बिहार में सियासत की हवा का रुख इस ओर साफ इशारा कर रहा है कि जीतनराम मांझी की जगह नीतीश कुमार फिर से सीएम हो सकते हैं. जीतनराम मांझी और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के बीच मीटिंग हो रही है. समझा जा रहा है कि दोनों के बीच नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चर्चा हो रही है. नीतीश की बुलाई बैठक में नहीं पहुंचे मांझी
शरद यादव मुख्यमंत्री आवास में ही मांझी से मुलाकात कर रहे हैं. बुधवार को भी शरद और मांझी के बीच मुलाकात हुई थी. पार्टी की ओर से इस मुलाकात पर अभी कुछ नहीं कहा गया है.
हालांकि शरद यादव बार-बार कहते रहे हैं कि जीतनराम मांझी को सीएम पद से नहीं हटाया जाएगा. पार्टी के नेता इस ओर इशारा कर चुके हैं कि मांझी को यह समझाने की कोशिश हो रही है कि वे खुद नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव करें.
मुलायम ने किया नीतीश को फोन, CM पद पर चर्चा
एक तरफ जनता जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव कहते हैं कि जीतनराम मांझी अपने पद पर बने रहेंगे. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तीन बार नीतीश कुमार को फोन करके उनसे बात कर चुके हैं. मुलायम नीतीश पर फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए दबाव बना रहे हैं.
आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद पहले ही कह चुके हैं कि जेडीयू का सीएम कौन बने, इससे उनको कोई लेना-देना नहीं है. उन्हें नीतीश के मुख्यमंत्री बनने पर कोई ऐतराज नहीं है. जीतनराम मांझी सरकार में दलित मंत्री रमई राम कहते हैं कि 15 फरवरी तक मांझी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे.
इन सबके बीच एक बात सभी जानते हैं, चाहे वे मंत्री हों या विधायक, जीतनराम मांझी की बदौलत बीजेपी और नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं किया जा सकता है. ऐसे में नीतीश को फिर से सत्ता की बागडोर संभालनी ही होगी.
नीतीश कब और कैसे बनेंगे सीएम?
10 फरवरी को दिल्ली चुनाव का परिणाम आना है. अगर AAP को सफलता मिलती है, तो यह नीतीश के लिए उपयुक्त वक्त होगा. दिल्ली की हार से बीजेपी को झटका लगेगा. अगर दिल्ली का परिणाम इससे उल्टा होता है, तब भी नीतीश के पास 10 फरवरी से लेकर 20 फरवरी तक का ही समय है, क्योंकि 20 फरवरी से बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. सत्र के लंबा चलने की वजह से उसके बाद नेतृत्व परिवर्तन का कोई मतलब भी नहीं रह जाएगा. साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी इसका असर होगा.
15 फरवरी की डेडलाइन इसलिए तय की गई है कि उस दिन पटना के गांधी मैदान में जेडीयू अपना कार्यकर्ता सम्मेलन कर रहा. सम्मेलन नीतीश ने ही बुलाया है. जेडीयू के नीतीश समर्थक चाहते हैं कि वे उस दिन बतौर मुख्यमंत्री उसमें हिस्सा लें, ताकि इसका अच्छा प्रभाव पड़े.
दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि बिहार में नीतीश की सरकार आने के बाद जो कार्यशैली बदली थी, वह जीतनराम मांझी के सरकार के दौरान बिल्कुल पुराने ढर्रे पर चली गई. प्रदेश में तबादलों का दौर चल पड़ा है. तबादलों को लेकर तो मांझी के दो मंत्री, ललन सिंह औेर पीके शाही ने अपनी ही सरकार पर सवाल भी उठाए हैं. जीतनराम मांझी खुद कहते हैं कि मंत्री और अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते हैं. कानून-व्यवस्था की हालत खराब रही है, इसलिए पार्टी नेतृत्व को लगता है इन परिस्थितियों में आने वाले चुनाव में बीजेपी को फायदा मिल सकता है. यही वजह है कि नीतीश पर फिर से मुख्यमंत्री बनने का दबाव बढ़ रहा है.
हालांकि बीजेपी यह कभी नहीं चाहती है कि जीतनराम मांझी अपने पद से हटें, क्योंकि जब तक वो रहेगें, बीजेपी फायदे में रहेंगी. इसलिए बीजेपी के नेता बार-बार उन्हें विधानसभा भंग करने की सलाह भी दे रहे हैं, ताकि चुनाव तक वे केयरटेकर सीएम के तौर पर रहें. मांझी के समर्थक भी यही चाहते हैं.
ऐसे में जेडीयू नेतृत्व काफी फूंक-फूंककर कदम रख रहा है, ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. पार्टी का मानना है कि स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि जीतनराम मांझी खुद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद सम्भालने का प्रस्ताव रखें, ताकि कोई यह न कहे कि उन्हें पद से हटाया गया है.
बहरहाल, अब पार्टी को इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह देखना अभी बाकी है. ऐसा लगता है कि अगले कुछ घंटों में ही मामला पूरी तरह साफ हो जाएगा.