बिहार में फिर से सरकार पर नया लेबल चस्पा होने जा रहा है. अब एनडीए की बजाए महागठबंधन की सरकार बनने जा रही है. कुछ महीनों पहले तक जो तेल-पानी की तरह धुर राजनीतिक विरोधी थे, कुछ हफ्ते पहले उनके तेवर नरम दिखे और अब तो घी-खिचड़ी जैसे हो गए हैं. इस बार भी नीतीश कुमार ही सीएम होंगे लेकिन उनका गठबंधन राजद के साथ होगा लेकिन सरकार की टोपी बदलने से पहले नीतीश कुमार को इस्तीफा देना होगा.
पहली सरकार गिरेगी तभी दूसरी बनेगी
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संसदीय परंपरा के विशेषज्ञ जीसी मलहोत्रा के मुताबिक मुख्यमंत्री भले वही हों लेकिन मुख्यमंत्री बनाने वाली जमात बदल रही है, लिहाजा पहली सरकार गिरेगी फिर दूसरी सरकार बनेगी यानी नीतीश कुमार एक बार इस्तीफा देंगे फिर नए समर्थकों का समर्थन पत्र लेकर राज्यपाल से अगली सरकार बनाने का दावा करेंगे.
सरकार का लेबल बदल रहा है
लोकसभा के एक अन्य पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी का कहना है कि सरकार का लेबल बदल रहा है तो कंटिन्यूटी में सरकार नहीं चल सकती. एनडीए की सरकार अब महागठबंधन की सरकार के रूप में होगी. अब तक विपक्ष में बैठे विधायक सत्ता पक्ष में आ जाएंगे. सत्ता पक्ष में बैठे बीजेपी विधायक अब विपक्ष का हिस्सा बनेंगे.
इसके लिए जरूरी है कि मौजूदा सरकार इस्तीफा दे और नई सरकार का शपथ ग्रहण हो. मुख्यमंत्री भले वही हों लेकिन सारी रस्में नए सिरे से होंगी यानी सरकार बनाने का दावा, शपथ ग्रहण और सदन में बहुमत सिद्ध करने की कवायद, सब कुछ फिर से होगा.
बिहार में 2014-2017 वाली आ गई स्थिति
वैसे भी अब तक के डेवलपमेंट के मुताबिक जेडीयू-रजद के 124 विधायक होते हैं, जबकि बहुमत का आंकड़ा 122 है. कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन का एलान किया है यानी स्थिति 2014 से 2017 के दरम्यान वाली है.
बीजेपी और जेडीयू दोनों को आगामी चुनाव में अपना राजनीतिक नफा नुकसान दिखने लगा था. दोनों ने अपने चुनावी ज्योतिष के चंद्रमा देखते हुए फैसला कर लिया. अब फिर स्थितियां कुछ आठ साल जैसी हो गई हैं, जब 2014 में नीतीश ने एनडीए को टाटा कर राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. सरकार तीन साल चली थी.