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क्या है उन दो नेताओं की पॉलिटिकल पावर, जिनकी सलाह पर नीतीश ने किया था BJP से ब्रेकअप?

बिहार में सियासी बदलाव के चार महीने के बाद नीतीश कुमार ने खुलासा किया है कि उन्होंने अपनी पार्टी के नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव और ललन सिंह के सलाह पर बीजेपी से गठबंधन तोड़कर महागठबंधन के साथ गए हैं. ये दोनों ही नेता को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है और शुरू से जेडीयू में है. हालांकि, एक दौर में यह दोनों ही नेता लालू यादव के विरोध में रहे हैं.

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बिजेंद्र यादव, नीतीश कुमार, ललन सिंह
बिजेंद्र यादव, नीतीश कुमार, ललन सिंह

बिहार की सियासत में हर रोज नए सियासी समीकरण बनते और बिगड़ते नजर आ रहे हैं. नीतीश कुमार कब किस करवट बैठ जाएं कोई कह नहीं सकता. पिछले पांच सालों में दो बार सियासी पाला बदल चुके हैं. 2017 में महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ हाथ मिलाया था. 2020 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े और सरकार बनाई, लेकिन इसी साल अगस्त में एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन में वापसी कर गए हैं. 

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बिहार में सियासी बदलाव के चार महीने के बाद रविवार को नीतीश कुमार ने खुलासा किया है उन्होंने अपने दो नेताओं के कहने पर ही बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा है और महागठबंधन के साथ जाने का फैसला किया है. यह नेता बिजेंद्र यादव और ललन सिंह हैं. इन्हीं दोनों नेताओं के सुझाव पर नीतीश ने बीजेपी से नाता तोड़ा  हैं. ऐसे में सभी के मन में है कि आखिर जेडीयू के ये दोनों नेता कौन हैं और उनकी सियासी ताकत क्या है, जिनकी सलाह पर नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ दोस्ती तोड़ दी.
 
कौन है बिजेंद्र प्रसाद यादव? 

जेपी आंदोलन से एक समाजवादी नेता के तौर अपनी राजनीति शुरू करने वाले बिजेंद्र प्रसाद यादव जेडीयू के कद्दावर नेता है. नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद नेताओं में उन्हें माना जाता है. बिजेंद्र यादव सुपौल सीट से लगातार 8वीं बार विधायक हैं और नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री. वो अपनी कार्यशैली और निष्ठा की बदौलत लगभग 32 वर्षो से सत्ता के शीर्ष पर बने हुए हैं. तीन दशक के सियासी सफर में बिजेंद्र यादव सिंचाई, वित्त, ऊर्जा और विधि जैसे भारी भरकम मंत्रालय का कार्यभार संभाल चुके हैं.

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कांग्रेसी हुकूमत के बाद 1990 में बिहार में हुए सत्ता परिवर्तन के दौर में पहली बार जनता दल के टिकट पर बिजेंद्र यादव विधायक चुने गए, जिसके बाद से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं. लालू प्रसाद यादव की सरकार में 1991 में पहली बार ऊर्जा राज्य मंत्री बने. अपनी कर्मठ और ईमानदार छवि की बदौलत मजबूत पहचान बनाई. 1997 में लालू प्रसाद और शरद यादव के गुटों में पार्टी विभक्त हो गई. बिजेंद्र यादव ने लालू मंत्रीमंडल से इस्तीफा देकर शरद यादव का साथ दिया. इसके बाद नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद बन गए. 

नीतीश की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे और 2005 का बिहार चुनाव पार्टी ने उन्हीं के अगुवाई में लड़ी. सरकार में आने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें भारी भरकम विभाग सौंपा और मौजूदा समय में बिहार के ऊर्जा व योजना विकास मंत्री हैं. जेडीयू के यादव चेहरा माने जाते हैं और नीतीश कुमार ने इन्हीं बिजेंद्र यादव के सुझाव पर अगस्त 2022 में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़कर महागठबंधन में वापसी की है. हालांकि, 2015 में नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तो बिजेंद्र यादव को कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी थी. वक्त और सियासत ही है कि कभी जिस आरजेडी के चलते वो मंत्री नहीं बन सके थे, उसी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने की पैरवी की. 

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ललन सिंह कौन है?

राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद चेहरा माने जाते हैं और जेडीयू के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर हैं. ललन सिंह की नीतीश कुमार के साथ ललन सिंह ने भी जेपी आंदोलन से अपनी सियासी पारी का आगाज किया था. नीतीश कुमार और ललन सिंह क्लासमेट भी रह चुके हैं. ललन सिंह जेडीयू और नीतीश के प्रमुख रणनीतिकार भी माने जाते हैं. नीतीश कुमार के साथ मजबूत संबंधों के बल पर ही जेडीयू में ललन सिंह सीएम नीतीश कुमार के बाद सबसे ताकतवर नेता हैं. 2019 में मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से ललन सिंह सांसद हैं और जेडीयू के भूमिहार चेहरा माने जाते हैं. 

बिहार में लालू यादव के खिलाफ सियासी संकट खड़ करने वाले में ललन सिंह का भी नाम आता है. चारा घोटाला मामले में लालू यादव के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका डालने वालों में ललन सिंह का नाम भी शामिल था. 2009 में ललन सिंह के ऊपर पार्टी फंड के गलत इस्तेमाल का आरोप लगा था, इसके बाद ललन सिंह ने नीतीश कुमार से दूरी बनाते हुए पार्टी तक छोड़ दी थी. हालांकि, कुछ समय बाद नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच सुलह हो गई और नीतीश कुमार ने उन्हें विधान परिषद भेजकर बिहार सरकार में मंत्री बनवाया था. 

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2015 के बाद बिहार में जेडीयू-आरजेडी की सरकार बनने के बाद से ही ललन सिंह असहज महसूस कर रहे थे. बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार के घोटाले के आरोप लगाए तो नीतीश कुमार के करप्शन पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर जवाब देना मुश्किल हो रहा था. ऐसे में तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली से मिलकर ललन सिंह ने आरजेडी- जेडीयू गठबंधन को खत्म करवा कर फिर 2017 में जेडीयू को वापस एनडीए में वापसी कराई. 

साल 2020 का बिहार चुनाव बीजेपी-जेडीयू एक साथ मिलकर लड़ी और एक बार फिर से सरकार बनाने में सफल रही. जेडीयू पहली बार तीसरी नंबर की पार्टी बनी. हीं, नीतीश कुमार के मर्जी के बिना केंद्र में आरसीपी सिंह के मंत्री बनने के बाद ललन सिंह नीतीश के सबसे भरोसेमंद बन गए. इसी के बाद नीतीश ने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद उन्हें बैठा दिया. नीतीश कुमार ने खुद खुलासा किया है कि ललन सिंह के सलाह पर ही उन्होंने बीजेपी से साथ गठबंधन तोड़कर महागठबंधन में वापसी किए हैं. 
 

 

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