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इंडिया टुडे SoS Bihar से उठी आवाज- सूबे को बदलना है तो सोच बदलनी होगी

बिहार के इतिहास पर सीनियर अफसर संजय कुमार ने कहा, 'जब नालंदा की बात होती है तो कहा जाता है कि इसे बख्तियार खिलजी ने तबाह कर दिया. इसके बाद 900 सालों में हमने क्या किया? एक बिहारी समाज के रूप में हमें सोचना होगा कि हमारे यहां इतनी अनुशासनहीनता क्यों है?'

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फोटो- आज तक
फोटो- आज तक

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इंडिया टुडे स्टेट ऑफ स्टेट्स के पहले सत्र 'बिहार के आर्थिक बदलाव की कहानी और स्थिरता के उपाय' में राज्य के औद्योगिक विकास, कृषि और शिक्षा जैसे अहम मुद्दों को लेकर मंथन हुआ. इंडिया टुडे SoS Bihar के इस अहम सत्र में राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार, इतिहासकार रत्नेश्वर मिश्रा और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और अर्थशास्त्री पीपी घोष ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन इंडिया टुडे के रिसर्च एडिटर अजीत कुमार झा ने किया.

सभी गांवों में पहुंची बिजली

सत्र के दौरान सीनियर अफसर संजय कुमार ने कहा कि बिहार ने बीते कुछ सालों में बेहद निचले स्तर से आर्थिक तरक्की पकड़ी है. मौजूद समय में बिहार का विकास बेहतर गवर्नेंस और सरकार के निवेश से हो रहा है. उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का विकास हो रहा है, लेकिन किसी राज्य में विकास की क्या रफ्तार है वह निर्णायक रहेगा. उन्होंने कहा कि आज बिहार को गर्व है कि सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का काम पूरा हो चुका है. उनके मुताबिक बिहार ने विकास की रफ्तार एक दशक में पकड़ी है.

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बिहारी के नाम पर बंद हो उलाहना

संजय कुमार ने कहा कि बिहारी के नाम पर देश में हो रही उलाहना को बंद किए जाने की जरूरत है. संजय ने बताया कि किस तरह से अन्य राज्यों में अधिकारियों की मुलाकात में भी बिहार एक मुद्दा है और लोग मानते हैं कि बिहार में कुछ हो ही नहीं रहा है. लिहाजा, बिहार के ब्रांड पर अब सुधार होना अहम है.

राज्य में सिर्फ 12 % शहरीकरण

संजय कुमार ने कहा कि राज्य में आधी ग्रोथ टेलिकॉम, सरकारी कार्यक्रमों और होटल इंडस्ट्री वगैरह से आ रही है. राज्य में महज 12 फीसदी शहरीकरण है और 88 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में रह रहे हैं. इसके साथ ही बिहार पूरे देश में अधिक जनसंख्या घनत्व वाले राज्यों में से एक है. प्रति व्यक्ति लैंड को देखें तो राज्य के सामने चुनौती है कि वह राज्य में जमीन का इस्तेमाल शहरीकरण के लिए करे अथवा उसे ग्रामीण रहने दे जिससे कम से कम लोग अपनी खेती की जरूरतों को पूरा कर सकें.

जमीन कम, आबादी ज्यादा

संजय कुमार के मुताबिक बिहार में प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता 900 वर्ग मीटर है. अगर इसमें नदी, नाले, पठार, पहाड़, जंगल वगैरह निकाल दिया जाए तो यह आंकड़ा करीब 500-600 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति आता है. उन्होंने कहा कि यहां आबादी बहुत ज्यादा है और शहरीकरण की गुंजाइश अब ज्यादा नहीं है, ग्रामीण इलाकों में जमीन घट रही है और दबाव बढ़ रहा है. ऐसी स्थिति में राज्य के सामने औद्योगिक विकास भी बड़ी चुनौती है.

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औद्योगिक विकास के बिना शहरीकरण संभव है?

इस पर संजय कुमार ने कहा कि यह पुरानी बहस है. आप देखें कि देश की जीडीपी में शहरी क्षेत्र का योगदान 2/3 और ग्रामीण अंचल के लिए यह आंकड़ा 1/3 है. आप आईटी विकास की बात कर रहे हैं. बेंगलुरु जैसे शहरों में आईटी सेक्टर के विकास से पहले भारत सरकार के कई वैज्ञानिक संस्थान वहां शुरू हो चुके थे. ऐसे में वहां ऐसे पढ़े-लिखे पेशेवरों की पीढ़ी तैयार हुई, जिसने आईटी क्रांति का फायदा उठाया. हम लोग कभी- कभी चर्चा करते थे कि 1950 के दशक में रांची और बेंगलुरु तकरीबन एक जैसे थे. दोनों की समुद्र तल से ऊंचाई, मौसम, तकनीकी संस्थान वगैरह में काफी समानता थी. लेकिन बाद के वर्षों में रांची पिछड़ता चला गया.

2005 के बाद नहीं हुआ ज्यादा शहरीकरण

शहरीकरण को लेकर पूछे गए सवाल पर प्रोफेसर पीपी घोष ने कहा कि बिहार में  2005 से शहरीकरण नहीं बढ़ रहा है. उन्होंने इस बाबत पश्चिम बंगाल का अनुभव बताया और कहा कि वे जिस कस्बे में पढ़ते थे, वहां की आबादी 15 सालों में कई गुना बढ़ गई. गांवों के संपन्न लोगों को शहरों की सुविधाएं खींचती हैं. लेकिन बिहार में ऐसा नहीं  हो रहा है. शहरों में न्यूनतम सुविधाएं होनी चाहिए. अच्छे स्कूल, अस्पताल और परिवहन जैसी सुविधाएं होनी चाहिए. घोष ने कहा कि वे बिहार सरकार को ऐसा करने का सुझाव देते हैं. उनके मुताबिक इससे शहरीकरण बढ़ेगा.

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शिक्षा पर हो जोर

वरिष्ठ अधिकारी संजय कुमार ने कहा कि विकास के लिए सबसे पहले शिक्षा पर जोर देना होगा. बिहार में शिक्षा पर काम करना होगा. राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों का विकास करना होगा. सेहत के मामलों में हम बहुत भाग्यशाली हैं. हम सेहत पर राष्ट्रीय औसत की तुलना में 1/3 खर्च कर रहे हैं, लेकिन हमारी जीवन प्रत्याशा राष्ट्रीय औसत के बराबर है. एक और बात, समाज में बराबरी जरूरी  है. बिहार में सामाजिक और आर्थिक तौर पर असमानता है. बिहार सरकार जेंडर इक्वॉलिटी पर काम कर रही है. मांओं की शिक्षा बहुत जरूरी है, इससे पिछड़ापन दूर होता है और जनसंख्या भी नियंत्रित होती है.

बिहार में शिक्षा का बेहतर माहौल कैसे बने?

इस पर पूछे गए सवाल के जवाब में प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्रा ने कहा- मैंने नेतरहाट स्कूल से शिक्षा पाई है. हम लोग मुख्यमंत्री के पास गए और कहा कि एक नेतरहाट से काम नहीं चलेगा. उन्होंने दूसरी जगह वैसा ही स्कूल बनाने का निर्देश दिया. लेकिन कई कारणों से स्कूल उस लेवल तक नहीं पहुंच पाया. कई गांवों में सबसे अच्छी इमारत स्कूल की है. मिड डे मील बच्चों के लिए आकर्षण है. लेकिन शिक्षा का स्तर क्या है? आप मिथिलांचल की बात कर रहे थे. वहां से कभी बहुत अच्छे विद्वान निकले थे. वहां पहले सभी मंचों पर बहस, चर्चा की गुंजाइश थी. सैकड़ों स्कूल और आधा दर्जन यूनिवर्सिटी के बावजूद बहस की गुंजाइश नहीं है.

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खेती में हुआ ज्यादा विकास

बिहार में कृषि क्षेत्र में हुए विकास पर बहस में हिस्सा लेते हुए अर्थशास्त्री पीपी घोष ने कहा कि राज्य में कृषि क्षेत्र का विकास संतोषजनक है. कृषि सेक्टर में 3 फीसदी के राष्ट्रीय विकास दर की तुलना में बिहार में कृषि का विकास ज्यादा हुआ है. इस सेक्टर में बीते 15-20 सालों में विकास दर 3 फीसदी से ज्यादा रही है. प्रोफेसर घोष ने कहा कि औद्योगिक विकास को लेकर चुनौतियां हैं.

प्रोफेसर घोष ने कहा कि भारत के कुछ क्षेत्र औद्योगिक विकास के मामले में आजादी से पहले से ही आगे रहे हैं. इनमें मुंबई और कोलकाता जैसे शहर शामिल हैं.  उन्होंने कहा कि ये इलाके औपनिवेशक काल में अंग्रेजों द्वारा किए गए काम की वजह से आगे रहे. इनमें बेंगलुरु और कानपुर भी शामिल हैं. आजादी के बाद पंजाब और आंध्र प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र में आगे आए क्योंकि वहां कृषि क्षेत्र में काफी प्रगति हुई.

संजय कुमार से पूछा गया कि पर्याप्त पानी और खेती के लिए बेहतर जमीन के दम पर क्या बिहार प्रगति नहीं कर सकता है? तो उन्होंने जवाब दिया कि जमीन पर निर्भरता कम करनी होगी. शहरीकरण पर जोर देना होगा.

'यहां कम वेतन में भी लोग काम करने को तैयार'

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बिहार में आईटी सेक्टर की संभावनाओं के बारे में पीपी घोष ने कहा कि यहां पर पहले पहले बुनियादी ढांचा ही अच्छा नहीं था. इससे लंबे समय तक विकास नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि आईटी जैसे सेक्टर में आपको लाखों लोगों की जरूरत नहीं होती है. उन्होंने कहा कि बिहार जैसे राज्य में कम वेतन में भी लोग काम करने को तैयार रहते हैं. उन्होंने कहा कि देश के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां लोग 30-40 फीसदी कम दर पर काम करने को तैयार हैं. यह कंपनियों के लिए फायदे की बात है.

'मिथिलांचल के लिए कोसी है चुनौती'

बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र के पिछड़ेपन पर चर्चा के दौरान इतिहासकार और प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्रा ने कहा कि कोसी की बाढ़ की वजह से लंबे समय तक यह क्षेत्र परेशान रहा है. उनके मुताबिक बीते कुछ सालों में यहां के ज्यादातर इलाके ब्रॉडगेज रेलवे और सभी गांव सड़कों से जुड़ गए हैं. लेकिन अभी कई मामलों में दिक्कत है. सड़कों की मरम्मत नहीं हो रही है. इस इलाके के प्राचीन काल में वैभवशाली होने और अब पिछड़े होने पर उन्होंने कहा, जहां तक राजा जनक या उसके बाद के राजतंत्रों की बात हो रही है, वे कृषि पर निर्भर थे. लेकिन वे अपनी प्रजा को खुश रखते थे. जनसंख्या भी कम थी.

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'बिहार के इतिहास पर गर्व, लेकिन वर्तमान भी देखें'

इस मुद्दे पर चर्चा में  हिस्सा लेते हुए सीनियर अफसर संजय कुमार ने कहा कि हम हमेशा बात करते हैं कि हमारा इतिहास बहुत अच्छा है. हमें उस पर गर्व है. नालंदा की बात होती है. उसे बख्तियार खिलजी ने तबाह कर दिया. उसके बाद 900 सालों में हमने क्या किया? क्या आज हमारे पास वैसा कोई संस्थान या स्कूल है? क्या ऐसे स्कूल हैं, जहां हमें कुछ सीखने में खुशी हो? एक बिहारी समाज के रूप में हमें सोचना होगा कि हमारे यहां इतनी अनुशासनहीनता क्यों है? हम अगर समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं तो सोच बदलनी होगी और क्षमता भी बढ़ानी होगी.

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