गंगा की सफाई का मामला इन दिनों चर्चा में है. गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय से इंडिया टुडे को आरटीआई के जरिए मिले जवाब से सामने आया है कि वाराणसी के घाटों पर गंगा में प्रदूषण पहले की तुलना में बढ़ गया है.
वाराणसी में गंगा के पानी में फेकल कोलिफॉर्म बैक्टीरिया काउंट 58 फीसदी तक बढ़ा पाया गया. ये रिपोर्ट आने के बाद पटना में गंगा और घाटों की क्या स्थिति है, ये जानने के लिए इंडिया टुडे ने ग्राउंड जीरो पर जाकर जमीनी हकीकत का जायजा लिया.
पटना शहर के मध्य से 7 किलोमीटर दूर गंगा नदी की ओर बढ़ते हुए इस रिपोर्टर के जेहन में गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल पहले दिए बयान गूंज रहे थे. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अक्सर गंगा को 'निर्मल' और 'अविरल' बनाने पर जोर देते रहते हैं.
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नीतीश भी चाहते हैं निर्मल गंगा
नीतीश चाहे पहले आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में रहे या फिर बीजेपी के साथ नाता जोड़ा, वो कई बार गंगा के पटना में विलुप्ति के कगार तक पहुंचने पर चिंता जता चुके हैं. नीतीश ने हाल में गंगा की बदहाली का जिक्र करते हुए बक्सर में नदी में छह महीने तक एक पोत के फंसे रहने का भी हवाला दिया. वहां सिर्फ एक मीटर गहरा पानी होने की वजह से पोत का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था.
इडिया टुडे रिपोर्टर ने अंटा घाट का रुख किया तो 100 मीटर पहले ही भीषण दुर्गंध की वजह से नाक पर रूमाल रखना पड़ा. घाट तक पहुंचते ही दुर्गंध बर्दाश्त से बाहर थी और उलटी जैसा अनुभव होने लगा. रिपोर्टर ने ये जानने की कोशिश की इतनी दुर्गंध कहां से आ रही है. जैसे ही अंटा घाट पर बाईं और देखा तो दुर्गंध का राज खुल गया.
गंगा में मिला रहा गटर का पानी
वहां बड़ी मात्रा में गटर का गंदा पानी घाट की दिशा में आता दिखाई दिया. तमाम कचरे को समेटे क्या ये पानी गंगा में जा मिलता है? यूपी के कानपुर की बात की जाए तो वहां गंगा को प्रदूषित करने के लिए चमड़ा कारखानों से नालों के पानी के साथ आने वाले औद्योगिक कचरे को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन पटना में तो ऐसे कोई कारखाने नहीं है.
पटना में औद्योगिक कचरे की तुलना में घरों से आने वाला सीवेज का पानी ही गंगा को प्रदूषित करने के लिए दोषी है.
इंडिया टुडे रिपोर्टर सीवेज के पानी का पीछा करते हुए काली घाट तक पहुंचा. काली घाट की अंटा घाट से दूरी 200 मीटर है. आखिरकार रिपोर्टर काली घाट पर उस जगह तक भी पहुंच गया जहां सीवेज वाला बड़ा नाला गंगा के पानी में मिल रहा था.
कचरे से अटा पड़ा है अंटा घाट
अंटा घाट हो या काली घाट, हर जगह बिना ट्रीट किया हुआ और रासायनिक कचरा देखा जा सकता है. घरों के कूड़े से भरे पॉलिथिन पैकेट गंगा की बदहाली को खुद ही बयां कर रहे थे. सीवेज का पानी जब नाले के जरिए गंगा में समा जाता है तो नदी के पानी का रंग कैसा हो जाता है, ये जानने के लिए एक बोतल डुबो कर पानी भरा गया.
रिपोर्टर के लिए ये हैरान करने वाला था कि पानी का रंग काला था. इस पानी के किसी तरह के इस्तेमाल की बात तो दूर इसमें डुबकी लगाना भी कितना असुरक्षित है, किसी के लिए ये अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है.
पटना में गंगा के घाटों की ये हालत देखकर सवाल उठता है कि आखिर गंगा की सफाई के लिए जो करोड़ों रुपए खर्चे जा रहे हैं, उनका सही नतीजा कब सामने आएगा?