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कांग्रेस में अपना भविष्य देख रहे हैं तारिक अनवर, बिहार में बनेंगे पार्टी का चेहरा?

तारिक अनवर एनसीपी को छोड़कर एक बार फिर घर वापसी कर सकते हैं. माना जा रहा है कि जल्द ही वो कांग्रेस पार्टी जॉइन करेंगे. हालांकि उन्होंने अभी किसी भी पार्टी में जाने की बात नहीं कही है, लेकिन पिछले तीन सालों की उनकी कार्यशैली को देखें तो कांग्रेस को लेकर उनका स्टैंड अब पहले जैसे नहीं रहा.

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राहुल गांधी और तारिक अनवर (फाइल फोटो, PTI)
राहुल गांधी और तारिक अनवर (फाइल फोटो, PTI)

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सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मु्द्दे पर 1999 में कांग्रेस से बगवात कर शरद पवार के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  (एनसीपी) का गठन करने वाले तारिक अनवर ने पार्टी को अलविदा कह दिया है. इतना ही नहीं उन्होंने लोकसभा सदस्य पद से भी इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में अब माना जा रहा है कि एक बार फिर कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं.  

सूत्रों की मानें तो तारिक अनवर कांग्रेस में अपना भविष्य देख रहे हैं. इसी के मद्देनजर उन्होंने एनसीपी से इस्तीफा दिया है. बिहार का कटिहार लोकसभा क्षेत्र तारिक अनवर की कर्मभूमि रही है. इसी संसदीय सीट से वो चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं.

एनसीपी छोड़ने का राफेल बना बहाना

कांग्रेस के पास बिहार में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में राफेल मुद्दे पर शरद पवार के बयान से तारिक अनवर को पार्टी छोड़ने का आधार मिल गया है.

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तारिक अनवर ने कहा, शरद पवार का राफेल पर दिया गया बयान मुझे ठीक नहीं लगा. एनसीपी की तरफ से जो सफाई दी गई वो सही नहीं थी. पवार ने जब बयान दिया था तो खुद उनको सफाई देनी चाहिए थी. हालांकि उनकी तरफ से खुद कोई सफाई नहीं आई तो मैंने इस्तीफा दे दिया.

घर वापसी के पीछे छिपी है सियासत

एनसीपी छोड़ने के बाद किस पार्टी में जाएंगे इस सवाल पर तारिक अनवर ने कहा कि ये अभी तय नहीं है. समर्थकों से बात करने के बाद तय करूंगा. इसके बाद बताउंगा. हालांकि हमारे सूत्रों के मुताबिक वे कांग्रेस में जाने का मन बना चुके हैं और आने वाले 8 से 10 दिनों में कांग्रेस जॉइन कर सकते हैं.

बिहार में कांग्रेस अपने आधार को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है, लेकिन पार्टी के पास राज्य में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में तारिक अनवर को अपना राजनीतिक भविष्य कांग्रेस में सेफ नजर आ रहा है. वो 'घर वापसी' कर बिहार में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनना चाहते हैं.

एनसीपी छोड़ने का निर्णय उन्होंने बहुत पहले से ही कर लिया था. एनसीपी में उनके और पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल के बीच रिश्ते बेहतर नहीं रहे हैं. 2014 के चुनाव के बाद से दोनों नेताओं के बीच कई बार पार्टी की बैठकों में अलग-अलग विचार रहते थे.

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ऐसे आए राहुल गांधी के करीब

कांग्रेस में राहुल गांधी के कद बढ़ने के बाद से ही तारिक अनवर 'घर वापसी' करने के जुगत में थे. तारिक अनवर कांग्रेस में वापसी की राह 2016 से ही तलाश रहे थे. नोटबंदी के बाद राहुल गांधी ने जब पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस करने उतरे थे, तब तारिक अनवर देर से पहुंचे थे. ऐसे में राहुल ने अपने बगल में बैठे ज्योतिरादित्य सिंधिया से तारिक अनवर के लिए सीट छोड़ने को कहा था. इस घटना के बाद से राहुल से उनकी नजदीकियां बढ़ीं.

पिछले दो सालों से तारिक अनवर के उर्दू अखबार में छपने वाले लेखों में वह कांग्रेस को लेकर काफी नरम थे. इतना ही नहीं वो राहुल गांधी की कार्यशैली की तारीफ भी करते रहे हैं. तारिक अनवर ने आजतक से बातचीत करते हुए दो महीने पहले ही 2019 में विपक्षी की ओर से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बताया था. जबकि शरद पवार ने कहा था कि अभी विपक्ष का चेहरा तय नहीं है.

तारिक अनवर का सियासी सफर

सीताराम केसरी के सानिध्य में तारिक अनवर ने राजनीतिक सफर शुरू किया था. 1977 में कटिहार लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन वो जीत नहीं पाए. तीन साल के बाद 1980 में जीतकर संसद पहुंचे. इसके बाद 1985 में दोबारा जीत हासिल की.

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तारिक अनवर राजनीति में तेजी से अपनी जगह बनाते गए. संसद बनते ही यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 1988 में वे कांग्रेस सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 1989 में वे बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष बने और 1993 में कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने.

तारिक अनवर 1996 में वे तीसरी बार संसद चुने गए और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पीवी नरसिंहा राव के राजनीतिक सचिव बने. इसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी बने तो तारिक अनवर को 1997 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्‍य चुना गया. तारिक अनवर 1998 में वे एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीते.

सोनिया के चलते की थी कांग्रेस से बगावत

1999 में कांग्रेस की कमान जब सोनिया गांधी ने संभाली तो शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने पार्टी से बगवात कर दी थी. इन तीनों नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेश मूल को मुद्दा बनाया था. इसके बाद तीनों नेताओं ने मिलकर एनसीपी का गठन किया था.  हालांकि, बाद में यूपीए की जब केंद्र में सरकार बनी तो एनसीपी कांग्रेस के साथ आ गई थी.

2004 के लोकसभा चुनाव में वे एक बार फिर से चुनाव जीतकर मनमोहन सिंह सरकार में कृषि और फूड प्रोसेसिंग इंडस्‍ट्रीज के राज्‍यमंत्री बने. इसके बाद 2009 के चुनाव मे वो हार गए, लेकिन बाद में राज्यसभा सदस्य बने. इसके बाद 2014 के लोकसभा में फिर जीतकर संसद पहुंचे.

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