रघुवंश प्रसाद सिंह की अंतिम यात्रा में उनके पार्थिव शरीर को वैशाली लाया गया. वैशाली से रघुवंश बाबू का काफी लगाव रहा. 1973 से अपनी राजनीति शुरू करने के बाद बाद वे 1996 से वैशाली से लोकसभा का चुनाव जीते इसके बाद वे लगातार यहां से जुड़े रहे.
रघुवंश बाबू ने अपने अंतिम समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर कुछ मांग रखी थी.
रघुवंश बाबू चाहते थे कि भारत सरकार अफगानिस्तान से भगवान बुद्ध का भिक्षापात्र वापस लाकर वैशाली में स्थापित करे. बता दें कि मान्यता है कि प्राचीन काल में वैशाली में भगवान बुद्ध ने अपना काफी समय व्यतीत किया था.
रघुवंश बाबू चाहते थे कि अविभाजित बिहार में जिस तरह परम्परा थी कि 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पटना में और राजयपाल रांची में और 26 जनवरी को मुख्यमंत्री रांची में और राजयपाल पटना में तिरंगा फहराते थे. उसी तर्ज पर वैशाली को रांची के जैसा स्थान दिया जाए. वे चाहते थे कि 26 जनवरी को मुख्यमंत्री वैशाली में झंडा फहराएं.
रघुवंश प्रसाद सिंह का तर्क था की वैशाली विश्व का प्रथम गणतंत्र है और इसे सही मायने में तभी सम्मान तभी मिल पाएगा जब मुख्यमंत्री और राजयपाल द्वारा राष्ट्रीय पर्वों पर वैशाली को याद किया जाएगा.
रघुवंश बाबू ने अपने अंतिम समय में एक पत्र अपनी पार्टी को भी लिखा था, इस पत्र में उन्होंने राजनीति में धनबल और परिवारवाद और जातिवाद के हावी होने पर दुख जताया है. रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने अंतिम पत्र में जिक्र किया है कि पार्टी और संगठन को मजबूत करने के लिए उन्होंने लगातार आवाज उठाई लेकिन उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया गया.