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इमोशनल कार्ड या RJD को गुगली... नीतीश कुमार के 'अब जाने वाले हैं' बयान के क्या मायने

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि हम तो 73 साल के हो गए हैं. अब जाने वाले हैं. नीतीश जैसे मंझे राजनेता ने ये बयान तब दिया है जब वो सूबे की सत्ता के शीर्ष पर हैं और लोकसभा चुनाव भी करीब है. नीतीश के इस बयान के मायने क्या हैं?

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नीतीश कुमार (फाइल फोटोः पीटीआई)
नीतीश कुमार (फाइल फोटोः पीटीआई)

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बयान ने नई सियासी चर्चा को जन्म दे दिया है. नीतीश ने कहा है कि हम तो खुद 73 साल के हो गए हैं. अब जाने वाले हैं. सीएम नीतीश का ये बयान बिहार संग्रहालय के स्थापना दिवस पर आयोजित बिहार संग्रहालय बिनाले -2023 और टूगेदर वी आर्ट कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर आया.

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लोकसभा चुनाव करीब हैं. नीतीश कुमार के यूपी के फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की मांग उनकी ही पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में जोर-शोर से उठ रही है, ऐसे में बिहार में महागठबंधन सरकार की अगुवाई कर रहे नीतीश कुमार जैसे मंझे राजनेता ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए ऐसा क्यों कह दिया? इसे लेकर नई बहस छिड़ गई है. नीतीश का ये बयान लोकसभा चुनाव को लेकर सोची-समझी रणनीति है भविष्य की सियासत का संकेत, नीतीश के इस बयान के मायने क्या हैं?

लोकसभा में भी विधानसभा चुनाव वाला फॉर्मूला

नीतीश के ताजा बयान का मायने-मतलब समझने के लिए थोड़ा पीछे चलने होगा. बिहार में विधानसभा चुनाव चल रहे थे और साल था 2020. लालू यादव तब जेल में थे और बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार. तब नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरी थी. सामने तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन था. तेजस्वी ने बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बना लिया था. तेजस्वी हर जनसभा में सत्ता में आने पर पहली कैबिनेट में 10 लाख नौकरियां देने के आदेश पर हस्ताक्षर के वादे कर रहे थे.

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तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार (फाइल फोटोः पीटीआई)
तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार (फाइल फोटोः पीटीआई)

दूसरी तरफ, लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने भी जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार रखे थे. पहले दो चरण की वोटिंग के बाद एलजेपी फैक्टर और तेजस्वी यादव का रोजगार कार्ड जेडीयू को डैमेज कर रहा है, इस तरह की बातें होने लगीं. नीतीश कुमार ने तीसरे और अंतिम चरण के लिए चुनाव प्रचार के अंतिम दिन 5 नवंबर 2020 को एक चुनावी जनसभा में इमोशनल कार्ड चल दिया. नीतीश ने ऐलान कर दिया कि ये मेरा अंतिम चुनाव है. इस ऐलान को डैमेज कंट्रोल की कोशिश के रूप में देखा गया और बहुमत के लिए जरूरी सीटों के आंकड़े तक एनडीए पहुंच सका तो इसके लिए भी क्रेडिट नीतीश के इस दांव को ही दिया गया.

वरिष्ठ पत्रकार अशोक कहते हैं कि नीतीश कुमार के लिए तब भी सवाल आन का था. 2024 के चुनाव को भी सुशासन बाबू ने नाक का सवाल बना लिया है. सरकार बनना या न बनना, जीत या हार अलग विषय है लेकिन अगर नीतीश खुद को विपक्षी गठबंधन की ड्राइविंग सीट पर लाना चाहते हैं तो उनको अगुवा की तरह मोर्चे से लड़ना भी होगा. विधानसभा चुनाव में अंतिम चुनाव का दांव नीतीश ने तब चला था जब बहुत देर हो गई थी, अंतिम चरण का मतदान बाकी था. इसबार नीतीश ने इमोशनल कार्ड के लिए जमीन तैयार करने का काम पहले से ही शुरू कर दिया है.

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इमोशनल कार्ड या आरजेडी को गुगली

उपेंद्र कुशवाहा का जेडीयू से रास्ते अलग कर लेना हो या पार्टी में नाराजगी की बातें, केंद्र में मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश के बाद तेजस्वी यादव की दावेदारी रही है. जेडीयू और नीतीश कुमार भी ये जानते हैं कि उनके पास इस समय जो संख्याबल है, किसी और नेता को आगे कर उसके नाम पर गठबंधन में सहमति बना पाना मुश्किल कार्य है. नीतीश कुमार जैसा नेता गद्दी ऐसे ही छोड़ देगा, ये भी संभव नहीं नजर आता. आरजेडी भी चाहती है कि नीतीश पटना की गद्दी तेजस्वी यादव के लिए छोड़ दें और दिल्ली की सियासत में एक्टिव हों.

नीतीश कुमार के बाद तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है आरजेडी (फाइल फोटोः PTI)
नीतीश के बाद तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है आरजेडी (फाइल फोटोः पीटीआई)

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि नीतीश कुमार ऐसे महारथी हैं जिसे हर सियासी व्यूह भेदने में महारत है. वे जानते हैं कि आरजेडी उनको दिल्ली धकेल तेजस्वी की ताजपोशी की फिराक में है. नीतीश अगर सत्ता छोड़ते हैं तो जेडीयू के हाथ से पावर फिसल जाएगा. पावर जब फिसल जाए तब क्या होता है, नीतीश अपने विश्वस्त जीतनराम मांझी को सीएम बनाकर देख चुके हैं. नीतीश का ताजा बयान आरजेडी के लिए गुगली है.

भविष्य की सियासत के संकेत क्या

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वरिष्ठ पत्रकार अशोक ने कहा कि नीतीश कुमार जब तक शरीर और स्वास्थ्य इजाजत दे रहे हैं या दिल्ली में कोई बड़ा ओहदा नहीं मिल जाता, बिहार की गद्दी नहीं छोड़ने वाले. नीतीश गठबंधन की वकालत कर रहे हैं तो वहीं यात्राओं के जरिए, जातिगत जनगणना के जरिए जेडीयू की सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद भी. अगर नीतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ते हैं तो गठबंधन के नए समीकरण या मध्यावधि चुनाव के आसार भी बन सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आरजेडी नीतीश के बाद तेजस्वी को सीएम बनाने से कम पर मानेगी, ऐसे आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे.

 

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