scorecardresearch
 

क्या लालटेन युग से निजात दिला पाएंगे नीतीश?

जब पिछले साल पटना में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भाषण देते समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह घोषणा कर डाली कि यदि वे बिहार के विद्युत परिदृश्य में सुधार न कर सके तो 2015 के चुनावों में वोट ही नहीं मांगेंगे, तो बहुत से लोगों को लगा कि लोकमित्र मुख्यमंत्री कुछ ज्यादा ही बोल गए हैं. कहीं उन्होंने रस्सी समझकर सांप तो नहीं पकड़ लिया?

Advertisement
X

Advertisement

जब पिछले साल पटना में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भाषण देते समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह घोषणा कर डाली कि यदि वे बिहार के विद्युत परिदृश्य में सुधार न कर सके तो 2015 के चुनावों में वोट ही नहीं मांगेंगे, तो बहुत से लोगों को लगा कि लोकमित्र मुख्यमंत्री कुछ ज्यादा ही बोल गए हैं. कहीं उन्होंने रस्सी समझकर सांप तो नहीं पकड़ लिया?

मुख्यमंत्री के भाषण ने बिहार के राजनैतिक एजेंडे को स्पष्ट तौर पर निर्धारित कर दिया है. 2005 का उनका चुनावी अभियान राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जंगल राज के खिलाफ था जबकि 2010 का विधानसभा चुनाव उन्होंने सड़क सुधार के मुद्दे पर जीता था. अब बिजली के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित कर नीतीश ने अगले चुनाव के एजेंडे को करीब-करीब तय ही कर दिया है. लेकिन क्या नीतीश ने ऐसा वादा करके जिसे वे पूरा नहीं कर सकते, कोई गंभीर रणनीतिक गलती कर डाली है?

Advertisement

बहरहाल, नीतीश का गणित इतना कमजोर तो नहीं कि वे गलत समयसीमा निर्धारित करें. स्वतंत्रता दिवस की अपनी इस घोषणा के लगभग तीन महीने पहले उन्होंने पटना जिले के बाढ़ में एनटीपीसी के निर्माणाधीन थर्मल पावर प्लांट का गुपचुप निरीक्षण किया था. निरीक्षण करने के बाद नीतीश ने एनटीपीसी के अधिकारियों से निर्धारित समय सीमा का कड़ाई से पालन करने के लिए कहा. इस परियोजना में पहले ही दो साल से अधिक विलंब हो चुका है और अब नई समयसीमा जून, 2013 निर्धारित की गई है.

कुछ वर्षों के विलंब से चल रही इस विद्युत परियोजना को नीतीश ने 1999 में तब शुरू कराया था जब वे केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे. अब पहली इकाई जून, 2013 में शुरू होने वाली है, यानी अगले संसदीय चुनावों के लगभग सालभर पहले. इस यूनिट की 50 प्रतिशत बिजली बिहार को मिलनी है जिसकी वजह से बिजली संकट से जूझ रहे इस राज्य में इस परियोजना का राजनैतिक महत्व भी है. कोई आश्चर्य नहीं कि विद्युत इंजीनियर से मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार परिणाम चाहते हैं और वह भी ठीक समय पर.    

मुख्यमंत्री ने पिछले साल नवंबर में आइआइटी इंजीनियर और फिर आइएएस अफसर बने संदीप पुंडरीक को नए ऊर्जा सचिव के रूप में नियुक्त किया. जहां प्रदेश सरकार को यह उम्मीद है कि ऊर्जा विभाग के कामकाज को सुधारने में उनकी विशेषज्ञता का फायदा मिलेगा, वहीं 1993 बैच के आइएएस अधिकारी पुंडरीक को विद्युत से संबंधित नीतीश के वादे को हकीकत में उतारने के स्पष्ट निर्देश हैं.

Advertisement

फिर भी प्रदेश सरकार का रास्ता इतना आसान नहीं है. बिहार की अधिकतम मांग 3,000 मेगावाट है जबकि बिजली की कुल उपलब्धता सिर्फ लगभग 1,750 मेगावाट ही है. 54.3 मेगावाट की विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं को छोड़ दिया जाए तो बिहार में अब भी बिजली का कोई उत्पादन नहीं करता.

लेकिन उम्मीद की किरण भी नजर आने लगी है. बिहार में जल्द ही कई विद्युत परियोजनाएं पूरी होने वाली हैं. उदाहरण के लिए राज्य विद्युत बोर्ड के कांटी और बरौनी थर्मल पावर प्लांट के नवीकरण, आधुनिकीकरण एवं विस्तार से लगभग 1,000 मेगावाट बिजली पैदा होगी. उसके बाद बाढ़ सुपर थर्मल पावर प्लांट से उत्पादित बिजली का आधा हिस्सा, 1320 मेगावाट भी बिहार को ही मिलना है. इतना ही नहीं, एक समझौते के तहत 2014 से अगले 25 वर्षों तक बिहार अडानी पावर से 1,000 मेगावाट बिजली खरीदता रहेगा. फिर 2015-16 तक 1,980 मेगावाट वाले नबीनगर सुपर थर्मल पावर प्लांट के भी पूरा हो जाने की उम्मीद है.

ऐसा अनुमान है कि 2015 तक बिहार में बिजली की मांग 4,000 मेगावाट तक पहुंच जाएगी. संयोगवश 2015 में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. यदि सब कुछ योजना के अनुसार चलता रहा तो तब तक बिहार सरप्लस बिजली वाला प्रदेश बन जाएगा और आंतरिक उत्पादन, केंद्रीय सेक्टरों से हिस्सा तथा निजी क्षेत्र से खरीद को मिलाकर बिहार में 5,000 मेगावाट बिजली उपलब्ध होगी.

Advertisement
Advertisement