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सियासी यात्राओं के जरिए जमीन तलाश रहे नेता

लोकसभा चुनाव में भले ही अभी लगभग एक वर्ष की देरी है, लेकिन बिहार में सियासी यात्राओं और रैलियों का सिलसिला अभी से शुरू हो गया है.

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लोकसभा चुनाव में भले ही अभी लगभग एक वर्ष की देरी है, लेकिन बिहार में सियासी यात्राओं और रैलियों का सिलसिला अभी से शुरू हो गया है.

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बिहार के मुख्यमंत्री बिहार राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने को लेकर ‘अधिकार यात्रा’ कर रहे हैं तो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद पूरे राज्य में ‘परिवर्तन यात्रा’ कर एक बार फिर अपनी ‘खोई ताकत’ पाने में जुटे हैं तो लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष रामविलास पासवान भी ‘बिहार बचाओ यात्रा’ के जरिए अपनी राजनीतिक जमीन की तलाश कर रहे हैं.

पासवान अपनी यात्रा के दौरान 'नीतीश हटाओ, बिहार बचाओ' का नारा दे रहे हैं. पासवान का मानना है कि जब तक नीतीश सरकार बिहार में रहेगी, राज्य का विकास नहीं हो सकता. पासवान की यात्रा सभी 38 जिलों के दौरे के बाद 14 अप्रैल को भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर समाप्त होगी.

उधर, लालू भी परिवर्तन यात्रा पर हैं. राजद अध्यक्ष फिर से सत्ता पाने के लिए लोगों को गोलबंद करने में जुटे हैं. वे अपनी रैलियों में नीतीश की जमकर आलोचना कर रहे हैं. वे अपनी यात्रा के दौरान आमसभाओं में नियोजित शिक्षकों और अनुबंध पर कार्यरत चिकित्सकों, शिक्षकों सहित अन्य कर्मचारियों को अपने पक्ष में करने में जुटे हैं. अपनी सभाओं में वे सभी नियोजित लोगों को स्थायी करने का आश्वासन देते हुए नीतीश सरकार पर हमला कर रहे हैं.

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इस यात्रा के दौरान लालू अपनी पुरानी गलतियों के लिए लोगों से माफी भी मांग रहे हैं. अपनी यात्रा के दौरान पूर्णिया में एक जनसभा को संबोधित करते हुए लालू ने कहा, ‘मेरे शासनकाल में जरूर कुछ गलतियां हुई हैं, परंतु उसे माफ कर एक मौका अवश्य दें, फिर वैसी गलतियां नहीं होंगी.’

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यात्रा कोई नई बात नहीं है. वे सरकार में रहें या न रहें, हमेशा सियासी यात्राओं का सहारा लेते रहे हैं. वर्तमान समय में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा लेने को पूरे बिहारियों का अपना अधिकार बताते हुए अधिकार यात्रा पर हैं.

विशेष राज्य के दर्जा की मांग को लेकर पिछले वर्ष 19 सितंबर से शुरू हुई उनकी अधिकार यात्रा 17 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली के साथ पूरी होगी. अधिकार यात्रा के दौरान हालांकि नीतीश को कई स्थानों पर विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन पटना में चार नवंबर 2012 को अधिकार रैली के तहत गांधी मैदान में जुटी भीड़ ने जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) को जरूर उत्साहित किया है.

मुख्यमंत्री भी कहते हैं कि जद-यू की इस मुहिम का मकसद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जनसमर्थन बढ़ाना है. इस क्रम में बिहार में सतारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के दूसरे घटक दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी अप्रैल में पटना में हुंकार रैली करने की घोषणा कर चुकी है.

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इस क्रम में जद-यू से अलग हुए तथा राज्यसभा की सदस्यताा से इस्तीफा देकर नवनिर्माण मोर्चा का गठन करने वाले उपेंद्र कुशवाहा भी राज्य के सभी जिलों की यात्रा कर रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि यात्राओं के मामले में नीतीश अन्य नेताओं से आगे हैं. नीतीश ने पहली यात्रा 'न्याय यात्रा' के रूप में वर्ष 2005 में की थी जब बिहार के तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग कर राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की थी. इसके बाद समय-समय पर नीतीश ने विकास यात्रा, धन्यवाद यात्रा, सेवा यात्रा, प्रवास यात्रा सहित कई यात्रा कर चुके हैं.

बहरहाल, बिहार की राजनीति में सियासी यात्राओं का दौर जारी है. यह देखना शेष है कि इन यात्राओं से लोगों के दिलों में नेता कितनी जगह बनाने में कामयाब होते हैं.

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