पाटलिपुत्र सीट की ओर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर इस सीट से लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती जीतती हैं या उनके 'चाचाओं' में से कोई एक. पेश है प्रदेश की सियासी लहर का जायजा लेती 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की 22वीं किस्त...
जैसी सूचनाएं मिल रही हैं, उस हिसाब से पाटलिपुत्र सीट लालू खानदान के पाले में जा सकती है. मीसा को यादवों-मुसलमानों के अधिकांश मत तो मिले ही हैं, अत्यंत पिछड़ी जातियों में कहारों, धानुकों और दलितों के वोट भी मिले हैं. इसका एक मतलब ये है कि जो जातियां नीतीश को हाल के सालों में वोट देने लगी थीं, वे नीतीश की पार्टी को इस चुनाव में मरणासन्न मानकर फिर से लालू की तरफ लौट आई हैं.
मूल रूप से ये कुछ जातियां मंडल परिवार की कट्टर वोटर हैं, जिन्हें बीजेपी किसी कीमत पर नहीं चाहिए. बिहार में ऐसे वोटरों की संख्या भी अच्छी-खासी है. दूसरी बात, लालू ने धानुक और गंगौत जैसी मंझली जातियों को भी टिकट दिया है, उसका राज्यव्यापी असर दिख रहा है. लेकिन अहम बात यह है कि ये सीट लालू की प्रतिष्ठा की सीट थी. लेकिन क्या हर सीट पर ऐसा हो पाएगा? वैसे भी लालू पिछली बार बहुत कम वोट से हारे थे. इस बार लड़ाई त्रिकोणीय है, तो रंजन यादव वैसे भी मैदान से बाहर हैं.
लालू ने बड़ी होशियारी से रणवीर सेना वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया के बेटे को भी खड़ा करवा दिया था. ऐसे में उसने अगर 10-15 हजार वोट भी काटा, तो रामकृपाल खेत हो जाएंगे. कुछ लोगों का कहना है कि लालू के जेल जाने से पिछड़ों में एक साइलेंट सहानुभूति भी थी, जिसका थोड़ा असर चुनाव पर पड़ा है. इतना तो तय है कि बिहार में मंडल परिवार का कट्टर वोटर लालू और नीतीश में से एक को ही मैदान में रहने देना चाहेगा. तो क्या नीतीश की हार में लालू की पुनर्वापसी छिपी है? ये कहना अभी जल्दबाजी है, क्योंकि उन्हीं पिछड़ों में एक तबका ऐसा है, जो यादवों को किसी कीमत पर सत्ता में पुनर्वापसी करते नहीं देखना चाहता. लेकिन मौजूदा रुझान अगर जारी रहा और जेडीयू इसी तरह हर सीट पर कमजोर होता रहा, तो लड़ाई में सिर्फ बीजेपी गठबंधन और आरजेडी गठबंधन बच जाएंगे.
दूसरी ओर, यह भी सच है कि अगर लालू के बढ़त की बात बड़े पैमाने पर फैली, तो लालू विरोधी सारी जातियां बीजेपी के इर्द-गिर्द जमा हो जाएंगी, जिससे जेडीयू की रही-सही उम्मीद भी खत्म हो जाएगी. फिलहाल लालू गठबंधन 15 के आसपास सीटें लेता तो दिख ही रहा है.
(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)