बिहार की सियासत में बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी के साथ सरकार बनाने वाले सीएम नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार मंगलवार को कर दिया है. नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी ने कैबिनेट गठन के जरिए सिर्फ बिहार के अपने कोर वोटबैंक और जातीय समीकरण को ही नहीं साधा बल्कि बीजेपी की पसमांदा मुस्लिम पॉलिटिक्स को काउंटर करने का भी दांव चल दिया है.
नीतीश कुमार की नई कैबिनेट के 31 मंत्रियों में से 5 मुस्लिम मंत्री बनाए गए हैं. कांग्रेस-जेडीयू कोटे से एक-एक मुस्लिम को मंत्री बनाया गया है तो आरजेडी से तीन मुस्लिम नेताओं को जगह दी गई है.
डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अपने कोटे से जिन तीन मुस्लिम नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी है, उसमें दो पसमांदा मुस्लिम हैं. इसमें भी ऐसी मुस्लिम जातियों को शामिल किया गया है, जिनका बिहार की सियासत और सत्ता में अभी तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा.
RJD कोटे से ये तीन मुस्लिम मंत्री
आरजेडी कोटे से नीतीश सरकार में तीन मुस्लिम मंत्री बने हैं, जिनमें शमीम अहमद, शाहनवाज आलम और इसराइल मंसूरी शामिल हैं. शमीम अहमद मुस्लिम समुदाय की एक उच्च जाति से हैं तो शाहनवाज आलम और इसराइल मंसूरी पसमांदा मुस्लिम (अतिपिछड़ी जाति) समाज से आते हैं.
मंसूरी समाज के पहले विधायक और मंत्री
इसराइल मंसूरी के रूप में बिहार में पहली बार धुनिया समाज से कोई नेता मंत्री और विधायक बना है. वो मुजफ्फरपुर की कांटी विधानसभा से विधायक हैं. इसराइल मुस्लिम समुदाय के अत्यंत पिछड़े वर्ग से आते हैं और आजादी के बाद बिहार में पहली बार मंसूरी समाज का कोई नेता विधानसभा पहुंचा है और कैबिनेट में जगह मिली है. इसराइल मंसूरी पसमांदा आंदोलन से जुड़े रहे हैं.
वहीं, शाहनवाज आलम बिहार के सीमांचल की कुलैहा जाति से आते हैं. कुलैहा बिहार में अतिपिछड़ी जाति के तहत आती है, जो रस्सी बीनने और जूट से बने सामान को बनाने का काम करती है. हालांकि, कुलैहा जाति के लोग विधायक और सांसद बिहार से बनते रहे हैं. शाहनवाज आलम के पिता तस्लीमुद्दीन और भाई सरफराज आलम सांसद और विधायक रह चुके हैं.
बिहार में कितनी मुस्लिम आबादी?
बिहार में मुसलमानों की आबादी कुल 16 प्रतिशत है जिसमें मंसूरी समाज की करीब साढ़े तीन फीसदी संख्या है. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से यह बिरादरी मुस्लिमों में काफी वंचित रही है. ऐसे में तेजस्वी ने इसराइल मंसूरी को कैबिनेट में जगह देकर बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कवायद की है. ऐसे ही मुस्लिम कुलैहा जाति की आबादी बिहार के सीमांचल में कटिहार, अररिया और किशनगंज जिले में अच्छी खासी है.
तेजस्वी यादव के द्वारा मुस्लिम समुदाय से धुनिया और कुलैहा जाति के नेता को कैबिनेट में जगह देने को सामाजिक न्याय के प्रयासों का यह अंतिम कतार तक विस्तार माना जा रहा है. इससे दोनों जाति के लोगों का स्तर ऊपर उठ सकेगा और उन्हें राजनीति में भागीदारी मिलेगी. वहीं, इनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर में भी सुधार आएगा. इसके अलावा, इसे बीजेपी के पसमांदा समाज के बीच पैठ बनाने की रणनीति को काउंटर करने के तौर पर भी देखा जा रहा है.
पसमांदा मुस्लिम राजनीति की प्रयोगशाला रहा है बिहार
दिलचस्प बात यह है कि बिहार पसमांदा राजनीति की प्रयोगशाला रही है. अशराफ बनाम पसमांदा आंदोलन बिहार में ही खड़ा हुआ था. पसमांदा आंदोलन का चेहरा रहे अली अनवर और डॉ. एजाज अली को नीतीश कुमार ने राज्यसभा सदस्य बनाकर पसमांदा मुस्लिमों को साधने की कवायद की थी. हालांकि, बाद में दोनों ही नेताओं ने जेडीयू त्याग दिया था, लेकिन पसमांदा मुस्लिमों के भागीदार की लड़ाई अभी भी लड़ रहे हैं.
बीजेपी के टारगेट में पसमांदा मुस्लिम
वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुस्लिमों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए पसमांदा मुस्लिम पर फोकस करने के कहा था. इसके बाद ही बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने का सियासी जतन कर रही है. इसी के मद्देनजर पसमांदा समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता आतिफ रशीद के नेतृत्व में राष्ट्रवादी पसमांदा समाज संगठन भी बनाया गया है, जिसका दिल्ली में हाल ही में एक सम्मेलन भी हुआ है. इतना ही नहीं, यूपी से लेकर बिहार तक में संगठन का विस्तार किया जा रहा है ताकि मुस्लिम समुदाय को बीजेपी के करीब लाया जा सके.
बीजेपी की पसमांदा मुस्लिम राजनीति को देखते हुए तेजस्वी यादव सतर्क ही नहीं हैं, बल्कि 3 मंत्री में से दो पसमांदा मुस्लिम को जगह देकर उन्होंने बड़ा सियासी संदेश देने की कवायद भी की है. इसकी एक वजह यह है कि बिहार में मुस्लिम समाज आरजेडी का परंपरागत वोटर रहा है और पार्टी के बुरे दिनों में भी साथ खड़ा रहा है. ऐसे में तेजस्वी यादव ने अब मंत्रिमंडल गठन में अशराफ और पसमांदा दोनों ही मुस्लिम तबके का ख्याल रखा है ताकि बीजेपी को जगह बनाने का मौका न मिल सके.
बता दें कि बिहार में जाति आधरित गणना कराने के फैसले के दौरान नीतीश कुमार ने मुस्लिमों की जाति गणना कराने का भी निर्णय लिया. हिंदू जातियों के साथ-साथ मुस्लिम समाज की जातियों की गिनती कराने की मांग पसमांदा मुस्लिम मूवमेंट से जुड़े हुए लोग करते रहे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार ने उनकी मांग को पूरा कर पहले ही पसमांदा मुस्लिमों को सियासी संदेश दे चुके हैं और गुलाम गौस जैसे नेता को एमएलसी बना रखा है.
अशराफ और पसमांदा सियासत
मुस्लिम समुदाय की जातियां भी तीन प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में विभाजित हैं. उच्चवर्गीय मुसलमान को अशराफ कहा जाता है तो पिछड़े मुस्लिमों को पसमांदा और दलित जातियों के मुसलमानों को अरजाल. अशराफ में सय्यद, शेख, मुगल, पठान, रांगड़, ठकुराई या मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुसलमान आते हैं. वहीं, ओबीसी मुस्लिमों को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है. ऐसे में पसमांदा मूवमेंट से जुड़े हुए लोग कहते रहे हैं कि मुसलमानों के नाम पर सारे सुख और सुविधाओं का लाभ मुस्लिम समाज की कुछ उच्च जातियों को मिल रहा है और पिछड़े व अतिपिछड़े मुस्लिम हाशिए पर हैं.
पसमांदा मुस्लिमों की भागीदारी
कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अलवी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), गद्दी, लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन गुज्जर इत्यादि, मेवाती, गद्दी, मलिक हैं.
दलित मुस्लिम को अरजाल के नाम से कहा जाता है, लेकिन मुस्लिम दलित जातियों को ओबीसी में डाल दिया गया है. मौजूदा समय में बिहार में मुसलमानों के बीच 50 से ज्यादा जातियां हैं. बिहार में ओबीसी की जातियों का आंकड़े देखें तो केंद्रीय सूची में 24 मुस्लिम जातियां शामिल हैं जबकि स्टेट लिस्ट में करीब 31 जातियां शामिल हैं. हालांकि, बिहार में ओबीसी जाति को पिछड़े वर्ग और अति पिछड़े वर्ग में बंटा हुआ. इस तरह से मुस्लिम की 85 फीसदी आबादी पसमांदा की है तो 15 फीसदी अशराफ तबके की है.