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पुत्रमोह में हार गया बिहार का सबसे बड़ा विजेता

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव को हाथ मिलाने पर मजबूर कर दिया. कांग्रेस भी इस महागठबंधन का हिस्सा बनी और बिहार में बीजेपी को परास्त कर दिया. इस चुनाव में लालू यादव का एक तरह से 'कमबैक' हुआ.

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नीतीश कुमार ने बिहार के सीएम पद से इस्तीफा दिया
नीतीश कुमार ने बिहार के सीएम पद से इस्तीफा दिया

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पुत्रमोह में महाभारत से लेकर महागठबंधन तक हर जगह उठा-पटक देखने को मिली. पारिवारिक राजनीति को लेकर भारत के इतिहास में अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिले. मगर बिहार की सियासत के सबसे बड़े विजेता लालू प्रसाद यादव 12 साल बाद एक बार फिर बैकफुट पर चले गए.

लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर 1997 में राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी का गठन किया. इससे पहले ही लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके थें. लालू यादव 1990 में बिहार के सीएम बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. एक बार फिर 1997 में लालू को बिहार संभालने की जिम्मेदारी मिली और उन्होंने 1997 तक सीएम की कुर्सी संभाली. इस बीच चारा घोटाला सामने आने के बाद लालू यादव को इस्तीफा देना पड़ा और उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद फिर कभी लालू यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में आसीन होने का गौरव प्राप्त नहीं हुआ.

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2005 के बाद आरजेडी को बिहार की सत्ता नहीं मिली. इस दौरान लालू घोटाले के केस में निशाना बनते रहे. मगर भारतीय राजनीति का ये प्रमुख सूरमा कभी सीबीआई से डरा और न सरकार से.

चारा घोटाले के फंदे ने लालू को आजाद नहीं होने दिया. लालू को एक बड़ा झटका 2013 में लगा, जब सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें चारा घोटाला केस में 5 साल की सजा सुनाई. इसके साथ ही लालू की राजनीतिक पारी पर विराम लग गया. सजा के बाद लालू के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग गई. लालू को सजा होने से पहले ही जून 2013 में जेडीयू-बीजेपी का 17 साल पुराना गठबंधन टूट गया. बीजेपी नीतीश सरकार से अलग हो गई.

2014 के लोकसभा चुनाव में देशभर में मोदी लहर चली और केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनी. केंद्र में मोदी की पूर्णबहुमत की सरकार से न सिर्फ कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को झटका लगा, बल्कि बीजेपी विरोधी लालू यादव की मुश्किलों का दौर भी एक बार फिर शुरू हो गया. जेडीयू ने अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ा, मगर कुछ खास नहीं कर पाई.

दूसरी तरफ मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में जैसे बीजेपी के पक्ष में हवा चल पड़ी. राज्य विधानसभाओं में बीजेपी को अपने दम पर अप्रत्याशित जीत मिलने लगी. जिसने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव को हाथ मिलाने पर मजबूर कर दिया. कांग्रेस भी इस महागठबंधन का हिस्सा बनी और बिहार में बीजेपी को परास्त कर दिया.

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इस चुनाव में लालू यादव का एक तरह से 'कमबैक' हुआ. पार्टी ने बिहार विधानसभा में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं. लालू के दोनों बेटे भी चुनाव जीत गए. गठबंधन सरकार में छोटे बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनवा दिया और बड़े बेटे तेजप्रताप को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिला दिया.

अब जब तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो लालू एक बार फिर संकट में आ गए. मगर चुनावी राजनीति से आउट हो चुके लालू को पुत्रमोह ने मजबूर कर दिया और आरजेडी की राजनीति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

 

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