बिहार में प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट उज्ज्वला योजना को झटका लग रहा है. सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत सप्लाई को कम समय में सुनिश्चित करने के लिए नए गैस एजेंसियों को वितरण का अधिकार दिया है, ताकि उज्ज्वला योजना भी सफल हो, साथ ही शिक्षित बेरोजारों को रोजगार मिले, लेकिन बिहार में ठीक इसके उल्ट हो रहा है. नए-नए बने एलपीजी गैस के वितरक भुखमरी का शिकार हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए एलपीजी गैस एजेंसी देने की योजना पुराने गैस एजेंसियों की मोनोपॉली और गैस आपूर्ति कंपनियों के अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से दम तोड़ रहा है. बिहार में 672 नए गैस वितरक भुखमरी के शिकार हो रहे हैं, लेकिन पेट्रोलियम मंत्रालय से मिल रहे बार-बार निर्देश के बावजूद यहां के अधिकारी कान में तेल डालकर बैठे हैं.
पिछले आठ महीने से इन एजेंसियों को गैस वितरण का अधिकार मिला है, लेकिन इनके पास एक भी ग्राहक नहीं हैं ऐसे में वो गैस किसको दें. गैस एजेंसी लेने में इन्हें 40 लाख रुपये सिक्योरिटी के रूप में देने पड़े हैं. इसके अलावा गैस गोदाम का खर्च और स्टाफ का खर्च इन्हें अपने घर से देना पड़ा है, जबकि बिहार में लगभग 400 पुराने गैस वितरक है, उनके पास 40 से 50 हजार तक कंज्यूमर हैं. नियम के मुताबिक, एक एजेंसी के पास शहर में 8800 और ग्रामीण इलाकों में 5000 से ज्यादा कंज्यूमर नहीं होने चाहिए. इन्हीं पुराने गैस वितरकों के कंज्यूमर को नए वितरकों में ट्रांसफर करना था, लेकिन पेट्रोलियम कंपनियों के अधिकारियों और पुराने गैस वितरकों के बीच मिली भगत की वजह से यह अब तक संभव नहीं हो पा रहा है.
मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस ने 22 मई 2019 को यह स्पष्ट निर्देश जारी कर उपभोक्ताओं को नए गैस एजेंसी में ट्रांसफर करने का निर्देश दिया था, लेकिन इस दिशा में बिहार में कोई काम नहीं हो रहा है. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबकि बिहार में 92 किलोमीटर तक दूर जाकर गैस एजेंसियां आपूर्ति कर रही हैं, जो नियम के बिल्कुल खिलाफ और आपूर्ति में भी उपभोक्ताओं को काफी देरी होती है. इन व्यवस्थाओं के खिलाफ सभी नए एलपीजी वितरकों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखने का फैसला किया है. इनका कहना है कि और राज्यों में व्यवस्था ठीक कर ली गई है, लेकिन बिहार में यह अभी तक संभव नहीं हो पा रहा है, इस वजह से ये घोर आर्थिक संकट में फंसते जा रहे हैं.