भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा की बोचहां सीट के लिए होने वाले उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है. बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति के ओर से जारी की गई लिस्ट में पार्टी ने बोचहां सीट से पूर्व विधायक बेबी कुमारी को उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में बीजेपी ने तो स्पष्ट तौर पर विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश मुकेश सहनी को संकेत दे दिया है. लेकिन अब मुकेश सहनी को तय करना है कि उन्हें आगे का रास्ता कैसे तय करना है. बीजेपी ने बोचहा विधानसभा से उम्मीदवार बेबी कुमारी को मैदान में उतार दिया जबकि यह सीट पहले वीआईपी के कोटे में थी.
मुकेश साहनी ने बीजेपी के इस कदम पर कोई विशेष प्रतिक्रिया तो नहीं जताई है लेकिन अपने फेसबुक वॉल पर जरूर लिखा, कि होली के शुभ अवसर पर सहयोगी दल के द्वारा दिए गए तोहफे के लिए धन्यवाद। उन्होंने यह भी लिखा कि उनका यह निर्णय दर्शाता है कि हम निषाद समाज एवं पूरे अति पिछड़े समाज के हक एवं अधिकार की लड़ाई को सही दिशा में लड़ रहे हैं यह हक और अधिकार के लड़ाई में खलल डालने का प्रयास है हमारा संघर्ष जारी रहेगा. मुकेश सहनी की ओर से यह तो साफ है कि वह आगे लड़ाई जारी रखेंगे, लेकिन कैसे? सबसे बड़ा सवाल यही है.
2020 के विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर मुकेश सहनी ने एनडीए का दामन थामा था उससे पहले वह महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस से गठबंधन तोड़ कर निकले थे. तब बीजेपी ने विधानसभा में उन्हें 11 टिकट और एक एमएलसी की सीट भी दी थी. बाद में एनडीए की सरकार बनी और मुकेश सहनी उसमें मंत्री बनाए गए. लेकिन जब मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया तो यहीं पर खटपट शुरू हो गयी. वो बीजेपी के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में उनको भाव नहीं दिया और वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतर गए. हालांकि उस चुनाव में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली पर बीजेपी और उनके बीच रिश्तों में खटास ज़रूर आ गयी.
उन्होंने उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीजेपी के शीर्ष नेताओं के खिलाफ कई बयान दिए और लगातार निषादों को 15% आरक्षण देने का मुद्दा लगातार उठाते रहे. उसके बाद से बिहार बीजेपी ने उनसे दूरी बना ली और खास तौर पर बीजेपी के एक निषाद नेता और मुजफ्फरपुर के बीजेपी सांसद अजय निषाद ने मुकेश सहनी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
बीजेपी का इशारा साफ था वह एक निषाद नेता को आगे करके मुकेश सहनी को यह बताने की लगातार कोशिश कर रही थी कि उन्हें अब सहनी की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है. उनके पास भी निषाद यानी मल्लाहों के नेता हैं. मुकेश सहनी ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वह लगातार उत्तर प्रदेश में कैंपेन करते रहे. यही नहीं उत्तर प्रदेश में बुरी तरह चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने झारखंड में अपनी पार्टी वीआईपी को लॉन्च कर दिया. जैसे उत्तर प्रदेश के चुनाव का उन पर कोई असर ही नहीं हुआ हो.
साल 2020 के चुनाव में मुकेश सहनी के चार विधायक चुनकर आए थे. जिसमें से एक विधायक मुसाफिर पासवान जो कि बोचहा विधानसभा से जीते थे उनका निधन हो गया. और इसी वजह से ही यह उपचुनाव भी हो रहा है. माना जा रहा है कि बाकी के तीन विधायक भी उनके साथ हैं या नहीं? इसको लेकर संशय लगातार बना हुआ है. माना जाता है कि ये तीनों विधायक बीजेपी खेमे के हैं. इसलिए बीजेपी को भी मुकेश सहनी के नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.
ऐसे में मुकेश सहनी के पास क्या बचेगा? एक और बात है कि मुकेश साहनी जिस सीट पर एमएलसी हैं उसका कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो जाएगा. ऐसे में अगर वो विधान परिषद के सदस्य नहीं रहेंगे, फिर उनका मंत्री पद भी अपने आप खत्म हो जाएगा.