scorecardresearch
 

नीतीश कुमार 'दिल्ली कूच' को तैयार, क्या तेजस्वी यादव को बिहार सौंपने का है प्लान?

बिहार की सियासी पिच से 2024 लोकसभा चुनाव की राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. महागठबंधन में वापसी करने के बाद से नीतीश कुमार पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता बनाने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ अपनी सियासी विरासत तेजस्वी यादव के हाथों में सौंपने का भी ऐलान कर दिया है. ऐसे में नीतीश के बयान के क्या मायने हैं?

Advertisement
X
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव

बिहार एक बार फिर सियासत का एपीसेंटर बनता जा रहा है. बिहार की सत्ता पर अंगदी पांव जमाए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो दशक से राज्य में सियासी धुरी बने हुए हैं, लेकिन अब पटना से 'दिल्ली कूच' की तैयारी में हैं. देश भर के अधिकांश क्षेत्रीय दलों के नेताओं को उम्मीद है कि नीतीश कुमार ही वह चेहरा हैं, जो बीजेपी को सीधे चुनौती दे सकते है. 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्रीय सत्ता से नरेंद्र मोदी को हटाने की पटकथा लिख रहे नीतीश कुमार ने बिहार की कमान आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को सौंपने का मन बना लिया है. 

Advertisement

बिहार में सियासी बदलाव के बाद से ही नीतीश कुमार पटना की पॉलिटिक्स से दिल्ली की सियासत के लिए उड़ान भरने की तैयारी कर रहे हैं. इस कड़ी में सीएम नीतीश एक तरफ 2024 के चुनाव में पीएम मोदी और बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने के मिशन में जुटे हैं. वहीं, दूसरी तरफ बिहार में अपनी राजनीतिक विरासत को तेजस्वी यादव के हाथों देने का ऐलान कर दिया है. नीतीश कुमार के दिल्ली कूच करने के अरमानों को पंख लगाने का काम डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी बखूबी कर रहे हैं. 

'दिल्ली कूच' से पहले नीतीश की बैटिंग
नीतीश कुमार दिल्ली कूच करने की कड़ी में सबसे पहले बीजेपी से नाता तोड़कर महागठबंधन में वापसी की ताकि विपक्षी खेमे में खड़े हो सके. इसके बाद दिल्ली आकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, अरविंद केजरीवाल, ओम प्रकाश चौटाला और डी राजा से दिल्ली में मुलाकात की. इतना ही नहीं, ममता बनर्जी और केसीआर से भी मिले. विपक्ष के तमाम नेताओं से मेल-मिलाप कर नीतीश ने 2024 के चुनाव में सभी दलों को आपसी मतभेद भुलाकर बीजेपी के खिलाफ एकसाथ आने की बात कही थी. इस तरह नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की कवायद शुरू की.  

Advertisement

तीन दिन में नीतीश के तीन बड़े बयान
11 दिसंबर- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद कहा कि 2024 में थर्ड फ्रंट नहीं बल्कि बीजेपी के खिलाफ सभी पार्टियां एक प्लेटफॉर्म पर आएं और एक मेन फ्रंट बने. नीतीश बिहार के तर्ज पर विपक्षी एकता बनाने की पैरवी कर रहे हैं. 

12 दिसंबर- नीतीश कुमार ने सोमवार को नालंदा में कहा कि भविष्य में विकास की चिंता न करें, क्योंकि विकास के लिए वह जो काम कर रहे हैं, उसे भविष्य में तेजस्वी यादव आगे-आगे पूरा करते रहेंगे और करवाते रहेंगे. आगे लोगों को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी. उन्होंने कहा कि जब तेजस्वी यादव  कार्यों को आगे बढ़ाएंगे, तब वो और सक्रिय हो जाएंगे. 

13 दिसंबर- नीतीश कुमार ने मंगलवार को महागठबंधन की बैठक के बाद कहा कि साल 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव करेंगे. यह बात हम बहुत पहले से कह रहे हैं. साथ ही नीतीश कुमार ने कहा, 'न तो मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार हूं और न मुख्यमंत्री चेहरा. मेरा एक लक्ष्य बीजेपी को हराना है.' 

नीतीश कुमार की इन बातों से साफ संकेत है कि बिहार की कमान तेजस्वी यादव को सौंपकर दिल्ली की तरफ कूच करना चाहते हैं. नीतीश एक तरफ बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की अगुवाई में 2025 का बिहार चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. बिहार में नीतीश कुमार जबसे एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन में आए, उसके बाद से कयास लगाए जाने लगे कि नीतीश अब पीएम बनने का सपना देख रहे हैं.

Advertisement

नीतीश मंझे हुए सियासी खिलाड़ी हैं!
सीएम नीतीश कुमार सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, उनका अपना काम करने का तरीका है. नीतीश आगे सियासी कदम क्या उठाएंगे, यह बात उनके सिवा किसी को पता नहीं होती. बिहार की सत्ता में बने रहने के लिए वह पाला बदलते रहते हैं. उन्होंने अपने धुर विरोधी समझे जाने वाले लालू प्रसाद यादव से समझौता करने में भी कोई गुरेज नहीं किया. ऐसे में नीतीश ने तेजस्वी को लेकर ऐसे ही बयान नहीं दिया, बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत दिया है. 

बता दें कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार भले ही खुद को अभी पीएम नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप  में पेश न कर रहे हों, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की चाहत जगजाहिर है. इसी मद्देनजर उन्होंने बीजेपी के खिलाफ फ्रंट बनाने बीड़ा उठा रखा है और सारा सियासी तानाबाना उसी के इर्द-गिर्द बुन रहे हैं. नीतीश जानते हैं कि केंद्र की सियासत में पीएम मोदी के विकल्प बनने के लिए सिर्फ चेहरा ही नहीं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा सीटें भी अपने नाम करनी होगी. 

बिहार की सियासी अहमियत
बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटें है. 2024 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं 40 सीटों पर उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत दिखानी होगी. ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव में जेडीयू को ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होगी, क्योंकि 2014 में बीजेपी से अलग होकर लड़ने पर नीतीश कुमार को महज 2 सीटें ही मिल सकी थी. 2019 में बीजेपी के साथ मिलकर लड़ने पर जेडीयू 16 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. 

Advertisement

बीजेपी ने 2024 में चुनाव में क्लीन स्वीप का लक्ष्य रखा है तो नीतीश कुमार भी बखूबी समझते हैं कि 2024 में बिहार की 35-40 सीटों के बीच रहते हैं तो फिर दिल्ली की सत्ता के लिए अहम रोल अदा करेंगे. कुढ़नी उपचुनाव हार के बाद नीतीश ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व की बात करके आरजेडी के हौसले को बढ़ाना चाहते हैं, क्योंकि आरजेडी नेता तेजस्वी को बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. नीतीश ने 2025 में तेजस्वी का नाम उछालकर महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियां का समर्थन जुटाए रखना चाहते हैं.

तेजस्वी और नीतीश की केमिस्ट्री
तेजस्वी यादव ने कहा है कि अभी हम नीतीश कुमार के मार्गदर्शन में साथ काम कर रहे हैं. चुनौती 2024 का चुनाव है और हम उसके लिए लड़ेंगे. इस तरह से तेजस्वी ने भी साफ कर दिया है कि 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार से साथ मिलकर लड़ेंगे, क्योंकि आरजेडी को भी पता है कि नीतीश के बिना यह संभव नहीं होगा. इसीलिए तेजस्वी ने जेडीयू से ज्यादा सीटें होने के बाद भी सीएम पद नीतीश को दे दिया था और कार्तिकेय सिंह और सुधाकर सिंह का इस्तीफा लेने में भी आरजेडी ने देर नहीं की. 

नीतीश ने तेजस्वी यादव को कमान सौंपने की बात 2025 में की है, लेकिन उससे पहले 2024 का लोकसभा चुनाव है. ऐसे में सवाल उठता है कि 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार अगर पीएम मोदी को सत्ता में आने से रोकने में सफल नहीं रहते हैं, तो क्या 2025 में सीएम पद की दावेदारी छोड़ देंगे और तेजस्वी के हाथों में बागडोर देंगे? 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement