राजधानी पटना का हाल देखकर यह समझना आसान हो जाता है कि निर्णायक मौके पर आखिर लहर किस ओर चल रही है. पेश है 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की 21वीं किस्त...
पटना शहर में जगदेव पथ चौराहा से बेली रोड होकर गांधी मैदान की तरफ बढ़िए, तो सड़क के डिवाइडर पर भगवा झंडों में स्वास्तिक निशान और ‘जय श्रीराम’ लिखा मिलता है. एक नहीं, दो नहीं, कई किलोमीटर तक ऐसा नजारा है. वजह? रामनवमी का दिन है और ऐसा उत्सव मनाने के लिए किया गया. लेकिन लोग-बाग कहते हैं कि ऐसा पिछले सालों में नहीं था, इस बार विशेष है. फुसफुसाहटों में लोग कहते हैं कि ये बीजेपी-संघ के कैडरों का काम है और इसका खर्च चुनाव आयोग को देने की कोई जरूरत नहीं है. शहर के व्यापारी-दुकानदार शत्रुघ्न सिन्हा की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी की जय-जय है. ‘शत्रुघ्न सिन्हा पिछले पांच साल में कब आए, कब गए, पता ही नहीं चला. लेकिन पार्टी ही ऐसी है कि वोट देना मजबूरी है.’ शत्रुघ्न सिन्हा ने जब नामांकन भरा था, तो कई लोगों ने काले झंडे दिखाए थे. कुछ पत्रकारों की मानें, तो ये रविशंकर प्रसाद के इशारे पर हुआ था. बिहार का सबसे बड़ा शहरी लोकसभा क्षेत्र पटना साहिब ही है, जहां कायस्थों की सबसे ज्यादा आबादी है. मशहूर फिल्मी हस्ती को भी जाति का सहारा लेना पड़ता है...ये बिहार है.
नेहरू नगर और कृष्णापुरी के इलाके के अपार्टमेंट्स में बीजेपी के झंडे दिखने लगे हैं. पटना साहिब क्षेत्र में देखकर ही लगता है कि कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन यहां कमजोर है. डाकबंगला चौराहे पर AAP ने एक बड़ा सा होर्डिंग लगाया है. कभी-कभार AAP की गाड़ी दिख जाती है. डाकबंगला चौराहा के बगल में राजस्थान रेस्त्रा में एक ही चर्चा है कि मोदी कितनी सीटें लाएंगे. शत्रुघ्न सिन्हा की यहां भी आलोचना हो रही है, लेकिन चर्चा के केंद्र में मोदी ही हैं. पटना के अच्छे रेस्त्रां में भोजन करते हुए या तो अक्सर सरकारी अफसर दिखते हैं या ठेकेदार. लोग कह रहे हैं कि लालू नंबर 2 पर रहेंगे.
बिहार विधानसभा के परिसर में डीडी न्यूज की परिचर्चा हो रही है और सारी बहस घूम-फिरकर मोदी पर सिमट जाती है. पैनल में हरेक वक्ता अपने चमचों की फौज लाया है, जो उसकी बारी आने पर प्रायोजित तालियां पीटती है. बाहर पटना विश्वविद्यालय का एक पीएचडी अर्ध-विक्षिप्त सा चिल्ला रहा है कि सोनिया और मोदी ने देश में बेरोजगारी पैदा की है और उम्मीद सिर्फ कम्युनिस्टों से है.
शाम के आठ बजे हम गांधी मैदान के इलाके में हैं और आइसक्रीम बेचने वाले कुछ बच्चों से बात करते हैं.
'कौन चुनाव जीतेगा?
‘मोदी’
'यादव किसे वोट देगा?
‘यादव तो लालू को वोट देगा, लेकिन जीतेगा मोदी. उसी की हवा है. सरजी, यहां सारे के सारे यादव हैं.’
गांधी मैदान के बगल में ही बाकरगंज की तरफ ऑडियो कैसेट बनाने वालों की दुकानें हैं. तंग कमरे में आधुनिक मशीनों के साथ बिहार की तमाम लोकभाषाओं में फिल्मी धुनों पर राजनीतिक दलों के लिए गाने लिखे और गाए जा रहे हैं. खर्च एक गाना पर मात्र 3 हजार रुपये. और सबसे ज्यादा ऑर्डर कहां से आया है? बीजेपी से! मोदी को लेकर भोजपुरी, मैथिली, मगही और अंगिका में ढेरों गाने बन चुके हैं और राउंड द क्लॉक काम चल रहा है.
पटना शहर का अधिकांश अब पटना साहिब लोकसभा का हिस्सा है और पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी इलाका पाटलिपुत्र का. बीजेपी की प्रचार गाड़ी जहां-तहां दिख जाती है. काफी देर से जेडीयू उम्मीदवार गोपाल प्रसाद सिन्हा का चुनाव कार्यालय खुला है, जो शहर के मशहूर डॉक्टर हैं. सीपीआई माले का उम्मीदवार शहर में अपनी जीप दौड़ा रहा है, लेकिन उसमें 'मोदी मुर्दाबाद' के सिवाय कुछ नहीं बजता.
पटना शहर में पार्किंग के लिए जगह नहीं है, लेकिन शहर में मर्सिडीज की तादाद बढ़ती जा रही है. पटना की बहुत सारी मुख्य सड़कों पर स्ट्रीट लाइट नहीं है. मुख्यमंत्री के आवास के इलाके में भी कई जगह नहीं. गलियां अंधेरी हैं, लेकिन सुशासन पूरे सूबे को रोशन करने का दावा करता है. सीसीडी सूना-सूना सा लगता है और पंद्रह फीट चौड़ी गली में मल्टी स्टोरीज अपार्टमेंट खड़ा कर दिया गया है. लोग इसे पटना का पॉश इलाका कहते हैं और फ्लैट की कीमत 75 लाख है. बिहार का सारा काला पैसा पटना में जमा हो गया है, क्योंकि सूबे में ‘अर्बन स्पेश’ ही नहीं है.
इधर, सूबे के मशहूर कवि आलोक धन्वा ने मोदी की आलोचना की, तो गाली-गलौज के हद तक हंगाम किया गया. ये बदलता बिहार है, जो इस बात पर इतराता है कि वो समाजवाद का गढ़ है!
रात के एक बजे एक पियक्कड़ चिल्लाते हुए जा रहा है- 'जीतेगा भई जीतेगा....नरेंद्र मोदी जीतेगा.'
प्रकाश झा के शॉपिंग मॉल में ‘क्वीन’ फिल्म लगी हुई है. सामने की कतार में बैठी एक महिला अपने पति से कहती है, ‘आप सब पुरुष एक जैसे हैं. सुना कि मोदी ने भी छोड़ दिया था! एक दुख-मिश्रित हंसी फूटती है...लेकिन चर्चा के केंद्र में मोदी हैं.
(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)