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लालू की वापसी नीतीश के लिए सिरदर्द बनेगी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ग्रह दशा ठीक नहीं चल रही. बीजेपी से पल्ला झाड़ने के बाद वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयानबाजी में लग गए. उनका सारा समय मोदी की आलोचना में ही बीतता रहा लेकिन जब राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की हालत बिगड़नी शुरू हुई तो उनकी लोकप्रियता तेजी से घटने लगी.

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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ग्रह दशा ठीक नहीं चल रही. बीजेपी से पल्ला झाड़ने के बाद वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयानबाजी में लग गए. उनका सारा समय मोदी की आलोचना में ही बीतता रहा लेकिन जब राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की हालत बिगड़नी शुरू हुई तो उनकी लोकप्रियता तेजी से घटने लगी. और अब लालू प्रसाद के जेल से बाहर निकल जाने के बाद उनके सामने एक पुरानी चुनौती नए रूप में खड़ी है.

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अब नीतीश कुमार के सामने एक और मजबूत प्रतिद्वंद्वी खड़ा है. अब तक तो वह नरेंद्र मोदी पर अपने व्यंग्य बाण छोड़कर खुश हो रहे थे लेकिन अब उन्हें रोज लालू प्रसाद के कंटीले बाणों का सामना करना होगा. भले ही रांची की जेल से निकलते ही लालू प्रसाद ने सांप्रदायिक ताकतों से दो-दो हाथ करने का ऐलान किया हो, लेकिन उनकी निगाहें पाटलिपुत्र पर ही हैं. और इस बात को नीतीश भली भांति जानते हैं.

लेकिन नीतीश कुमार जिस सुशासन के नारे के साथ बिहार में सत्ता में आए थे, वह तार-तार होता दिख रहा है. राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की हालत खराब है. उसके कुल 38 जिलों में से 16 नक्सली हिंसा के शिकार हैं और कई इलाकों में तो पुलिस वाले भी जाने से डरते हैं. इस मुद्दे पर गृह मंत्री शिंदे के पत्र से वह खासे भिन्नाए हुए हैं जिसमें उन पर इस मामले में ढिलाई बरतने का आरोप लगा है.

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शायद नीतीश कुमार को लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी की बार-बार आलोचना से खुश केन्द्र की कांग्रेस सरकार उनसे कुछ नहीं कहेगी. लेकिन नक्सलियों ने जिस तरह खुले आम पुलिस कर्मियों को मार डाला और उनके हथियार लूट लिये, उससे केन्द्र बेहद नाराज है. उनके विरोधियों का आरोप है कि नीतीश कुमार लोकप्रियता घटने की डर से नक्सल विरोधी अभियानों में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. नक्सलियों के खिलाफ अभियानों से ग्रामीण काफी मुसीबत में पड़ जाते हैं. वोट की राजनीति तमाम मुख्यमंत्रियों को ऐसे कदम उठाने से रोकती है और नीतीश कुमार कोई अपवाद नहीं हैं.

बिहार में जिस तरह इंडियन मुजाहिदीन ने अपनी जड़ें मजबूत कर लीं, वह राज्य सरकार की खुद की देन है. इंटेलिजेंस ब्यूरो की सलाह के बाद भी वहां की पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया. दरअसल अल्पसंख्यकों को अपनी ओर करने के प्रयास में लगे नीतीश कुमार किसी तरह की विवाद नहीं चाहते थे. नतीजा नरेन्द्र मोदी की सभा में हुए धमाके के रूप में दिखा जिसमें कई बेगुनाहों की जानें गईं. लेकिन नीतीश कुमार को कोई फर्क नहीं पड़ा और वे बयान ही देते रहे. आईएम के कई आतंकवादियों का पर्दाफाश होने के बाद भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा.

राज्य में बढ़ते अपराध उनके सुशासन के दावे को खोखला कर रहे हैं. उनका सामना करने की बजाय वे बयानबाजी का ही सहारा ले रहे हैं. उन्हें लगता है कि इससे उनकी छवि बेदाग बनी रहेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. लोग अब सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार के पास अब इतने मंत्रालयों का कार्य भार है कि वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं. राज्य में काम काज ठप होता जा रहा है.

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अब लालू प्रसाद की जेल से वापसी उनके लिए नरेन्द्र मोदी से भी बड़ा सिरदर्द साबित होगी. लालू एक समय अल्पसंख्यकों के प्रिय थे, यह बात नीतीश कमार अच्छी तरह जानते हैं. जेल से लौटकर वह नीतीश कुमार के वोट बैंक पर "डाका" डालने का प्रयास सबसे पहले करेंगे. जिस अल्पसंख्यक वोट की खातिर उन्होंने बीजेपी से किनारा कर लिया, उसके उनसे दूर हो जाने का खतरा अब सामने है.

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