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बिहार: दागियों को बनाया उम्मीदवार तो पार्टियों को चुनाव आयोग में बताना होगा कारण

बिहार में चुनाव आयोग दागी उम्मीदवारों पर सख्त नजर आ रहा है. चुनाव आयोग ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कोई भी दल अगर किसी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाता है, जिसके खिलाफ अपराधिक मामला लंबित है तो उसको बताना पड़ेगा कि आखिर उसे उम्मीदवार क्यों चुना गया.

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भारत निर्वाचन आयोग (फाइल फोटो)
भारत निर्वाचन आयोग (फाइल फोटो)

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  • दागी उम्मीदवारों पर चुनाव आयोग हुआ सख्त
  • चुनाव आयोग को बताना होगा पर्याप्त कारण
  • दागी उम्मीदवारों को क्यों उतार रही पार्टी
बिहार विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग एक ऐसी व्यवस्था पहली बार लागू कर रहा है जो बिहार के लिए बेहद उपयोगी है. इस व्यवस्था के लिए बिलकुल उपयुक्त राज्य है. राजनीति में अपराधीकरण का लम्बा इतिहास रहा है. इस बार के चुनाव में कोई राजनैतिक दल अगर किसी बाहुबली या फिर लंबित मुकदमों वाले अपराधी को अगर उम्मीदवार बनाता है तो उसे बताना होगा कि आखिर वो उन्हे क्यों उम्मीदवार बना रहे हैं.

यही नहीं राजनैतिक दलों को अखबारों में यह सूचना प्रकाशित करनी होगी. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर यह प्रावधान लागू किया है.

बिहार में 70 के दशक के बाद से राजनीति में अपराधियों का बोलबाला हो गया था. जिस पर हत्या, अपहरण और फिरौती के जितने केस लंबित हों वो राजनैतिक दलों की नजर में उतना ही सक्ष्म उम्मीदवार होता था. ऐसे उम्मीदवार अपनी रॉबिनहुड की छवि बनाकर चुनाव जीतते भी रहे हैं.

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हांलाकि पहले दल के उम्मीदवार इन अपराधियों से बूथ लूटने का काम करवाते थे लेकिन बाद में अपराधियों को लगा कि जब वो दूसरे को बूथ लूट कर जिता सकते हैं तो फिर खुद के लिए क्यों न बूथ लूटें और जीतें. उस जमाने में अपराधियों के लिए राजनैतिक दलों के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे. इनके जीतने की संभावना ज्यादा रहती थी.

2000 में विधानसभा पहुंचे थे दागी प्रत्याशी

2000 के विधानसभा चुनाव में तो भारी संख्या में हत्या और अपहरण के आरोपी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. उसके बाद बिहार में कानून व्यवस्था एक मुद्दा बनने लगा, जिसका फायदा बीजेपी और जेडीयू ने उठाया और 2005 में उनकी सरकार बनी.

लेकिन इसके बावजूद राजनीति के अपराधीकरण में कोई कमी तो नहीं आई लेकिन पहले जिस तरह बाहुबली खुलेआम अपने बाहुबल का प्रयोग करते थे वो अब ढंक-छिपकर करने लगे. बिहार में आरजेडी पर बाहुबलियों और लंबित आपराधिक मुकदमे वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का आरोप लगता था.

इस दौड़ में बीजेपी और जेडीयू भी पीछे नहीं रही. अगर राजनीति में अपराधीकरण की बात करें तो कोई दल एक-दूसरे से कम नहीं है. हांलाकि पहले की अपेक्षा अब अपराधियों का राजनीति में घुसना आसान नहीं है.

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150 दलों को चुनाव आयोग ने लिखी चिट्ठी

चुनाव आयोग ने इस बारे में बिहार के 150 रजिस्टर्ड दलों को चिठ्ठी लिखी, जिनका मुख्यालय पटना में है. राष्ट्रीय स्तर पर 2543 मान्यता प्राप्त दलों को भी पत्र भेजा गया है. पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कोई भी दल अगर किसी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाता है जिसके खिलाफ अपराधिक मामला लंबित है तो उसको बताना पडे़गा कि आखिर उसे उम्मीदवार क्यों चुना गया.

उदाहरण के लिए किसी शूटर को अगर कोई राजनीतिक दल टिकट देता है तो उसे बताना पडेगा कि ऐसे प्रत्याशी में क्या खूबी है. पार्टियों को यथोचित कारण देना होगा. ये तो नहीं लिख सकते हैं कि इनका निशाना अचूक है.

अखबार में छपवानी होगी जानकारी

यही नहीं, उम्मीदवार चुने जाने के 48 घंटे के अंदर फार्मेट सी-7 में उन्हें समाचार पत्र में छपवाना होगा कि टिकट क्यों दिया है. 72 घंटे के अंदर चुनाव आयोग को सी-8 के तहत जानकारी देनी होगी और अगर कोई दल इन प्रावधानों की अवहेलना करता है तो सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मुकदमा चलाया जा सकता है.

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चुनाव आयोग के इस प्रयोग से केवल साफ-सुथरी छवि वाले नेता ही चुनाव लड़ पाएंगे, ऐसी उम्मीद लगाई जा सकती है. हांलाकि राजनैतिक दल इसकी भी कोई न कोई काट ढूंढने की कोशिश जरूर करेंगे. ऐसी भी आशंका है.

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निर्दलीय उम्मीदवार पर स्पष्टता नहीं

निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अगर कोई अपराधी चुनाव लडता है तो उसके बारे में क्या प्रावधान है यह स्पष्ट नही हैं. हालांकि बिहार चुनाव कोरोना के इस संक्रमण काल में हो रहा है. अक्टूबर और नवंबर में होने वाले इस चुनाव को लेकर चुनाव आयोग में जोर-शोर से तैयारी शुरू है.

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