बिहार की सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) एक्टिव मोड में आ गई है. अन्य पिछड़ा वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए जातिगत सर्वे का दांव चलने के बाद जेडीयू अब अति पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोट साधने के लिए नई रणनीति पर काम कर रही है. जेडीयू ने भाईचारा यात्रा और कर्पूरी चर्चा अभियान शुरू कर दिया है. पार्टी 15 अगस्त से भीम संवाद कार्यक्रम भी शुरू करेगी.
ये भी पढ़ें- 'फूलपुर की जनता बनाएगी FOOL', आरसीपी का नीतीश पर हमला, निखिल आनंद बोले- PAK से भी लड़ सकते हैं
लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने का समय बचा है, ऐसे में नीतीश कुमार के इन कार्यक्रमों का मकसद क्या है? जेडीयू इसे भाईचारे का संदेश देने की कवायद बता रही है. वहीं, ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने का समय बचा है, नीतीश कुमार की पार्टी के इन कार्यक्रमों के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं.
ये भी पढ़ें- नीतीश कुमार को 2024 चुनाव में यूपी की फूलपुर सीट से क्यों लड़ाना चाहती है JDU?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि लोकसभा चुनाव बहाना है. नीतीश कुमार का निशाना विधानसभा चुनाव है. नीतीश विधानसभा चुनाव से पहले लोकसभा चुनाव में नए समीकरण टेस्ट कर सेट कर लेना चाहते हैं जिससे जेडीयू पिछले चुनाव की तुलना में मजबूती से उभरे. उनका मुख्य मकसद ये है कि जेडीयू ऐसी पोजिशन बरकरार रखे जिससे बिहार में उसके बगैर न तो बीजेपी सरकार बना सके और ना ही आरजेडी. बिहार की सत्ता के लिए बीजेपी और आरजेडी, दोनों ही दलों के लिए जेडीयू जरूरी और मजबूरी बनी रहे.
क्या है भाईचारा यात्रा का मकसद
जेडीयू की भाईचारा यात्रा 6 सितंबर तक चलनी है. तीन चरणों में संपन्न होने वाली ये यात्रा बिहार के हर जिले में जाएगी. नीतीश कुमार ने इस यात्रा की जिम्मेदारी जेडीयू एमएलसी खालिद अनवर को सौंपी है. नीतीश सरकार में मंत्री जेडीयू के जमा खान ने कहा है कि बीजेपी नफरत फैलाने में जुटी है. ऐसे में ये यात्रा समाज में भाईचारे का संदेश देगी.
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि जेडीयू की इस यात्रा के जरिए नीतीश कुमार एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं. नीतीश और उनकी पार्टी की कोशिश है कि सांप्रदायिक आधार पर वोटों का पोलराइजेशन हो, ऐसी किसी भी परिस्थिति का निर्माण न होने दिया जाए. दूसरा ये कि मुस्लिम मतदाताओं के बीच जेडीयू ने अपनी जो सियासी जमीन गंवाई है, उसे वापस हासिल कर सकें.
बिहारशरीफ, सासाराम में इसी साल रामनवमी के दिन भड़की हिंसा को लेकर बीजेपी ने नीतीश कुमार पर हमला बोल दिया था. नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी में जाने पर भी बीजेपी ने सवाल उठाए थे. बीजेपी का रुख देखते हुए राजनीति के जानकार भी ये मान रहे थे कि लोकसभा चुनाव में ये मुद्दा बड़ा हो सकता है.
कर्पूरी चर्चा के जरिए क्या पाना चाहते हैं नीतीश
बिहार की सियासत में जातीय समीकरण के अपने मायने हैं. लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की सियासत का आधार एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण रहा तो वहीं नीतीश की पार्टी का आधार लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण. बीजेपी ने नीतीश कुमार के वोट बेस के कुश यानी कोइरी वर्ग में सेंध लगाने के लिए दोहरा दांव चल दिया है.
बीजेपी ने पहले बिहार बीजेपी की कमान सम्राट चौधरी को सौंप दी और फिर उपेंद्र कुशवाहा को भी अपने साथ जोड़ लिया. सम्राट चौधरी भी कोइरी वर्ग से आते हैं. कोइरी और कुशवाहा समाज के करीब 12 फीसदी वोटर हैं. इनमें भी आठ फीसदी कोइरी हैं. जेडीयू के नेता सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में जाने की वजह से किसी भी तरह के नुकसान की अटकलों को खारिज कर रहे हैं. लेकिन जानकार अति पिछड़ा वर्ग में जमीन मजबूत करने की कवायद को इसी नुकसान की भरपाई की कोशिश बता रहे हैं.
गौरतलब है कि बीजेपी की नजर भी इस वोट बैंक पर है. नीतीश कुमार की पार्टी ने पहले जातिगत सर्वे का दांव चला जिससे बीजेपी भी बैकफुट पर आ गई. जातिगत जनगणना की मांग खारिज करती रही पार्टी बिहार में नीतीश सरकार के कदम का विरोध नहीं कर सकी. बिहार बीजेपी ने भी बयान जारी कर कहा कि हमने जातिगत सर्वे के मुद्दे का समर्थन किया था. अब कर्पूरी चर्चा के जरिए नीतीश की रणनीति अति पिछड़ी जातियों में अपनी पैठ मजबूत करने की है.
भीम संवाद के पीछे क्या है नीतीश की रणनीति
बिहार में करीब 16 फीसदी दलित और महादलित वोटर हैं जिसमें 6 फीसदी पासवान हैं जो दलित में आते हैं. महादलित की भागीदारी 10 फीसदी है. महादलित में भी करीब 6 फीसदी मुसहर मतदाता हैं और इसी मुसहर बिरादरी से जीतनराम मांझी आते हैं जो अब एनडीए में जा चुके हैं. महादलित नीतीश कुमार को वोट करते रहे हैं जबकि पासवान लोक जनशक्ति पार्टी का कोर वोटर रहा है.
अमिताभ तिवारी ने कहा कि जहरीली शराब से मौत की घटनाओं के कारण महादलित नीतीश सरकार से नाराज हैं. जेडीयू का भीम संवाद महादलित वोट पर पकड़ बनाए रखने और एलजेपी के दो भाग में बंट जाने के बाद पासवान मतदाताओं को तीसरा विकल्प देने की कोशिश है.