लोकसभा चुनाव में बिहार में कौन-सी पार्टी सबसे ज्यादा सीटों पर अपने झंडे गाड़ने में कामयाब होगी, इसको लेकर अभी से चर्चा जोर पकड़ रही है. पेश है चुनावी समीकरणों का जायजा लेती 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की 13वीं किस्त...
नौगछिया से पटना वाया बेगूसराय-मोकामा सड़क रद्दी हो गई है. कहीं ठीक, कहीं खराब. पूर्णिया से जोड़ें, तो पटना 300 किलोमीटर है और 8 घंटे लग जाते हैं. सुशासन का दावा अधिकतम 6 घंटे का है. टैक्सीवाला कहता है कि भागलपुर से होकर भी ऐसा ही है. ऊपर से भागलपुर में घुसते ही जाम...पता नहीं कब से वो सीमेंट की सड़क बन रही है, जिस पर रोजाना एक्सीडेंट होता है. कहते हैं कि ठेकेदार बड़ा आदमी है. पटना तक उसकी पहुंच है.
सड़क के किनारे मक्के के हरे-भरे खेत हैं, लेकिन पूर्णिया से कम. खगड़िया में लगता है कि पिछड़ेपन सबसे ज्यादा है. पिचके हुए गाल और धंसी हुई आंखें दिख रही हैं. हम हाइवे नंबर-31 पर हैं और खगड़िया शहर से आगे एक लाइन होटल है. सैनिक होटल, किसी रिटार्यड फौजी की है. सामने पान की दुकान पर एक बच्चा पान लगाता है, जो कहता है कि वो 'सिक्स्थ क्लास' में पढ़ता है. मधेपुरा के तीन बुजुर्ग किसान खड़े हैं. सबके सब यादव, पान वाला लड़का भी. मैं चुनावी चर्चा छेड़ता हूं, तो सारे भ्रमित हैं.
लालू यादव के अजेय रहने से उनका विश्वास उठ चुका है, लेकिन लालू से मोह बाकी है. एक का कहना है कि लड़ाई नीतीश बनाम बीजेपी होगी, तो दूसरा कहता है कि मधेपुरा में तो लालू जीता हुआ है. पिछली बार भले ही शरद जीत गए हों, लेकिन इस बार डरे हुए हैं. एक महीने से कैम्प कर रहे हैं. पान वाला लड़का कहता है कि उसके पापा लालू को वोट देंगे, लेकिन उसकी दुकान पर ज्यादातर लोग मोदी की चर्चा करते हैं.
'मोदी किस पार्टी का है जी?'
'पता नहीं...किस पार्टी का है, लेकिन बड़ा नेता है.' मोदी, बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं!
(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)