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आखिर नीतीश क्यों अलापने लगे हैं 'एक देश एक चुनाव' का राग?

बुधवार को नीतीश कुमार दिल्ली में थे और इस बारे में पूछे जाने पर तपाक से उन्होंने कहा कि इस बात के वह शुरू से समर्थक रहे हैं. नीतीश ने कहा कि हर साल भारत में कहीं ना कहीं चुनाव होते रहते हैं और पूरा माहौल उसी में डूबा रहता है. उन्होंने कहा कि अगर एक साथ सभी जगह चुनाव हो तो खर्च भी बचेगा और सरकारों को शांतिपूर्वक काम करने के लिए ज्यादा समय भी मिल सकेगा. नीतीश ने कहा कि वह इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, लेकिन इसके लिए सभी दलों और सभी राज्यों के साथ सहमति बनानी होगी.

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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार

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एक देश एक चुनाव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिल्कुल एक सुर में बोल रहे हैं. पूरे देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की चर्चा ने एक बार फिर तब जोर पकड़ा था, जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बजट सत्र के दौरान अपने अभिभाषण में इसका प्रमुखता से जिक्र किया और कहा कि लगातार चुनाव होते रहने से विकास के कामों में बाधा पड़ती है.

बुधवार को नीतीश कुमार दिल्ली में थे और इस बारे में पूछे जाने पर तपाक से उन्होंने कहा कि इस बात के वह शुरू से समर्थक रहे हैं. नीतीश ने कहा कि हर साल भारत में कहीं ना कहीं चुनाव होते रहते हैं और पूरा माहौल उसी में डूबा रहता है. उन्होंने कहा कि अगर एक साथ सभी जगह चुनाव हो तो खर्च भी बचेगा और सरकारों को शांतिपूर्वक काम करने के लिए ज्यादा समय भी मिल सकेगा. नीतीश ने कहा कि वह इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, लेकिन इसके लिए सभी दलों और सभी राज्यों के साथ सहमति बनानी होगी.

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समर्थन की क्या है वजह?

जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार राजनीतिक मजबूरी की वजह से ऐसा बोल रहे हैं. बिहार में विधानसभा के चुनाव 2020 में होने हैं. इससे पहले नीतीश कुमार के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. लालू यादव से संबंध तोड़कर नीतीश बीजेपी के साथ आ तो गए, लेकिन अब यहां उन्हें आगे की राह आसान नहीं दिख रही है.

नीतीश कुमार की बेचैनी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक हफ्ते के भीतर नीतीश कुमार का यह दूसरा दिल्ली दौरा है. नीतीश 27 जनवरी को भी दिल्ली में थे. पहले नीतीश कुमार कम ही दिल्ली में दिखते थे. सूत्रों के अनुसार नीतीश बिहार में विकास की योजनाओं के बारे में केंद्र के मंत्रियों से बातचीत करने के लिए आते हैं. जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चुनावी बातचीत अभी से कर लेना चाहते हैं और इसके लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं.

होने हैं चुनाव

बिहार में अगले कुछ महीने के भीतर एक लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने हैं. अररिया की लोकसभा सीट वहां के आरजेडी सांसद तस्लीमुद्दीन के मृत्यु से खाली हुई है. विधानसभा की जिन दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वो हैं भभुआ और जहानाबाद. भभुआ की सीट पहले BJP के पास थी, जबकि जहानाबाद की सीट आरजेडी के पास. जिन 3 सीटों पर चुनाव होना है, उनमें से कोई भी सीट जेडीयू के पास नहीं थी.  पहले जब चुनाव हुआ था तब नीतीश कुमार लालू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन का हिस्सा थे. जाहिर है BJP इन तीनों उपचुनाव में जेडीयू को कोई सीट नहीं देना चाहेगी, क्योंकि उसके पास इनमें से कोई सीट नहीं थी. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगर बीजेपी के साथ आने के बाद उपचुनाव में कोई भी सीट हासिल नहीं कर पाते हैं तो यह उनकी पार्टी के लिए और खुद उनकी छवि के लिए बड़ा धक्का होगा. इससे यह संदेश जाएगा कि बीजेपी के साथ आने के बाद नीतीश कुमार की चल नहीं रही है.

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राज्यसभा सीटें भी खाली होंगी

अगले कुछ महीनों के भीतर ही बिहार कि 6 राज्यसभा सीटें भी खाली होंगे जिन पर चुनाव होना है. बिहार में पार्टियों की स्थिति ऐसी है कि 5 सीटें तो लगभग तय है, लेकिन छठी सीट को लेकर जोड़-तोड़ हो सकती है. नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों यह चाहेंगे की छठी सीट भी उन्हीं के पास आए.

नीतीश कुमार की चिंता यहीं खत्म नहीं होती. 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी गठबंधन के पास 31 सीटें हैं. गठबंधन में आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि कोई भी पार्टी अपनी 'सीटिंग' यानी मौजूदा सीट नहीं छोड़ती. क्या नीतीश कुमार  की जेडीयू को लोकसभा चुनाव में सिर्फ 9 सीटें पाकर संतोष करना पड़ेगा? अगर ऐसा होता है तो नीतीश कुमार का कद जरूर छोटा हो जाएगा.  नीतीश कुमार जरूर यह सोच रहे होंगे कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपना दम दिखा कर ज्यादा सीटें हासिल कर लेती है और केंद्र में फिर से सरकार बना लेती है तो फिर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनके पास तोल-मोल करने की ताकत भी नहीं रह जाएगी.

लोकसभा चुनाव के बाद अगर बीजेपी फिर से केंद्र में सरकार बना लेती है तो बिहार विधानसभा चुनाव के समय नीतीश कुमार के पास बीजेपी की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा, क्योंकि कांग्रेस पर लालू के खेमे में अब उनके लिए कोई जगह नहीं बची है. नीतीश कुमार इस बात को अच्छी तरह समझते हैं और देख चुके हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी के सबसे पुराने गठबंधन के साथी शिवसेना का क्या हश्र हुआ. नीतीश कुमार चाहते हैं कि समय रहते बीजेपी के साथ बैठकर इन तमाम मुद्दों पर अभी से बातचीत कर ली जाए और सीटों के बारे में सहमति बन जाए. सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार की बेचैनी के बावजूद बीजेपी के बड़े नेता इस बात के लिए नीतीश कुमार के साथ बातचीत करने से बच रहे हैं.

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परिस्थितियों और राजनीतिक मजबूरियों के हिसाब से देखा जाए तो नीतीश कुमार यह जरूर चाहेंगे कि बिहार में विधानसभा के चुनाव भी 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही हो जाएं ताकि बाकी बीजेपी के साथ सीटों को लेकर मोलभाव करने में आसानी हो.

बुधवार को नीतीश कुमार से जब यह पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि बिहार के विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ हो सकते हैं तो उन्होंने कहा कि इसके लिए अब बहुत कम समय बचा है और इतनी जल्दी ऐसा हो पाना संभव नहीं होगा. अगर नीतीश कुमार देशभर में एक साथ चुनाव कराने के मोदी के आईडिया का समर्थन कर रहे हैं तो इसके लिए उनकी अपनी वजहें हैं. नीतीश को डर है कि उनके ऊपर बिहार में बीजेपी के जूनियर पार्टनर होने का खतरा मंडराने लगेगा.

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