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उपेंद्र कुशवाहा की सियासी हिस्ट्री: दो बार अपनी पार्टी बनाई, कई बार JDU से हुए अलग और अब फिर नीतीश से हो रहे दूर?

बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा के नाम की चर्चा काफी तेज है. हाल ही में उनकी बीजेपी नेताओं के साथ एक तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई. पूर्व में उनके पार्टी बदलने के इतिहास को देखते हुए कयासों का दौर शुरू हुआ कि उपेंद्र नीतीश का साथ छोड़ बीजेपी में जाने वाले हैं.

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उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

बिहार के सियासी गलियारों में इन दिनों जेडीयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के नाम की चर्चा तेजी से चल रही है. बीते कुछ समय से उपेंद्र कुशवाहा की BJP नेताओं के साथ नजदीकियों और बीजेपी में शामिल होने की अटकलें काफी तेज हैं. ऐसे में जब पिछले हफ्ते कुशवाहा दिल्ली के एम्स में रुटीन चेकअप के लिए भर्ती हुए तो उनसे मुलाकात के लिए बिहार बीजेपी के कई नेता पहुंचे. जिसकी एक तस्वीर भी सामने आई और सोशल मीडिया पर तमाम अटकलों के साथ जंगल की आग की तरह फैल गई. 

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हालांकि बाद में उपेंद्र कुशवाहा ने इन सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ़ भी कर दिया कि वो बीजेपी में नहीं जा रहे हैं. उन्होंने कहा, भाजपा नेता से मिलने का वास्तव में मतलब यह नहीं है कि मैं भाजपा में शामिल होने जा रहा हूं. ये निराधार अफवाहें हैं. उन्होंने अपने बयान में आगे कहा कि मैं जेडीयू में हूं, जेडीयू कमजोर हो रहा है, लेकिन मैं इसे मजबूत करने के लिए काम करता रहूंगा. 

जब जब कमजोर हुए नीतीश, हमने साथ दिया: उपेंद्र कुशवाहा

बिहार में जारी सियासी सिरफुटव्वल के बीच उपेन्द्र कुशवाहा का एक बयान भी सामने आया. जिसमें उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से जब-जब नीतीश जी कमजोर हुए तब-तब हमने उनका सहयोग करने का काम किया है. कर्पूरी जी के सपने को पूर्ण करने के लिए हमने साथ दिया है. कुशवाहा के इस बयान के बाद नई अटकलों को भी जन्म दिया कि क्या कुशवाहा नीतीश को कुछ याद दिलाने के प्रयास में हैं? 

क्या बोले जेडीयू नेता ललन सिंह?

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इन सब बयानबाजी और अटकलों के बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने आजतक से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने अपनी बात रखी. ललन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा के पार्टी छोड़ने की अटकलों पर कहा कि वो किन कारणों से ऐसी बातें कह रहे हैं, ये हम नहीं जानते हैं. लेकिन कोई पार्टी मजबूत होती है तो कार्यकर्ता उत्साहित होते हैं और कार्यकर्ता मजबूत होता है. हमारी पार्टी के कार्यकर्ता JDU को मजबूत करने में लगे हैं और वो किस आधार पर कह रहे हैं हमको नहीं पता. इसके अलावा ललन सिंह ने यह भी कहा, वो दफ्तर में आते रहे हैं, पार्टी की मीटिंग में शामिल हुए हैं.

कैसे शुरू हुआ कयासों का दौर?

बिहार की सियासत में यह सब अटकलें यूं ही नहीं शुरू हुईं, बल्कि उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से मिलने वाले संकेतों और पूर्व में उनके 'पाला बदल' के इतिहास को देखते हुए लगाई जाने लगीं. दरअसल, उपेंद्र की नाराजगी की खबरें तो तभी से आ रही हैं जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कुशवाहा को कोई मंत्री पद नहीं मिला था. माना जा रहा है कि कुशवाहा को उम्मीद थी की कैबिनेट विस्तार में उन्हें डिप्टी सीएम बनाया जाएगा, लेकिन नीतीश कुमार ने साफ कर दिया कि कोई दूसरा डिप्टी सीएम नहीं होगा जिससे उपेंद्र कुशवाहा के अरमानों पर पानी फिर गया.

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अब अटकलों के बाजार में चर्चा है कि उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू से विदा लेने का ऐलान कर सकते हैं. ऐसे में बीजेपी के लोगों के साथ उनकी तस्वीरों ने चर्चाओं के बाजार को गर्म कर दिया है. वहीं यह भी माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा अपनी पार्टी को भी दोबारा खड़ा कर सकते हैं. उपेंद्र 17 साल में तीन बार जेडीयू का साथ छोड़ चुके हैं और पलट कर फिर वापस लौटे हैं.

उपेंद्र कुशवाहा और उनका 'दल बदल' का इतिहास

राजनीति के इतिहास में उपेंद्र कुशवाहा के 'दल बदल' की तस्वीर काफी पुरानी है. साल 2005 में जब बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू की अगुआई वाली एनडीए बिहार की सत्ता में आई तब कुशवाहा अपनी ही सीट से चुनाव हार गए. जिसके बाद कुशवाहा और नीतीश के बीच दूरियां आ गईं. इतना ही नहीं उन्होंने जेडीयू को अलविदा भी कह दिया. जिसके बाद कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी बनाई और नाम रखा राष्ट्रीय समता पार्टी. 

हालांकि साल 2010 में एक बार फिर बदलाव की बयार चली और नीतीश के न्योता पर कुशवाहा ने घर वापसी की. उपेंद्र एक बार फिर जेडीयू में आ गए. लेकिन यह किस्सा यहीं अंत नहीं हुआ. 'पार्टी बदलने' की कहानी एक बार फिर राजनीति की चर्चाओं में सुनाई जाने लगी.

दरअसल, साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) बना ली. और 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपना समर्थन भी दे दिया. बिहार की तीन लोकसभा सीट पर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा और उस दौर में मोदी लहर का जादू ऐसा चला कि ये तीनों सीट कुशवाहा के पाले में जा गिरीं. और इसके इनाम में उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिली और वो मानव संसाधन राज्य मंत्री बने. 

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रालोसपा का जेडीयू में विलय

कुशवाहा की ये पार्टी 5 साल में ही बिखर गई. साल 2018 आते आते कुशवाहा की पार्टी एक झटके में ढह गई. जिसके बाद उन्हें तेजस्वी यादव का साथ मिला. लेकिन तब वो एक भी सीट नहीं जीत पाए. निराशा हाथ लगी. इस सबके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर जेडीयू का रुख किया. और अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय करा दिया.

हाल ही में बिहार में उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चाएं तेज हुईं तो इस पर उनका जवाब आया कि वो कोई संन्यासी नहीं हैं. लेकिन बाद में जब तस्वीर साफ़ हुई तो कुशवाहा के हाथ एक बार फिर खाली रहे... जिसके बाद वो खुद को पार्टी में साइडलाइन मानने लगे हैं. 

अटकलों के बीच क्या बोले नीतीश कुमार?

लेकिन अब तमाम अटकलों के बीच जब नीतीश कुमार से इस बाबत बातचीत की गई तो वो कुशवाहा को लेकर बहुत चिंतित नहीं नजर आए. नीतीश कुमार ने कहा कि वह तो पहले भी दो तीन बार जेडीयू छोड़कर चले गए हैं और वापस आए हैं. हालांकि नीतीश ने आगे कहा कि वह उपेंद्र कुशवाहा से जल्द ही इस बारे में बातचीत करेंगे. ऐसे में अब सभी की इस बात पर नजर है कि क्या उपेंद्र एक बार फिर नीतीश का साथ छोड़ नई राह पकड़ेंगे या फिर बीजेपी के साथ जाकर तमाम अटकलों को सच साबित करेंगे. या फिर जिस जेडीयू को वो आज कमजोर बता रहे हैं उसे ही मजबूत करने के सक्षम प्रयास करेंगे. 

 

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