युवा कम्युनिस्ट नेता एवं जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार कुछ मामलों में खुद की तुलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किये जाने पर स्वीकार करते हैं कि हम दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि एक जैसी है. बावजूद इसके मैं पीएम मोदी की तरह नहीं हूं. लल्लनटॉप को दिए गये इंटरव्यू में कन्हैया की तुलना गरीब परिवार की पृष्ठभूमि और बातों में अक्सर मां का जिक्र के आधार पर पीएम मोदी से की गई. हालांकि गरीबी वाले मुद्दे पर कन्हैया का जवाब चौंकाने वाला था.
आइये आपको बताते हैं कि किन-किन बातों पर खुद को मोदी से बहुत अलग मानते हैं कन्हैया
मैं अपनी गरीबी को नहीं बेचता
इंटरव्यू में जब कहा गया कि आप भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह अपने गरीबी वाले पृष्ठभूमि का उल्लेख बार बार करते हैं तो कन्हैया कुमार ने जवाब दिया कि मैं पीएम मोदी की तरह अपनी गरीबी को नहीं बेचता.
ये सच है कि आप अपनी पृष्ठभूमि को नहीं छिपा सकते. लेकिन जैसा कि लोग अपनी सुविधा के अनुसार अपनी पृष्ठभूमि का जिक्र करते हैं, मैंने उस तरह से अपनी गरीबी वाली पृष्ठभूमि को राजनैतिक सेलिंग पॉइंट नहीं बनाया.
मैं चेहरे की राजनीति वाला नहीं
कन्हैया ने इंटरव्यू के दौरान ये भी कहा कि आज हर कहीं चेहरे की राजनीति है. मुद्दे पीछे हो गये और चेहरा आगे हो गया है. मैं चेहरे की राजनीति वाला नहीं हूं. मैं मुद्दे की राजनीति करना पसंद करता हूं. चेहरे तो आते-जाते रहते हैं. बदलते रहते हैं. लेकिन मुद्दे स्थायी होते हैं.
राजनीति का असल विषय जनता से सीधा सरोकार रखने वाले मुद्दे ही होते हैं.
मैं लेफ्ट पॉलिटिक्स का पॉप आइकॉन नहीं
कन्हैया कुमार ने इस बात को भी गलत करार दिया जिसमें उन्हें लेफ्ट पॉलिटिक्स के न्यू पॉप आइकॉन के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है. बिना पीएम मोदी का नाम लिये उन्होंने कहा कि हर राजनीतिक धारा में आज लोग चेहरा ढूंढते हैं. मैं इसके खिलाफ हूं. मैं किसी भी विचारधारा को चेहरा नहीं हूं. मैं मुद्दे की राजनीति को ही सबसे अहम मानता हूं. मैं ना ही रहूं तो भी ये चीज राजनीति में प्रासंगिक रहेगी.
किसान और मजदूरों की बात करता हूं
एक और मामले में कन्हैया ने खुद को पीएम मोदी से अलग दिखाने की कोशिश की. किसान और मजदूरों के हितों के मामले में कन्हैया ने कहा कि इन लोगों के बारे में सिर्फ बातें नहीं होनी चाहिए. मैं सिर्फ बातों का पक्षधर नहीं हूं. इस मामले में मैं अलग हूं. आज जो भी सिस्टम की कमियों पर सवाल उठाता है, उसे वामपंथी मान लिया जाता है. ये भी गलत है. सवाल उठाना जरूरी है.