बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पर दायर याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चुनाव आयोग का जो निर्देश है, उसके अनुसार जिस अपराधिक मामले में संज्ञान होता है उसे ही अपने शपथ पत्र में लिखना होता है. 26 साल पुराने इस मामले में 2009 में कोर्ट ने भी संज्ञान लिया. उसके बाद पटना हाईकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी.
ऐसे में अपने शपथ पत्र में उसे शामिल नहीं किया जा सकता था. जब कोर्ट ने संज्ञान लिया तब उस केस के बार में हमने चुनाव आयोग को जानकारी दी. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि नीतीश कुमार ने 1991 में हुई हत्या के मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर का जिक्र नहीं किया है. आरोप है कि नीतीश कुमार ने हलफनामे में यह साक्ष्य छुपाया है. इस वजह से उन्हें संवैधानिक पद पर रहने का हक नहीं है.
नीतीश कुमार का कहना है कि संज्ञान नहीं लिए गए केस को शपथ पत्र में देना अनिवार्य नहीं है. इस मामले में कोर्ट ने चुनाव आयोग से दो हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है. नीतीश कुमार ने कहा कि चुनाव आयोग इसका जवाब देगा.
गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अयोग्य करार दिए जाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करते हुए दो हफ्ते में जवाब तलब किया है. सुप्रीम कोर्ट के वकील एमएल शर्मा ने नीतीश के खिलाफ दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया कि उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में खुद के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों की बात छुपाई.
याचिका में कहा गया है, 'नीतीश कुमार ने वर्ष 2004 और 2012 के चुनाव में दाखिल शपथ पत्र में 1991 में हुई हत्या के एक मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर का जिक्र नहीं किया. नीतीश ने अपने हलफनामे में यह साक्ष्य छुपाया है और इस कारण वह इस संवैधानिक पद पर नहीं रह सकते. उन्हें विधान परिषद की सदस्यता से अयोग्य करार दिया जाए.'