बिहार में महागठबंधन की सरकार बने अभी दो महीने भी पूरे नहीं हुए कि नीतीश कैबिनेट से आरजेडी कोटे के दो मंत्रियों की छुट्टी हो गई. आरजेडी और जेडीयू में कथित तनातनी के खबरों के बीच महागठबंधन में शामिल छोटे दलों ने समन्वय समिति बनाने की मांग तेज कर दी. सियासी हलचल के बीच कोऑर्डिनेशन कमेटी के लिए तेजस्वी यादव ने रजामंदी भी दे दी, जिसके लिए सहयोगी दलों से नेताओं के दो-दो नाम भी मांगे गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इससे महागठबंधन में सबकुछ ठीक हो जाएगा और गठबंधन में क्या छोटे दलों की सियासी अहमियत बढ़ेगी?
बता दें कि बिहार में सियासी बदलाव के बाद नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस सहित 7 दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. महागठबंधन में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस के अलावा सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (माले) और HAM है. नीतीश सरकार को वामपंथी पार्टियां बाहर से समर्थन कर रही हैं, लेकिन सरकार के सुचारू रूप से कामकाज के लिए समन्वय समिति बनाने की मांग कर रही थी. यह मांग अगस्त में महागठबंधन की सरकार बनने से साथ ही उठने लगी. वामपंथी दलों के साथ कांग्रेस भी यह डिमांड करती रही है.
सहयोगी दलों के बीच गलतफहमी दूर होने की उम्मीद
नीतीश कैबिनेट से आरजेडी नेता सुधाकर सिंह के मंत्री पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद सीपीआई (माले) के विधायक दल के नेता महबूब आलम ने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मिलकर समन्वय समिति बनाने की मांग उठाई. महबूब आलम ने कहा कि सुधाकर सिंह और कार्तिकेय सिंह के इस्तीफे जैसे मामलों से महागठबंधन की सरकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. ऐसे में उन्होंने तेजस्वी यादव से मिलकर तत्काल समन्वय समिति के गठन और साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने का आग्रह किया.
आलम ने बताया कि डिप्टी सीएम ने उनसे कहा कि सीपीआई (माले) की ओर से समन्वय समिति में शामिल होने वाले लोगों के नाम दिए जाएं. उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है कि इसको लेकर एक कमेटी जल्द ही बनाई जाएगी. इस कोर्डिनेशन कमेटी में प्रत्येक पार्टी के कम से कम दो सदस्य होंगे. अन्य गठबंधन सहयोगियों के नेताओं को भी समिति के लिए अपने प्रतिनिधियों के नाम देने के लिए कहा जाएगा. समन्वय समिति बनने से महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच गलतफहमी दूर होने की उम्मीद है और सरकार के लिए साझा कार्यक्रम बनाने में मदद मिलेगी.
नीतीश-तेजस्वी भी तैयार
वामपंथी पार्टियां ही नहीं बल्कि कांग्रेस और जीतनराम मांझी की पार्टी चाहती है कि महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच समन्वय समिति बनाई जानी चाहिए. जीतनराम मांझी की पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान कहते हैं कि पिछले महीने ही नीतीश कुमार से मुलाकात के दौरान समन्वय समिति बनाने की मांग रखी थी, जिसे गठित करने का मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था. कांग्रेस के नेता कोकब कादरी भी कहते हैं कि महागठबंधन में समन्वय समिति बनाने की आवश्यकता है. यह दो स्तरों पर बनाए जाना चाहिए. एक सरकार के समग्र कामकाज के निगरानी के लिए और दूसरा गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच बेहतर तालमेल के लिए.
दरअसल, बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में बनी महागठबंधन सरकार में जेडीयू और आरजेडी का दबदबा है. ऐसे में छोड़े दल भले ही सरकार में शामिल हों या समर्थन कर रहे हो, लेकिन उनका सियासी प्रभाव नहीं दिखता. आरजेडी-जेडीयू में खटास की अटकलों के बीच अब इस महागठबंधन के छोटे सहयोगियों दलों को लगता है कि यह उचित समय है कि 'समन्वय समिति' बनाई जाए, जिसकी अनुपस्थिति को राज्य में एनडीए सरकार के गिरने के लिए अक्सर जिम्मेदार ठहराया जाता है.
RJD-JDU में मनमुटाव?
नीतीश की अगुवाई में महागठबंधन की बिहार में जब से सरकार बनी है तब से जेडीयू-आरजेडी के बीच सियासी मनमुटाव की बातें किसी न किसी रूप से सामने आ रही हैं. दोनों बड़े दलों के बीच नाराजगी की अटकलों को इस बात से बल मिला जब आरजेडी के प्रदेश प्रमुख जगदानंद सिंह ने साफ कहा कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव अगले साल अपने बॉस नीतीश कुमार की जगह लेंगे. इस तरह उन्होंने तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने की बात कही. इसके कुछ ही दिनों बाद जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. सुधाकर लगातार अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे थे.
वहीं, तेजस्वी यादव अपनी ओर से यह कहकर स्थिति को शांत करने की कोशिश करते दिखे कि वह शीर्ष पद पर बैठने के लिए जल्दबाजी में नहीं हैं. साथ ही उन्होंने आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को एक सर्कुलर जारी करने के लिए कहा कि पार्टी कार्यकर्ता कोई भी ऐसा बयान नहीं देंगे, जिससे नए गठबंधन को मुश्किल हो. इसी कड़ी में सुधाकर सिंह और कार्तिकेय सिंह का इस्तीफा लिया गया ताकि नीतीश कुमार के साथ गठबंधन बना रहे.
महागठंबधन के छोटे दल भी जेडीयू और आरजेडी के बीच जारी खींचतान को लेकर सतर्क हैं और मौके की नजाकत को देखते हुए समन्वय समिति और सरकार के लिए साझा कार्यक्रम बनाने की मांग तेज कर दी है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव भी समन्वय समिति बनाने के लिए रजामंद हैं. आरजेडी ने कहा कि इस मामले में पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच चर्चा हो गई और वो समन्वय समिति बनाने के लिए तैयार है. जेडीयू ने भी कहा कि इस दिशा में जल्द फैसला लिया जाएगा और घटक दलों के साथ बात हो गई है.
छोटे दलों की बढ़ेगी ताकत
महागठबंधन में समन्वय समिति बनने से छोटे दलों की सियासी अहमियत बढ़ेगी. समिति में गठबंधन के सभी सहयोगी दल के दो-दो नेताओं के नाम मांगे गए हैं. इस बात को सीपीआई (माले) के विधायक महबूब आलम ने भी कहा कि तेजस्वी यादव ने मुलाकात के दौरान दो प्रतिनिधियों के नाम मांगे हैं. इस तरह से महागठबंधन सरकार में शामिल और बाहर से समर्थन कर रहे सभी दलों के नेता शामिल होंगे. इससे गठबंधन के साथ-साथ सरकार के नीति निर्धारण में आरजेडी और जेडीयू की राय के साथ कांग्रेस, लेफ्ट और जीतनराम मांझी की पार्टी भी मशवरा देगी. सरकार के लिए बनने वाले साझा कार्यक्रम में कांग्रेस, लेफ्ट पार्टी भी अपना एजेंडा शामिल करा सकती हैं.
नीतीश कुमार का बड़ा संदेश
वहीं, नीतीश कुमार समन्वय समिति बनाकर सिर्फ बिहार के सहयोगी दलों को ही ही सियासी संदेश नहीं दे रहे हैं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता के लिए बड़ा मैसेज देना चाहते हैं. इस तरह वह बताना चाहते हैं कि बिहार में जब अपने सहयोगी दलों के साथ समन्वय बनाकर चलते हैं तो देश में भी बनने वाले विपक्षी एकता लिए ऐसा मॉडल होगा. नीतीश कुमार कह चुके हैं कि 2024 के चुनाव में बिहार की तर्ज पर ही विपक्षी एकता बनाना चाहते हैं, जिसमें बीजेपी को छोड़कर सभी दलों को एक साथ लेना चाहते हैं. इसीलिए नीतीश बिहार में छोटे दलों की डिमांड पर बड़ा दिल दिखा रहे हैं और समन्वय समिति बनाने की हरी झंडी दे दी है.