बिहार में निमोनिया की वजह से हर रोज 100 से अधिक जानें जा रही हैं. एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतें सबसे ज्यादा इस बीमारी की वजह से हो रही हैं. सर्वेक्षणकर्ताओं ने सरकार से पोलियो की तरह एक विशेष अभियान शुरू करने की अपील की है.
बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित यह शोध अध्ययन बिहार के पांच और उत्तर प्रदेश के नौ जिलों में किया गया जिसमें यह आंकड़ा सामने आया. सर्वेक्षण का नेतृत्व करने वाली लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) की शिशु रोग विभाग की प्रोफेसर शैली अवस्थी ने एम्स पटना में एक संगोष्ठी में कहा कि बिहार में हर साल निमोनिया की वजह से 40,480 जानें जा रही हैं. उन्होंने कहा, ‘हम इसे दूसरी तरह से देखें तो हर दिन 100 से अधिक जानें और हर घंटे पांच जानें जा रही हैं.’
शैली ने कहा कि देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की साल भर में निमोनिया की वजह से 18.4 लाख मौतें होती हैं जिनमें बिहार की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है. सर्वेक्षण जुलाई 2013 से मई 2014 के बीच बिहार के गया, दरभंगा, मधुबनी, नालंदा और छपरा जबकि उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर, महोबा, आगरा, मेरठ, उन्नाव, मथुरा, मुरादाबाद और बांदा जिलों में किया गया.
शैली ने कहा कि निमोनिया मुख्य रूप से कुपोषण, स्तनपान में कमी, टीकाकरण ना कराए जाने और विशेषकर ग्रामीण इलाकों में माताओं द्वारा जैव ईंधन के अत्यधिक इस्तेमाल की वजह से होता है. शैली और अन्य ने समस्या की भयावहता की तरफ ध्यान दिलाते हुए पोलियो की तरह निमोनिया के खिलाफ भी एक विशेष अभियान शुरू करने पर जोर दिया.
(भाषा से इनपुट)