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राजनीतिक समीकरणों की पड़ताल: 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' पार्ट-8

बिहार के सियासतदान अभी से फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं, ताकि चुनावी दंगल में शिकस्‍त न खाना पड़े. हर तरह के समीकरणों पर गौर फरमाया जा रहा है कि कहां, कौन-सा मोहरा फिट होगा. पेश है चुनावी हालात का जायजा लेती 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की आठवीं किस्‍त...

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बिहार के सियासतदान अभी से फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं, ताकि चुनावी दंगल में शिकस्‍त न खाना पड़े. हर तरह के समीकरणों पर गौर फरमाया जा रहा है कि कहां, कौन-सा मोहरा फिट होगा. पेश है चुनावी हालात का जायजा लेती 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' की आठवीं किस्‍त...

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सीतामढ़ी से पिछली बार जेडीयू के अर्जुन राय जीते थे, जो कि शरद यादव के खास माने जाते हैं. लेकिन इस बार गुरु ही अधर में हैं, तो चेला का क्या होगा? औसत कद व ‘बाहरी’ होने (मुजफ्फरपुर) के बावजूद अर्जुन पिछली बार ‘लहर’ में जीत गए थे. लेकिन इस बार नीतीश को किसी मजबूत उम्मीदवार को उतारना होगा.

गठबंधन का आधार वोट लेकर बीजेपी चली गई है और यादवों का बड़ा हिस्सा आरजेडी में है. सीतामढ़ी से कई बार सांसद रह चुके नवल किशोर राय जेडीयू में आ चुके हैं और अपने ही दल के अर्जुन राय के सामने पहाड़ की तरह खड़े हो गए हैं. नवल का सीतामढ़ी और शिवहर, दोनों सीटों पर असर है.

उधर, आरजेडी से पूर्व सांसद सीताराम यादव, जिला परिषद अध्यक्ष इंद्राणी देवी और पूर्व विधायक जयनंदन यादव का नाम चल रहा है. बीजेपी से विधायक सुनील पिंटू, विधायक रामनरेश यादव और विधान पार्षद वैद्यनाथ प्रसाद ताल ठोक रहे हैं. लेकिन किसी भी कीमत पर इस सीट पर कब्जा जमाने के लिए बीजेपी किसी बाहरी व वजनदार उम्मीदवार पर भी दांव लगा सकती है. बीजेपी के लिए कुछ ज्यादा ही होड़ नेताओं में दिख रही है. जेडीयू और आरजेडी के लगभग तमाम सीटिंग व पूर्व सांसद बीजेपी की टिकट के तलबगार हैं.

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इधर नवल किशोर राय ने 14-17 फरवरी तक ‘कर्पूरी ठाकुर विचार केंद्र’ के बैनर तले शक्ति परीक्षण के लिए चार बड़ी रैलियों का ऐलान किया है, जो नीतीश कुमार पर दबाव बनाने और बीजेपी को आकर्षित करने का प्रयास है. सुशासन बाबू, परवीन अमानुल्लाह प्रकरण के बाद से वैसे भी सदमे में हैं. अगर उन्हें इस बार टिकट नहीं मिला, तो वे जेडीयू छोड़ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, ऐसी अफवाह है. उनकी सांसदी को गए 10 साल हो गए हैं.

सीतामढ़ी नया 'यादवलैंड' बनकर उभरा है. मधेपुरा से भी कई मायनों में मजबूत, क्योंकि परिसीमन के बाद मधेपुरा में ब्राह्मणों और राजपूतों की संख्या बढ़ गई है. सीतामढ़ी में इसके बाद भूमिहार-ब्राह्मण हैं और खासी तादाद में वैश्य समूह हैं. ऐसे में सीतामढ़ी में बीजेपी और आरजेडी, दोनों का दावा कमजोर नहीं है. हां, जेडीयू या बीजेपी ने अगर किसी मजबूत यादव नेता को उतार दिया, तो खेल रोचक हो सकता है.

(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों ‘बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन’ के नाम से ये सीरीज लिख रहे हैं.)

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