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स्‍वीमिंग पूल को लेकर सीरियस हुए लालू, वास्‍तु दोष के कारण बदलेंगे स्‍थान

चुनाव में जीत दर्ज करने और बलाओं को टालने के लिए नेताओं का ज्‍योतिष विद्या, वास्‍तु और तंत्र-मंत्र में भरोसे की कहानी नई नहीं है. नेताओं की इस सूची में नया नाम आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का जुड़ गया है. खबर है कि उन्‍होंने अपने पटना आवास स्थित स्‍वीमिंग पूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने का फैसला लिया है.

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लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी (फाइल फोटो)
लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी (फाइल फोटो)

चुनाव में जीत दर्ज करने और बलाओं को टालने के लिए नेताओं का ज्‍योतिष विद्या, वास्‍तु और तंत्र-मंत्र में भरोसे की कहानी नई नहीं है. नेताओं की इस सूची में नया नाम आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का जुड़ गया है. खबर है कि उन्‍होंने अपने पटना आवास स्थित स्‍वीमिंग पूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने का फैसला लिया है. बताया जाता है कि लालू का यह फैसला एक वास्‍तु शास्‍त्री की सलाह पर आया है.

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जानकारी के मुताबिक, वास्‍तु शास्‍त्री ने आरजेडी प्रमुख से कहा कि उनके बंगले के दक्षिण भाग स्थित स्‍वीमिंग पूल उनके के लिए शुभ नहीं है. पार्टी सूत्रों ने बताया कि जल्‍द ही 10, सर्कुलर रोड स्थित आवास के उत्तर-पूर्वी भाग में नए स्‍वीमिंग पूल का निर्माण करवाया जाएगा. जाहिर है बीते कुछ महीनों में जेल और राजनीति में खराब समय बिताने के बाद लालू आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कोई रिस्‍क नहीं लेना चाहते.

गौरतलब है कि लालू प्रसाद ने इस स्‍वीमिंग पूल का निर्माण 2006 में तब करवाया था जब वह 1-आणे मार्ग स्थित मुख्‍यमंत्री आवास को छोड़कर सर्कुलर रोड आए थे. पूल निर्माण के पीछे की एक बड़ी वजह यह थी कि इससे राबड़ी देवी को छठ पूजा करने में सहुलियत होगी.

यह पहली बार नहीं है जब लालू प्रसाद ने पंडित और ज्‍योतिषी के कहने पर इस तरह का कोई निर्णय लिया है. लालू इससे पहले बीते साल यूपी के मिर्जापुर में तांत्रिक विभूति नारायण के आश्रम में भी पूजा करते देखे गए, जिन्‍हें आम तौर पर 'पगला बाबा' के नाम से जाना जाता है. लालू ने तब यह पूजा चारा घोटाला मामले में मनचाहे फल के लिए किया था. लेकिन बाद में सीबीआई अदालत ने मामले में उन्‍हें कारावास की सजा सुनाई थी. लालू अभी जमानत पर रिहा हैं.

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पहले तो ऐसे न थे मिजाज
लालू प्रसाद यादव का इस तरह तंत्र-मंत्र में विश्‍वास पहली बार देखने को मिला है. राजनीतिक करियर की शुरुआत में भी लालू प्रसाद की ओर से इस ओर झुकाव देखने को नहीं मिला था. यहां तक कि 1990 में उन्‍होंने अपने समर्थकों से धार्मिक ग्रंथों को फाड़ने तक का आदेश दिया था. लेकिन बताया जाता है कि 1996 में चारा घोटाला मामले में फंसने के बाद से पूर्व रेलमंत्री के विचारों में बदलाव आया है.

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