बिहार की राजनीति में फिर बड़ा उलटफेर हो गया है. बीजेपी से अलग हो नीतीश कुमार ने आरजेडी संग सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है. अटकलें तो पिछले कई दिन से लग रही थीं, अब विधायक दल की बैठक के बाद नीतीश ने गवर्नर को इस्तीफा सौंप दिया. बीजेपी इस पूरे प्रकरण में ठगी सी नजर आ रही है. सवाल उठ रहे हैं कि वो इतने बड़े घटनाक्रम से अनभिज्ञ कैसे रही? क्या बिहार के पिछले घटनाक्रमों को पार्टी ने नजरअंदाज किया या कोई विकल्प न होने के चलते वे बेबस देखती ही रही?
महाराष्ट्र पर था बीजेपी का पूरा फोकस
यहां सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि पिछले कुछ महीने से राजनीति के केंद्र में महाराष्ट्र बना हुआ था. सबसे बड़ा मुद्दा वहीं की सियासत थी. कारण सरल था. उद्धव ठाकरे जैसे बड़े कद्दावर नेता को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. जितने बड़े स्तर पर एकनाथ शिंदे ने बगावत के सुर बुलंद किए, उद्धव के लिए अपनी सियासी जमीन बचाना मुश्किल हो गया.
महाराष्ट्र की इस पूरी सियासत में बीजेपी ने अहम रोल निभाया. बैटिंग जरूर पीछे से की गई, लेकिन सक्रियता हाई थी. शिंदे समर्थक विधायकों को पहले बीजेपी शासित गुजरात में फुल प्रोटेक्शन में रखा गया और उसके बाद महाराष्ट्र से दूर असम में बीजेपी सरकार ने उनकी मेहमाननवाजी की. अंत में ये विधायक बीजेपी शासित तीसरे राज्य गोवा के मेहमान बने. नतीजा महाराष्ट्र में तख्ता पलट हो गया और उद्धव के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार की जगह शिंदे-फडणवीस की एनडीए सरकार ने ले ली.
बिहार में नीतीश बना रहे थे दूरी
जब बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कोशिश में लगी हुई थी, बिहार में उसकी पार्टी की जेडीयू के साथ कई मुद्दों पर तकरार हो रही थी. मुद्दे बदलते गए, लेकिन दोनों पार्टियों के मतभेद बढ़ते गए. फिर चाहे वो आरसीपी सिंह का मसला रहा हो या फिर स्पीकर विजय कुमार सिन्हा से नीतीश की लगातार होती तकरार. कहने को ये लग सकता है कि नीतीश कुमार, बीजेपी से इन्हीं मुद्दों की वजह से नाराज चल रहे थे. ये मुद्दे ही उनकी वो मजबूरियां बन गए जिस वजह से उन्होंने फिर पाला बदलने का फैसला कर लिया. लेकिन राजनीतिक जानकार इस पूरे घटनाक्रम को सिर्फ बिहार तक सीमित कर नहीं देखते. उनकी नजरों में नीतीश कुमार को तो असल में एक कारण की तलाश थी, वे तो एक सोची-समझी रणनीति के तहत बीजेपी से अलग होने का मन काफी पहले बना चुके थे.
2024 में हो सकते हैं पीएम उम्मीदवार
बिहार की राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भिल्लारी के मुताबिक ये 2024 के चुनाव की तैयारी है, जिसकी रूपरेखा नीतीश कुमार के अलग होने वाले फैसले ने बना दी है. नीतीश प्राइम मिनिस्टर बनना चाहते हैं. विपक्ष भी उन्हें पीएम उम्मीदवार के रूप में देख रहा होगा. जिस तरह से नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए पूरे देश में घूमा करते थे, अब नीतीश कुमार भी पूरे देश में घूमेंगे, प्रचार करेंगे.
भिल्लारी कहते हैं कि वर्तमान में कांग्रेस भी कई मामलों की वजह से फंसी हुई है, बंगाल में दीदी ईडी जांच की वजह से मुश्किलों में चल रही हैं, ऐसे में विपक्ष के लिए एक मजबूत चेहरा नीतीश ही बन सकते हैं. नीतीश ये समझते हैं. वे बस मौके की तलाश में थे जो उन्हें अब जाकर मिल गया है.