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सियासी बयार का जायजा: रेणु के गांव से...

प्रख्‍यात साहित्‍यकार फनीश्वरनाथ रेणु के पुत्र पद्मपराग रेणु अभी बीजेपी से एमएलए हैं. जब उनसे ताजा राजनीतिक-प्रशासनिक स्थिति और साहित्‍य के प्रति सरकार के रवैए को लेकर बात की गई, तो उन्‍होंने दिल की बात सामने रख दी. पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन' की 14वीं किस्‍त...

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बिहार (Symbolic Image)
बिहार (Symbolic Image)

प्रख्‍यात साहित्‍यकार फनीश्वरनाथ रेणु के पुत्र पद्मपराग वेणु अभी बीजेपी से एमएलए हैं. जब उनसे ताजा राजनीतिक-प्रशासनिक स्थिति और साहित्‍य के प्रति सरकार के रवैए को लेकर बात की गई, तो उन्‍होंने दिल की बात सामने रख दी. पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन' की 14वीं किस्‍त...

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अररिया में फनीश्वरनाथ रेणु का गांव उस हाइवे से थोड़ा ही दक्षिण है, जो वाया बिहार, असम से गुजरात तक चली जाती है. औराही-हिंगना सीधे गुजरात से जुड़ गया है और रेणु के बेटे नरेंद्र मोदी की पार्टी से विधायक बन गए. बीजेपी ने माटी के इस लाल को कायदे से अपनाया है.

हाइवे के दक्षिण सिंगल लेन की सड़क है, जो मक्के के खेतों और कुपोषित बच्चों के बीच से बल खाती हुई आगे बढ़ती है. ज्यादातर घरों पर टिन या एस्बेस्‍टस की छतें हैं. सामने कोई हाट लगा हुआ है, जहां रेणु की ताजा चमकती हुई कांस्य प्रतिमा दिखती है. इलाके के सब लोग रेणुजी को जानते हैं.

थोड़ा आगे जाने पर एक बांस और फूस का बना हुआ बढ़िया-सा हवादार दालान दिखता है, जिसमें रेणु और उनकी पत्नी की तस्वीरें लगी हैं. उसी दालान में रेणु की तस्वीर से बिल्कुल सटी हुई नरेंद्र मोदी की तस्वीरें हैं. दालान से बाहर खलिहान-नुमा जमीन है, जिसमें ऊंचे-ऊंचे बांस पर बीजेपी का बड़ा-सा झंडा लहरा रहा है. जगह-जगह बांस के खूंटे पर मोदी की तस्वीरें टंगी हैं. खलिहान में अकेले लुंगी और बंडी में रेणु के पुत्र और फारबिसगंज के विधायक पद्मपराग वेणु बैठे हुए हैं, बिल्कुल अकेले. कोई सरकारी गार्ड नहीं, कोई गाड़ियों की कतार नहीं. एक भी मोटा, गोरा-चिकना, दलालनुमा कार्यकर्ता नहीं. ऐसा विधायक जिंदगी में पहली बार देख रहा हूं. बचपन में सीपीआई से मधुबनी के सांसद भोगेंद्र झा को देखता था, ऐसे ही लगते थे. 

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चाय के लिए एक आदमी को इशारा करते हैं. हम डेढ़ घंटा बात करते हैं- पुरानी बातें, नई बातें, मैथिली में, हिंदी में. रेणु ने ‘मैला आंचल’ और ‘परती परिकथा’ यहीं लिखी थी. उस खलिहान में देश के प्रधानमंत्री भी दो घंटा बैठ चुके हैं. मौजूदा सिस्टम और नीतीश सरकार के खिलाफ उबल पड़ते हैं विधायकजी. मितभाषी पद्मपराग वेणु नौकरशाहों की मनमानी के खिलाफ बहुत आक्रोशित हैं. हमने पूछा कि इस बार किसकी हवा है?

वे मुस्कुराते हुए बोले, ‘देखिए हम तो बीजेपी के विधायक हैं. हमें तो बीजेपी की ही हवा लगती है.’
क्या ये दालान वैसा ही है, जैसा पहले था?
‘नहीं...थोड़ी-सी मरम्मत करवाई गई है.’
'बीजेपी में रेणु के बेटे को कैसा लगता है?'
कुछ देर चुप रहे, फिर बोले, ‘न गम है, न खुशी है. मेरे पिता को भी तो राजनीतिक दलों ने ऐसे ही ट्रीट किया था, सभी दलों ने. लोग समझते थे कि बड़ा लेखक है, पद दे दिया, तो हावी हो जाएगा, बेहतर है कि इससे प्रेस रिलीज और भाषण लिखवाओ...’
'आप ज्यादातर समय कहां रहते हैं, पटना या गांव में?'
‘यहीं रहता हूं क्षेत्र में. जब विधानसभा का सत्र चलता है, तो पटना चला जाता हूं. इस बार तो वो भी तीन दिन पहले छोड़कर आ गया. वहां कुछ खास नहीं होता, सिर्फ हंगामा होता है. सरकार की मनमर्जी है, जो बिल मन होता है, पारित हो जाता है. अधिकारी किसी की नहीं सुनते.’

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पद्मपराग वेणु कहते हैं कि सरकार ने विधायक फंड बंद करवा दिया. इसका मतलब यह था कि सारे विधायक चोर हैं. वे कहते हैं, ‘अरे भई, वो पैसा आप हमारे खाता में थोड़े ही डालते थे. वो तो कलक्टर या डीडीसी के खाते में रहता था, हमारी अनुशंसा होती थी. अगर आपको लगता है कि कहीं चोरी हो रही है, तो उसकी जांच करवा लीजिए. पुलिस आपकी, विजिलेंस आपका. लेकिन नहीं, उन्होंने फंड ही बंद करवा दिया. अब लोग हमसे विकास की मांग करते हैं. हम क्या करें?’

यानी सरकार विधायकों की नहीं सुनती. विपक्ष की तो और भी नहीं. ‘हम जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन हमें अधिकारियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है.’

वे आगे कहते हैं, ‘देखिए, उसने (सरकार ने) कहा है कि हमारी अनुशंसा पर अब ट्रांसफर्मर लगेंगे. लेकिन मैं पिछले कई महीनों से अधिकारियों के पीछ लगा हूं, तो बताया जाता है कि साहब छुट्टी पर हैं, सोमवार को आएंगे. कोई कुछ भी बहाना बना देता है. जब हम विधायकों का यह हाल है, तो आम लोगों का क्या हाल होगा. हमें ढाई-तीन लाख लोगों ने चुना है, लोग हमसे उम्मीद करते हैं. लोग हमसे न उम्मीद करें, तो कहां जाएं?’

इस बीच हम चाय पीते हैं. पीछे खलिहान में एक तीन-चार साल का बच्चा दौड़ते हुए गिरता है. हम दौड़ते हैं, उससे पहले उसकी मां हंसते हुए आती है और उसे उठाती है. बगल में गाय और बकरी बंधी हुई है. पीछे एस्बेस्टस का एक पुराने टाइप का मकान है, जिसके बीच में आंगन है.
'क्या सिस्टम ने, राज्य ने उनके पिता को वो सम्मान दिया, जिसके वे हकदार थे?'
‘देखिए, मेरे पिता जनता के दिलों में रहते हैं. यहां पूरे देश से लोग आते हैं, देश से कौन कहे, शोध करने के लिए अमेरिका से लोग आते हैं. इस दालान पर देश के प्रधानमंत्री घंटों बैठ चुके हैं. जहां तक राज्य या सिस्टम की बात है, राज्य ने बहुत नहीं किया. पटना में रेणुजी के नाम पर एक हिंदी भवन है- बस उसके बाद सन्नाटा है. पिछले दिनों पूर्णिया में मुख्यमंत्री ने विश्वविद्यालय की घोषणा की, कम से कम उसका नाम ही फनीश्वरनाथ रेणु के नाम पर करने की घोषणा कर देते, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है.’

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पिछली बार जब नीतीश कुमार सेवायात्रा के दौरान औराही हिंगना आए थे, तो पद्मपराग ने मांग की थी कि उनके पिता के नाम पर एक रेणु शोध संस्थान की स्वीकृति दी जाए. मुख्यमंत्री ने यह मांग मान ली और पौने दो करोड़ रुपये आबंटित किए गए. पद्मपराग रेणु कहते हैं, ‘दरअसल ऐसे संस्थान की जरूरत इसीलिए थी कि रेणुजी से संबंधित बहुत सारी चीजें हमारे पास हैं, जिसे शायद हम आगे संभाल न पाएं. दूसरी बात ये कि देश-विदेश के शोधार्थी हमारे गांव आते हैं, वे रेणुजी की जन्मभूमि को देखना चाहते हैं. उनके रुकने-ठहरने का बंदोवस्त नहीं हो पाता. ऐसे में एक सरकारी संस्थान अगर हो, जहां रेणु से संबंधित वस्तुएं, किताबें और लोगों के ठहरने का इंतजाम हो, तो लोगों को भी काफी सहूलियत होगी और हमें भी.’

रेणु शोध संस्थान को बनवाने में रेणु परिवार ने जमीन दी है. हम जब गांव से बाहर निकले, तो पद्मपराग के भाई अपराजित मिल गए, जो रेणु शोध संस्थान के बाहर खड़े थे. उन्होंने हमें निर्माणाधीन इमारत दिखाई, जिसे इस साल पूरा हो जाना था. हमारे पास समय कम था, हमने विदा ली. अपराजित ने कहा कि ये आना, कोई आना नहीं हुआ, समय निकालकर आइए. रेणु के बेटे वाकई विनम्र हैं और असली आम आदमी हैं. हम उस एहसास के साथ लौटे कि हम रेणु के घर से आए हैं...हम रेणु के बेटे से मिलकर आए हैं.

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(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)

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