बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी के हर बयान से परेशानी है. मोदी कहीं भी कुछ भी कहें तो नीतीश कुमार अगले ही दिन जवाबी बयान दे डालते हैं. इस क्रम में वह कई बार हास्यास्पद बातें भी कह जाते हैं. अब उन्होंने कहा है कि आतंकवादियों की वजह से ही पटना की रैली सफल हुई और उन्हीं के चलते मैदान आधा ही भरा हुआ था.
पता नहीं, नीतीश जी को इस तरह का 'ज्ञान' कहां से प्राप्त हुआ. जिन लोगों ने रैली को आंखों से देखा या टीवी पर देखा, उन्हें तो अंदाजा ही हो गया होगा कि वहां लोग क्यों आए और कितनी तादाद में आए. आज जबकि टीवी चैनलों पर आने वाली खबरें सच-झूठ का फर्क बता देती हैं, वैसे में इस तरह के बयान देकर नीतीश बाबू क्या साबित करना चाहते हैं, यह कहना मुश्किल है. या तो वह खुद आतंकित हो गए हैं या प्रतिस्पर्धा के भाव से भर गए हैं.
नीतीश कुमार के शासन काल की शुरुआत में बिहार की हालत तेजी से सुधरी और राज्य बेहतरी की ओर जाता दिखा. लेकिन पिछले कुछ समय से वहां हालात बिगड़ने लगे हैं. बीजेपी के मंत्रियों के इस्तीफे के बाद से वहां 11 मंत्रालय खाली पड़े हैं और नीतीश कुमार खुद तीन मंत्रालयों का काम देख रहे हैं. ऐसे में वहां कामकाज ठप होने लगा है और भ्रष्टाचार बढ़ने की शिकायतें आने लगी हैं.
सुशासन की बात पर अब संदेह होने लगा है और लोग निराश होने लगे हैं. हालांकि यह कहना गलत होगा कि बीजेपी के सत्ता से हट जाने के कारण ऐसा हुआ, लेकिन यह तय है कि मंत्रालयों के खाली रहने से कामकाज पर बहुत असर पड़ा है. स्वीकृति के अभाव में फाइलों के अंबार लगे हुए हैं और बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय नहीं हो पा रहे हैं. बजाय इन पर काम करने के, नीतीश बाबू नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बयानों के तीर छोड़ने में व्यस्त हैं.
हो सकता है कि कांग्रेस और अल्पसंख्यक वोट बैंक को खुश करने की उनकी मुहिम का यह एक हिस्सा हो. पिछले काफी समय से वह कांग्रेस के साथ मीठी बातें करते दिख रहे हैं. दूसरी ओर, लालू प्रसाद के अल्पसंख्यक वोट बैंक पर भी उनकी नजर है. ऐसे में उनका मसीहा बनने की कोशिश का यह हिस्सा हो सकता है.
बहरहाल जो भी हो. एक बदहाल राज्य को खुशहाल बनाने की बजाय नीतीश कुमार आरोप-प्रत्यारोप के भंवर में फंस गए हैं और अपने लक्ष्य को भूल गए हैं. नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बयानों की झड़ी लगाकर वह अपने को और हल्का साबित करते जा रहे हैं जो उनके हित में नहीं है.
वक्त का तकाजा है कि वह एक कुशल राजनीतिज्ञ और प्रशासक की तरह राज्य के विकास के लिए काम करें, जिसके लिए कभी वे जाने जाते थे. ऐसा करके ही वह अपने को फिर से स्थापित कर पाएंगे न कि गैरजिम्मेदाराना बयान देकर.