सियासतदानों के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं होती. शायद इसलिए कि जनता की परेशानियों का कोई ओर-छोर नहीं होता. जब तक आम आदमी परेशान है, तब तक नेता उसे सब्जबाग दिखाते ही रहेंगे. और तो और, आज के दौर में टोल टैक्स भी एक मुद्दा है. पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की 11वीं किस्त...
मुजफ्फरपुर से अररिया वाया ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर करीब 230 किलोमीटर है, लेकिन तीन जगह मिलाकर टोल टैक्स है 215 रुपये. यानी प्रति किलोमीटर करीब एक रुपया. यह पीपीपी मॉडल है. कायदे से स्थानीय लोगों को छूट देने का प्रावधान है, लेकिन उसका कोई पालन नहीं है, न ही कहीं ऐसा लिखा दिखा. अब स्थानीय लोग और छोटे व्यापारी अगर चाहें भी, तो थोड़ी दूर जाकर धंधा नहीं कर सकते या कई बार आ-जा नहीं सकते.
टोल कलक्टर जिला कलक्टर से भी ज्यादा निर्मम है. कम स्टॉफ रखता है, कॉस्ट कटिंग करता है और गाड़ियों को एक ही लेन में खड़ा कर देता है. हालांकि इस टैक्स के हिसाब से सड़क बिल्कुल ही 24 कैरेट मलाई वाली नहीं है. जगह-जगह काम अधूरा है और कई पुल पिछले 12 साल से बन रहे हैं.
भारत में एक पुल बनाने में 12 साल क्यों लगते हैं, आज तक समझ नहीं आया. इधर जब से राज ठाकरे ने टोल वालों के खिलाफ मुहिम छेड़ी है, बिहार में भी देख रहा हूं कि नेता लोग इसमें संभावनाएं देख रहे हैं. पूर्णिया के सांसद ने कहा कि टोल वालों, औकात में आ जाओ, नहीं तो कार्रवाई करेंगे. लेकिन टोल वाले तो प्यादे हैं, वजीर तो दिल्ली का भूतल परिवहन मंत्री है. मान लीजिए, वो हार भी गया, तो क्या टोल कम हो जाएगा?
(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)