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मोदी की पूर्णियां रैली का नजारा: 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' पार्ट-16

नरेंद्र मोदी की पूर्णियां रैली से बीजेपी नेताओं की बांछें खिली हुई हैं. मोदी की बड़ी-बड़ी बातें वोटरों का दिल जीतने में कितना कारगर साबित हो पाती हैं, इसका जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिल सकेगा. बहरहाल, पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन' की 16वीं किस्‍त...

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बिहार (Symbolic Image)
बिहार (Symbolic Image)

नरेंद्र मोदी की पूर्णियां रैली से बीजेपी नेताओं की बांछें खिली हुई हैं. मोदी की बड़ी-बड़ी बातें वोटरों का दिल जीतने में कितना कारगर साबित हो पाती हैं, इसका जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिल सकेगा. बहरहाल, पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्‍शन' की 16वीं किस्‍त...

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पहली बार नरेंद्र मोदी को इतने नजदीक से देखा. पूर्णिया रैली में जब 12 बजे तक भीड़ नहीं जुटी, तो आयोजकों के हाथ-पैर फूल गए. लेकिन इसके बाद आधा घंटा होते-होते पता नहीं मैदान कहां से भर गया. पब्लिक सयानी हो गई है. लोकल नेताओं को सुनना उसे फालतू लगता है. रंगभूमि मैदान की क्षमता ज्यादा से ज्यादा 1.5 लाख होगी. बीजेपी वाले 3 लाख का दावा कर सकते हैं...

लाल रंग का हेलिकॉप्टर जब आसमान में नमूदार हुआ, तो भीड़ उन्मादी हो गई. राहुल गांधी की रैली तो नहीं देख पाया हूं, लेकिन बीजेपी की रैली देखकर लगता है कि पैसे का कितना बड़ा खेल होता है. करीब 100 से ऊपर तो महंगे फूलों के गुलदस्ते थे, जो नेताओं के स्वागत के लिए मंगवाए गए थे. दो पिकअप वैन में फूल भर कर लाए गए थे, जिससे मंच सजाना था. एक बहुत ही नजदीकी सूत्र ने बताया कि पक्का मंच बनवाने का खर्च ही करीब 25 लाख आया था, जबकि फूल और सजावट का खर्च अलग से. बांस-बल्ले, पूरे मैदान और शहर में होर्डिंग्स का खर्च जोड़ दें, तो आंकड़ा सात अंकों में पहुंच जाता है. उसके बाद इतने लोगों को लाने के लिए करीब 1500 सौ बसें चाहिए थीं, जो आसपास के जिलों में उपलब्ध नहीं थीं. उसकी भरपाई ट्रैक्टर और अन्य वाहनों से की गई.

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भीड़ के लिए भोजन तो नहीं, लेकिन पानी का इंतजाम था. पूरा प्रदेश बीजेपी अपने नेता के स्वागत में उपस्थित था. पटना से बीजेपी के तमाम नेता अपने पीए और बॉडीगार्ड के साथ आए थे और साथ में बीजेपी प्रदेश कार्यालय का मीडिया विभाग अपने साथ लगभग सारे पत्रकारों को लाया था. पत्रकार बेहद खुश नजर आए. पूर्णिया के जितने होटल थे, वे लगभग सबके सब बुक थे. पार्टी ने रैली को अपनी तरफ से कवर करने के लिए स्थानीय स्तर पर कोलकाता से महंगे जिमी जीप कैमरे लगवाए थे, जिसमें एक साथ करीब 20 टीवी चैनलों को आउटपुट दिए जा सकते थे. मजे की बात ये कि कई नामचीन राष्ट्रीय चैनलों ने ऐसा किया भी. उन्होंने वहीं विजुअल दिखाया, जो उन्हें बीजेपी के कैमरे ने दिखाया. उसके साथ मोदी की टीम अपना कैमरा टीम अलग से लेकर आई थी. पता नहीं, राहुल गांधी या अन्य नेताओं की टीम ऐसा कर पाती है नहीं.

संघ से आए हुए बीजेपी के एक मंत्री थे, जिसके पीए का एटिट्यूड देखते ही बनता था. वजह? संघ में होने की वजह से उसकी बातचीत बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं से थी. ये लोग तो प्रदेश स्तरीय छुटभैये थे. पीए गजब के जीव होते हैं. उन्हें लगता है कि वही सांसद हैं.

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रैली में रामविलास के बदले उनके भाई थे, तो उपेंद्र कुशवाहा की ट्रेन दिल्ली में छूट गई. मंच पर मोदी के आने से पहले पब्लिक राज्यस्तरीय बीजेपी नेताओं को झेल रही थी. मोदी के आते ही सब लोग चिल्लाने लगे. एक तरफ मंच पर बीजेपी नेताओं के बीच मोदी को माला पहनाने की होड़ लग गई, तो दूसरी तरफ पब्लिक चिल्लाने लगी कि अब स्टेट वाले नेताओं को बिठाओ, मोदी को बुलाओ.

रैली से पहले राज्य के पूर्व मंत्री गिरिराज सिंह घूम-घूमकर मीडिया वालों को बाइट दे रहे थे और उनकी नाटकीयता देखते ही बनती थी. एक टीवी रिपोर्टर बोला कि ये बाइट ही देते रह जाएंगे, फ्री का फुटेज खा रहे हैं, जबकि सारा खर्च उदय सिंह ने किया है. बाइट ही क्यों देते रह जाएंगे? अरे भाई, साब इनको छोटे मोदी (सुशील मोदी) बेगूसराय से टिकट नहीं लेने देंगे और भोला बाबू से नवादा के लोग इतने नाखुश हैं कि वो वहां से भागना चाहते हैं और वे पक्का बेगूसराय सीट हथिया लेंगे. अश्विनी चौबे और शाहनवाज हुसैन मानो कसम खाए हुए थे कि हाथ नहीं मिलाएंगे. एक बीजेपी नेता ने कहा कि दोनों के हाथ में खंजर देकर एक ही रूम में सोने का इंतजाम कर दो, तो सुबह तक एक ही निकलेगा. भागलपुर सीट का झंझट खत्म!

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शुरू में भीड़ कम देखकर किसी नेता ने कहा कि यह नीतीश कुमार की साजिश है. पाइलिन तूफान से राहत का बंटवारा सरकार आज ही कर रही है. ये रैली को सेबोटेज करने की साजिश है. भाषण के शुरू में मोदी ने मैथिली-अंगिका में दो बोल कहे, फिर क्षेत्र के प्रसिद्ध संत महर्षि मेंहीजी की तारीफ की और पूरण देवी मंदिर का जिक्र किया. उनके भाषण में फनीश्वरनाथ रेणु का जिक्र आया और सतीनाथ भादुड़ी का भी. यानी इतिहास, क्षेत्रीयता, स्थानीय बोली और प्रसिद्ध व्यक्तित्व का पूरा छौंक. इलाके में महर्षि मेंहीजी के काफी अनुयायी हैं और ज्यादातर पिछड़ी-दलित जातियों में हैं. भाषण लिखनेवाला कमाल का कलाकार मालूम होता है. मजे की बात यह कि राजीव प्रताप रूडी भोजपुरी में ज्ञान दे रहे थे, तो कीर्ति आजाद मैथिली में. उनको जबरन ऐसा बोलते देखकर एक बार लगा कि ये सब नाटक है. हालांकि एक बात तय है कि राष्ट्रवाद और पाकिस्तान की आलोचना आज भी तालियां लाती हैं. कीर्ति ने तो क्रिकेट को भी जनता में कायदे से बेचा और देश को एक करने में क्रिकेट और मोदी की भूमिका पर एक लघु-व्याख्यान ही दे दिया.

कुछ चिकने-चुपड़े 'महानगरीय टाइप' लड़के भी दिखे, माथे पर भगवा रंग का साफा बांधे हुए. पूर्णिया में ऐसा लुक कहां से आया? किसी ने कहा कि ये बाहर से आए हैं. ये माहौल बनाते हैं और तालियां बजाते हैं.

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आदिवासी महिलाओं की काफी तादाद दिखी, जबकि पूर्णिया में उनकी संख्या ठीक-ठाक है. एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि वे किसको सुनने आई हैं? उनके जवाब से लगा कि वो मोदी को नहीं जानती, बल्कि स्थानीय सांसद के बुलावे पर आई हैं. यह हैरतअंगेज बात थी. रैली का एक पहलू ये भी था!

(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)

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