महागठबंधन में सीटों के तालमेल की घोषणा तो हुई लेकिन बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. महागठबंधन के प्रेस कांफ्रेंस में बड़े चेहरों के नदारद रहने की वजह से ऐसा लगता है कि भले ही संख्या का फैसला हो गया हो लेकिन कौन कहां से लड़ेगा इसको लेकर अभी भी पेच फंसा हुआ है.
हांलाकि, महागठबंधन के नेताओं को इस बात का भी इंतजार है कि आखिर एनडीए कहां-कहां से कौन-कौन से उम्मीदवार उतारती है. उसके बाद फैसला शायद उनके लिए आसान हो जाए, लेकिन फिलहाल तो महागठबंधन के नेताओं के बीच बैठकों का दौर सीटों के ऐलान के बाद भी जारी है.
हांलाकि, महागठबंधन में छोटे दलों को खुश करने की पूरी कोशिश की गई है. उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 5 सीटें, जीतनराम मांझी की हम पार्टी को 3 सीटों के साथ नवादा विधानसभा के उपचुनाव का टिकट भी मिला है. मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी को 3 सीटें मिली हैं तो शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल को आरजेडी में विलय कराने के लिए उन्हें मधेपुरा का टिकट थमा दिया गया है. लेफ्ट के नाम पर माले को 1 सीट पर आरजेडी ने समर्थन दिया है. वहां से राजू यादव के नाम की घोषणा माले पहले ही कर चुकी है.
9 सीटों के साथ खुश नहीं कांग्रेस
आरजेडी 20 सीटों पर लड़ रही है जो कि पहले से तय था कि वो 20 से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी और वही हुआ. हांलाकि, इसमें शरद यादव भी शामिल हैं जो अपनी पार्टी के लिए 2 टिकट मांग रहें थे. लेकिन उनकी पार्टी का विलय आरजेडी में हो गया. दूसरी तरफ कांग्रेस जो 11 सीट पर लड़ना चाहती थी उसे 9 सीटें ही दी गई हैं. हांलाकि, एक राज्यसभा की सीट देने का वादा भी किया गया है. इसके बावजूद कांग्रेस खुश नहीं दिखी.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा के चेहरे पर खुशी नहीं दिखाई दे रही थी. क्योंकि कीर्ति आजाद के लिए दरभंगा सीट अभी भी फंसा हुआ है. यहां मुकेश सहनी अपना दावा अभी तक नहीं छोड़ रहें हैं, तीन सीटों में से मुकेश सहनी की पार्टी के लिए खगड़िया और मुजफ्फरपुर सीट तो तय है लेकिन दरभंगा अभी भी लटका हुआ है.
राबड़ी के घर हुई बैठक
महागठबंधन के प्रेस कंफ्रेंस के लगभग 2 घंटे पहले से राबड़ी देवी के आवास 10 सर्कुलर रोड पर सभी महागठबंधन के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई गई थी लेकिन 4 बजे तक फैसला नहीं हो पाया तो रणनीति में बदलाव करते हुए प्रदेश स्तर के नेताओं को प्रेस कंफ्रेंस के लिए भेजा गया. कांफ्रेंस में केवल आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा और प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे ही बोले, जबकि मदन मोहन झा चुपचाप बैठे रहे. इधर 10 सर्कुलर में महागठबंधन नेताओं की बैठक देर शाम तक जारी रही. लेकिन बात बनी नहीं, सभी नेता एक एक कर निकल गए.
माना जा रहा है कि वाल्मिकीनगर, मोतिहारी, दरभंगा, मधुबनी और कटिहार को लेकर महागठबंधन में पेच फंस गया है. वाल्मिकीनगर पर कांग्रेस और आरएलएसपी दोनों का दावा है, मोतिहारी पर आरएलएसपी आरजेडी का दावा है. दरभंगा पर मुकेश सहनी और कीर्ति आजाद का दावा है. कटिहार में तारिक अनवर को लेकर सवाल हैं. तो मधुबनी में कांग्रेस और आरजेडी के बीच मामला फंसा हुआ है. हांलाकि, गठबंधन के नेताओं का कहना है कि एक-दो दिनों में यह मसला सुलझा लिया जाएगा.
'उम्मीदवारों को लड़ाने का नया फार्मूला'
मांझी को जो 3 सीटें मिली हैं उसमें गया, औरंगाबाद और नालंदा शामिल है. औरंगाबाद को लेकर कांग्रेस में भारी विरोध है. निखिल कुमार का टिकट कटने से कांग्रेस के सदाकत आश्रम में भारी विरोध देखने को मिला. औरंगाबाद से हम पार्टी के उम्मीदवार उपेन्द्र प्रसाद होंगे जो जेडीयू के एमएलसी हैं.
हांलाकि, गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर ये साफ कहा जा रहा है कि इसमें आरजेडी की ही चली है. फ्रंटफुट पर खेलने वाली कांग्रेस अब बैकफुट पर दिख रही है. गठबंधन के लोभ में कांग्रेस को छोटे-छोटे दलों से भी पार पाना पड़ा. अब ये फार्मूला दिया जा रहा है कि कोई भी दल अपने अच्छे उम्मीदवारों को दूसरे दल के टिकट पर लड़वा सकता है और इसके लिए आरजेडी सहयोग करेगी. जाहिर है सीटों के इस फार्मूले ने कई दिग्गजों की नींदें उड़ा दी हैं.
कोइरी जाति को साधने की कोशिश
महागठबंधन में हाल में दाखिल होने वाली RLSP का मुख्य आधार ओबीसी के तहत आने वाले कुशवाहा या कोइरी जाति के वोटर हैं, जिनका बिहार में 8 फीसदी वोट बैंक है. कोइरी, कुर्मी और EBC धानुक जाति को एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से आते हैं, इस वोट बैंक पर काफी असर डालते हैं. महागठबंधन आरएलएसपी के द्वारा इन वोटों को साधने के फिराक में है.
महागठबंधन में नए साथी बने मुकेश साहनी की विकास इन्सान पार्टी (वीआईपी) को भी 3 सीटें दी गई हैं. साहनी निषाद जाति से आते हैं जिनका बिहार में 8 फीसदी वोट बैंक है. ऐसे में राजनीतिक पार्टियां आगामी लोकसभा चुनाव में इन्हें अपने पाले में करने में लगी हुई हैं. इसके अलावा मांझी के माध्यम से महागठबंधन दलित और ईबीसी वोटों के एक हिस्से को अपने पाले में लाने की कोशिश में है.