बिहार में जहानाबाद की एक अदालत ने आज शंकरिबगहा नरंसहार के सभी 24 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया. फैसला एडीजे (प्रथम) की अदालत ने सुनाया.
25 जनवरी 1999 की रात रणवीर सेना ने करीब 100 हथियारबंद उग्रवादियों ने शंकरबिगहा में दलितों के टोले पर हमला कर 23 दलितों के मौत के घाट उतार दिया था. ये नरसंहार उस दौर की कड़ी का हिस्सा था जब बिहार में नक्सलियों और रणवीर सेना के बीच खूनी रंजिश में कभी दलितों को तो कभी उच्च जातियों को निशाना बनाया जाता था. ये गांव उसी बाथे गांव के पास है जहां 1997 में बिहार का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था जिसमें 61 दलितों का नरसंहार हुआ था.
पटना से करीब 126 किमी दूर शंकर बिगहा तब सुर्खियों में आया था जब जमींदारों के प्रभुत्व वाले इस गांव में एक साथ 23 दलितों की हत्या रणवीर सेना ने की थी. इस नरसंहार में सभी मारे गए थे जबकि एक दुधमुंही बच्ची बच गई थी.
25 जनवरी को ठंड की उस रात में करीब 100 की संख्या में हथियारबंद रणवीर सेना के उग्रवादियों ने गरीब और भूमिहीन इन दलितों के झोपड़ियों पर हमला बोलकर उन्हे मौत नींद सुला दी थी.
बहरहाल मांझी सरकार इस मामले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने के मूड में हैं लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जहां के महादलित मुख्यमंत्री दलितों के एजेंडे को आक्रामक तरीके से बढ़ाने के लिए विपक्ष के निशाने पर है वहीं उनकी सरकार इतने बड़े नरसंहार के आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य नहीं जुटा पाई.