, वो सब कुछ नहीं होने वाला. मैं आपको स्प्ष्ट बता दूं. देश को समझने में भूल कर रहे हैं वे, हवा बांधने से, सोशल साइट से, मीडिया के इस्तेमाल से, सर्वे से कुछ नहीं होने वाला. ये सबको मालूम है. हो सकता है कि कुछ एक शहरी क्षेत्रों में असर हो जाए. मगर ये देश विविधताओं से भरा है. ये गरीबों की ताकत नहीं जानते. भारी चूक कर रहे हैं सब.