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नीतीश ने चला बड़ा दांव, तमिलनाडु की तर्ज पर आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़ाने की उठाई मांग

दिल्ली में रविवार को हो रही जेडीयू की कार्यसमिति की बैठक में नीतीश कुमार को पार्टी अध्यक्ष चुन लिया जाएगा. इसके पहले ही राष्ट्रीय स्तर अपनी दस्तक को और मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार ने पिछड़ा और मुसलमान कार्ड खेल दिया है.

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नीतीश ने खेला आरक्षण कार्ड
नीतीश ने खेला आरक्षण कार्ड

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दिल्ली में रविवार को हो रही जेडीयू की कार्यसमिति की बैठक में नीतीश कुमार को पार्टी अध्यक्ष चुन लिया जाएगा. इसके पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी दस्तक को और मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार ने पिछड़ा और मुसलमान कार्ड खेल दिया है.

शनिवार को बिहार विधानसभा सभागार में तमिलनाडु की संस्था पेरियार इंटरनेशनल, यूएसए की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार को इस साल का के. वीरामणि अवार्ड फॉर सोशल जस्टिस दिया गया.

केंद्रीय राजनीति की दमदार शुरुआत
इस मौके पर नीतीश कुमार ने दलित और ईसाई मुसलमानों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा उठाया. साथ ही आरक्षण का दायरा बढाने और निजी क्षेत्र में आरक्षण की वकालत कर दी. इस मौके पर भविष्य की रूपरेखा भी दिखी जहां सीपीआई के डी राजा, पीस पार्टी के डॉ अयूब और दविड कड़गम संस्था के के. वीरामणि मौजूद थे. इस कार्यक्रम में ही नीतीश के 2019 की तैयारी दिख गई जब पीस पार्टी के अध्यक्ष ने उन्हे देश का बागड़ोर संभालने और नेतृत्व करने की बात की. वहीं के.सी त्यागी ने उन्हें अब बिहार से आगे बढ़ाकर राष्ट्र को समर्पित कर दिया.

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गांधीजी की प्रेरणा से करूंगा आंदोलन
नीतीश ने कहा कि मैंने गांधीजी के प्रेरणा से संसद में 10 साल पहले ये मुद्दा उठाया था कि धर्म बदलने से जाति नहीं बदलती. दलित मुसलमान और ईसाइयों को एससी-एसटी का दर्जा मिलना चाहिए. एससी और एसटी यानि अनुसूचित जाति और जनजाति किसी भी धर्म के हो सकते हैं. कोई जरूरी नहीं कि सिर्फ हिंदू धर्म के मानने वाले ही को एससी-एसटी का दर्जा मिले. वक्त के साथ बौद्धों और सिखों को एससी-एसटी का दर्जा मिल गया, लेकिन बड़ी संख्या में इस्लाम को मानने वालों और ईसाइयों को इससे महरूम रखा गया.

मजबूत इच्छाशक्ति से होगा परिवर्तन
नीतीश कुमार ने कहा कि इस बार के बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री ने इसे राजनैतिक तौर पर दलितों के हकमारी के रूप में मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया था. इससे मेरे पार्टी के लोग भी घबराए थे, लेकिन मैंने कहा कि इसे मजबूती से रखे क्योंकि मैने सोच-समझकर कहा था. अगर अनूसूचित जाति की संख्या बढ़ेगी तो उनका 27 फीसदी का कोटा भी बढना चाहिए. अगर तमिलनाडु में एससी-एसटी और ओबीसी को मिलाकर 69 फीसदी आरक्षण हो सकता है तो बाकी देश में क्यों नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि इसके लिए एक मजबूत इच्छा शक्ति चाहिए.

50 फीसदी तक बढ़े आरक्षण का दायरा
मंडल कमीशन के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है जिसे हम मानते हैं, लेकिन आरक्षण का दायरा बढ़ना चाहिए. इसपर चर्चा होने का वक्त आ गया. मैं मानता हूं कि मुस्लिम हो, ईसाई हो उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए क्योंकि दलितों की तरह वो भी उसी तरह के उपेक्षा के शिकार हैं, पिछड़ेपन के शिकार हैं. उन्हें एससी-एसटी का दर्जा मिलना चाहिए. और संविधान का संशोधन कर 50 फीसदी का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए.

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