आईएएस अधिकारी अमित खरे 1996 में उस समय बिहार और अब झारखंड में पड़ने वाले पश्चिमी सिंहभूम जिले के डिप्टी कमिश्नर थे. उस वक्त उनकी ही जांच में सबसे पहले चारा घोटाले का खुलासा हुआ था.
इसके बाद लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने लगातार उनको खराब पोस्टिंग दी और एक बार तो पिता की बीमारी की छुट्टी भी कैंसिल कर दी. मजबूरन अमित को वापस ड्यूटी पर लौटना पड़ा और तभी उनके पिता जी का देहांत हो गया.
सोमवार को चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव के दोषी ठहराए जाने पर फिलहाल मानव संसाधन विकास मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेट्री 45 साल के अमित खरे ने राहत और संतोष की सांस ली. मजाक में उन्होंने यह भी कहा कि मुझे तो लगता था कि रिटायरमेंट के बाद भी इस तरह की खबर मिलेगी.
कैसे हुआ था चारा घोटाले का खुलासा
खरे ने एक इंग्लिश न्यूजपेपर से बात करते हुए बताया कि जब उन्हें पश्चिमी सिंहभूम जिले का डीसी बनाया गया, तो उसके कुछ ही समय बाद बिहार के वित्त विभाग की तरफ से एक अलर्ट आया. इसमें पशुपालन और मत्स्य विभाग की तरफ से हर राज्य में की जाने वाली धननिकासी पर नजर रखने को कहा गया. 27 जनवरी 1996 को खरे ने उनके जिले में पड़ने वाले चाईबासा पशुपालन केंद्र की संदिग्ध आर्थिक गतिविधियों पर जवाब मांगा तो हड़कंप मच गया.
बकौल खरे नवंबर और दिसंबर के महीने में विभाग की तरफ से इस केंद्र के लिए 10 और 9 करोड़ रुपये की निकासी दिखाई गई थी.मैंने सोचा कि मैं पशुपालन अधिकारी को फोन कर इस बारे में ताकीद करूं. मगर जैसे ही फोन किया गया, मुझे पता चला कि विभाग के सारे अधिकारी दफ्तर छोड़कर भाग खड़े हुए हैं.
अमित खरे ने बताया कि जब हमने विभाग के दफ्तर का दौरा किया, तो देखा कि वहां फर्जी बिलों का ढेर लगा है. कुछ लाख कैश इधर उधर बिखरा पड़ा है और एक भी अधिकारी दफ्तर में मौजूद नहीं है.जब पुलिस अलर्ट भेजा गया, तो पता चला कि विभाग के दूसरे दफ्तरों का भी यही हाल हो रखा है. नतीजतन, सभी दफ्तर सील कर दिए गए और औपचारिक शिकायत दर्ज कर ली गई.खरे ने राज्य सरकार को इस बारे में सूचित किया, मगर लालू प्रसाद यादव की सरकार इस पर आंख मूंदे रही.
फिर शुरू हुआ अमित खरे को सजा देने का दौर
चारा घोटाले का खुलासा करने के कुछ ही महीनों के भीतर उन्हें बीमारू हालत और बंदी की कगार पर पड़े बिहार स्टेट लेदर कॉरपोरेशन में डंप कर दिया गया. कॉरपोरेशन की हालत ये थी कि पिछले छह महीने से उसके कर्मचारियों को वेतन का भुगतान भी नहीं हो पाया था.फिर कुछ समय बाद खरे को बिहार कंबाइंड स्टेट एग्जामिनेशन बोर्ड का कंट्रोलर बनाकर भेज दिया गया. उस समय बोर्ड सिर्फ कागजों पर ही था.खरे ने इसे विधिवत स्थापित किया और अब यह सफलतापूर्वक चल रहा है.
खरे के लिए सबसे मुश्किल दौर आया 1997 में, जब उनके पिता जी बीमार चल रहे थे.खरे ने बताया कि मैंने पिता जी को अस्पताल में दिखवाने के लिए छुट्टी ली. मगर मेरे घर पहुंचते ही छुट्टी खारिज कर दी गई.मुझे वापस पटना तलब कर लिया गया.इसी बीच मेरे पिता जी का निधन हो गया.
खरे की मुश्किलें तब जाकर कुछ कम हुईं, जब अलग राज्य बनने के बाद वह झारखंड कैडर में चले गए. चारा घोटाले की जांच के दौरान उन पर लगातार दबाव पड़ा, मगर वह झुके नहीं.खरे कहते हैं कि अब मैं युवा आईएएस अधिकारियों से पूरी जिम्मेदारी से यह कह सकता हूं कि अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करें और किसी भी गलत सत्ता के आगे न झुकें. इसी तंत्र में उनके बचाव के और सही काम के उपाय मौजूद हैं.