अपने गौरवशाली इतिहास पर फूले नहीं समाता बिहार एक बार फिर दोराहे पर खड़ा है. चुनाव में योग्य उम्मीदवारों को वोट देकर जनता अपने लिए खुशहाली के रास्ते खोल सकती है. वैसे इस बार कहां, किसका पलड़ा भारी है, यह जानने के लिए 'लोकल फैक्टर' पर गौर करना जरूरी हो जाता है. पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की 19वीं किस्त...
सहरसा जिला मुख्यालय से कुछ ही दूर आगे है बनगांव और उससे आगे कोसी किनारे है मंडन मिश्र-भारती का गांव महिषी. ऐसी कथा है कि महिषी में मंडन से शास्त्रार्थ करने शंकराचार्य आए थे और मंडन की पत्नी भारती से उन्हें एक बार हारना पड़ा था.
मिथिला और मैथिल ब्राह्मणों का गौरव स्थल है महिषी और बनगाम. महिषी देश के कुछेक गिने-चुने वैसे गांवों में से एक होगा, जिसने थोक भाव में आईएएस-आईपीएस पैदा किए. बनगांव में प्रवेश करते ही प्रसिद्ध संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं की कुटी दिखती है और चमचमाता हुआ मंदिर. मंदिर के प्रांगण में बैठे रिटार्यड बुजुर्ग. पिछले तीस-चासील साल में मिथिला और उत्तर बिहार के गांव जहां एक तरफ वीरान हो गए हैं, बनगांव में चहल-पहल दिखती है. लोग-बाग नौकरी से रिटायर होने के बाद भी गांव में रहने आते हैं. गांव क्या है, अच्छा-खासा कस्बा है. निजी बैंकों के एटीएम, कई-कई साइबर कैफे और पक्की गलियां.
बुजुर्गों से बात होती है, तो हमारे दरभंगा-मधुबनी से होने की चर्चा सुनकर आह्लादित हो उठते हैं. बलुआहा घाट-गंडौल के बीच कोसी पर दूसरा पुल बनकर तैयार है. एक बुजुर्ग कहते हैं, ‘अब तो शादी-विवाह भी होने लगा है.’ ठीक यही बात फनीश्वरनाथ रेणु के विधायक बेटे पद्मपराग रेणु ने कही थी, ‘कोसी की वजह से मेरी बहन की शादी निर्मली नहीं हो पाई.’ सदियों की प्यास मानो जिंदा हो उठी है और इसमें संदेह नहीं कि इसका श्रेय नीतीश सरकार को जाता है. यानी फीलगुड भरपूर है. गांव में पॉवर सब-स्टेशन होने से बिजली काफी रहती है. हमारा एजेंडा शाम होने से पहले बलुआहा घाटा पुल को देखना है और उसके बाद महिषी में तारा स्थान और साहित्यकार राजकमल चौधरी का घर. बलुआहा घाटा पुल महिषी से 2-3 किलोमीटर उत्तर होगा, हाल ही में नीतीश कुमार ने उसका उद्घाटन किया है. दूर से ही साइनबोर्ड चमक रहा है- दरभंगा 78 किलोमीटर, मुजफ्फरपुर 140, समस्तीपुर...... अद्भुत दृश्य है, कभी ठीक ही पंडित नेहरू ने पुलों-कारखानों को 'आधुनिक भारत के तीर्थ' कहा था.
जो काम इस जिले में जनमे ललितनारायण मिश्र और जगन्नाथ मिश्र नहीं करवा पाए थे, उसे नीतीश कुमार ने पूरा कर दिया. बलुआहाघाट से लेकर गंडौल तक तेरह पुल हैं और उस पार कुछ ही दूर पर कुशेश्वरस्थान और तटबंध से होकर भेजा-भगवानपुर. गंडौल में मानो मेला लगा हुआ है- कमला पर आखिरी पुल का काम दिन-रात चल रहा है. लोगों के चेहरे पर खुशी का भाव है और नीतीश सरकार के प्रति एक अनकहा आभार.
महिषी दो-दो लोकसभा क्षेत्र का मिलन स्थल है. प्रखंड के कुछ गांव खगड़िया में हैं, तो कुछ मधेपुरा लोकसभा में. एक स्थानीय शिक्षक का कहना है कि सरकार ने तो इधर काफी काम किया है, लेकिन मधेपुरा सीट पर 'पप्पू' मजबूत पड़ेगा. ब्राह्मणों का पूरा जोर बीजेपी की तरफ दिखता है और यादव-मुसलमान पप्पू यादव की तरफ. अत्यंत पिछड़े किधर जाएंगे? इसका जवाब नहीं है. शरदजी का क्या होगा? चुप्पी...
उग्रतारा मंदिर के प्रांगण में ऊंचे खंभे पर बड़ा-सा मास्ट लाइट चमक रहा है और पंडितजी पान का पीक फेंकते हुए कहते हैं, ‘तो यही तय रहा कि कमल को खिलाना है. देखिए, पप्पू मधेपुरा में और सुपौल में उसकी पत्नी, दोनों मजबूत हैं. ये तो मान लीजिए कि सुपौल देश के गिने-चुने क्षेत्रों में होगा, जहां कांग्रेस को आस होगी!’
पूरे मिथिला में तीन प्रसिद्ध देवी स्थानों में महिषी का उग्रतारा मंदिर अन्यतम है. बाकी दो मधुबनी में उचैठ और नेपाल की सीमा में सखड़ा स्थान. कोसी के तमाम नेता मातारानी के चरणों में मत्था टेकने आ रहे हैं. हाल ही में जेडीयू से बीजेपी में आए मधेपुरा से बीजेपी उम्मीदवार विजय कुशवाहा भी आए थे, साथ में उनकी पत्नी और नीतीश सरकार की पूर्व उद्योग मंत्री रेणु कुशवाहा भी थीं. रेणु अभी भी तकनीकी तौर पर जेडीयू की विधायक हैं. अखबार वालों ने फोटो लेना चाहा, तो विनम्रता से मना कर दिया, ‘मैं तो भारतीय नारी का कर्तव्य निभा रही हूं. प्लीज फोटो मत लीजिए...’
महिषी गांव के के नाम पर विधानसभा क्षेत्र का नाम भी है, लेकिन भला हो परिसीमन करनेवालों का कि महिषी विधानसभा में महिषी गांव ही नहीं है!
महिषी में उग्रतारा मंदिर में देवी की मूर्ति के ऊपर महात्मा बुद्ध की मूर्ति है. शायद बुद्ध की मूर्ति यह दर्शाता है कि एक समय में मिथिला में भी बौद्ध धर्म का खासा प्रभाव हो गया था. साथ ही बहुत सारी प्राचीन मूर्तियां हैं, जिसकी सुरक्षा भगवान भरोसे है. नीतीश सरकार ने इतना किया है कि पिछले कुछ सालों से उग्रतारा महोत्सव का आयोजन हो रहा है. शाम घनी होने की वजह से हम मंडनडीह नहीं देख पाए, जिसकी व्यापक खुदाई लिए स्थानीय स्तर पर लोग भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण को चिट्ठियां लिख रहे हैं. हिंदी-मैथली के प्रसिद्ध साहित्यकार राजकमल चौधरी का जन्म महिषी में ही हुआ था. उनके घर के आगे से हमारी टैक्सी गुजरती है और ‘मछली मरी हुई’ याद आ जाती है.
अब हम सुपौल की तरफ बढ़ रहे हैं. परसरमा, कर्णपुर...एक-एक गांवों का साइनबोर्ड सामने आता है और दादी के मुंह से सुनी कहानियां याद आ जाती हैं. कोसी पर पुल न होने की वजह से दरभंगा-मधुबनी वालों के लिए सहरसा 'दूसरा मुलुक' हो गया था! सड़क अच्छी है, लेकिन खाने का बढ़िया होटल कहीं नहीं. लोग कहते हैं कि इधर सड़क बनवाने में बिजली मंत्री बिजेंद्र यादव का भी योगदान है. वैसे कोसी बाढ़ वाले पैसे का भी उपयोग हुआ है.
सुपौल में एक छोकरा फल बेच रहा है. उससे पूछता हूं कि किसे वोट देगा, तो कहता है कि जो सबसे मजबूत होगा. मजबूत का क्या मतलब है? मजबूत का मतलब स्ट्रांग, फौलादी नेता!
मेरा ड्राइवर कहता है कि जनता शातिर हो गई है, सीधा जवाब नहीं देती. आगे एक बुजुर्ग आमलेट बेच रहे हैं.
'किसकी हवा है?'
‘वो आया था न शेर...पूर्णिया में.’
‘कौन शेर?'
'अरे वहीं, भारत मां का शेर. जानते हैं बाबू, उस दिन मैं 11 बजे टीवी पर बैठा, तो तीन बजे उठा.'
मैं पूछता हूं, ‘क्या नाम है आपका?’
‘विसेसर निषाद. जाति का मल्लाह हूं. पूर्णिया गुलाबबाग मंडी के पास मेरे बेटे की शादी हुई है. इस बार सब मल्लाह मोदी को वोट देगा.’
'क्यों देगा?'
'देश को घोटालों से बचाना है.'
बीजेपी ने अयोध्या शिलान्यास वाले कामेश्वर चौपाल को सुपौल में उतारा है, पुराने संघी है. 'लेकिन यहां मजबूत कौन है?'
‘सरजी, यहां रंजीता रंजन को हल्का नहीं मान सकते. वैसे लड़ाई तगड़ी है. रंजीता बनाम बीजेपी हो जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं.’
(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)