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बिहार: लोकसभा चुनाव में साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे वाम दल

बैठक के हवाले से वाम नेताओं ने कहा कि फांसीवादी बीजेपी के खिलाफ वाम दल आने वाले दिनों में जनता के विभिन्न ज्वलंत सवालों पर एकताबद्ध आंदोलन करेंगे. जनांदोलनों की ताकत को मजबूत करके ही भाजपा जैसी काली ताकतों को पीछे धकेला जा सकता है.

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

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बिहार के तीन प्रमुख वाम दलों सीपीआई, सीपीआई (एम) और भाकपा-माले ने आगामी लोकसभा चुनाव एक साथ मिलकर लड़ने का निर्णय किया है. 2 जुलाई को भाकपा-माले राज्य कार्यालय में तीनों पार्टियों की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया. बैठक में भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल, केंद्रीय कमिटी के सदस्य संतोष सहर व वरिष्ठ माले नेता राजाराम, सीपीआई के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह व राज्य सचिव मंडल के सदस्य रामनरेश पांडेय और सीपीआई (एम) के राज्य सचिव अवधेश कुमार व गणेश शंकर सिंह उपस्थित थे.

बैठक के हवाले से वाम नेताओं ने कहा कि फांसीवादी बीजेपी के खिलाफ वाम दल आने वाले दिनों में जनता के विभिन्न ज्वलंत सवालों पर एकताबद्ध आंदोलन करेंगे. जनांदोलनों की ताकत को मजबूत करके ही भाजपा जैसी काली ताकतों को पीछे धकेला जा सकता है. चुनाव के मोर्चे पर भी वाम दल भाजपा को शिकस्त देने का हर संभव प्रयास करेंगे. लाल झंडे के बिना बना कोई भी मोर्चा सच्चे अर्थों में भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकता है. वामपंथी ही भाजपा को वैचारिक चुनौती दे सकते हैं.

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वाम नेताओं ने बालू निकासी पर लगी रोक को अविलंब हटाने की मांग की. कहा कि पिछले साल के अनुभव के बाद भी बिहार सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. पिछले साल बालू बंदी से लाखों परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे. ग्रीन ट्रिब्यूनल का हवाला देकर कि जुलाई से सितंबर तक का महीना मछलियों के प्रजनन का महीना है, बालू निकासी बंद कर दिया गया है. लेकिन मछलियां नदी की धारा की बजाए किनारों पर प्रजनन करती हैं इसलिए बालू निकासी पर रोक कहीं से भी उचित नहीं है. लाखों निर्माण मजदूर व उनके परिवारों की जिंदगी को देखते हुए बालू निकासी पर लगी रोक अविलंब वापस लेनी चाहिए.

वाम दलों की बैठक में बिहार में महिला हिंसा व अपराध की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की गई. कहा कि वैशाली में डीका हत्याकांड के उपरांत मुजफ्फरपुर में संस्थागत यौन उत्पीड़न का मामला उजागर हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि इन मामलों में प्रशासन का रुख बलात्कारियों को संरक्षण देने का ही रहा है. वहीं गया में डॉक्टर के परिवार के साथ हुए सामूहिक बलात्कार कांड में पीड़िता को लगातार डराया-धमकाया जा रहा है. पिछले 1 महीने के भीतर राज्य में तीन आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कई संदेह खड़ा कर रही है. आज अपराधी पूरी तरह से राज्य में बेलगाम हो चुके हैं.

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