बिहार के वैशाली जिले के शाहपुर में 6 जून 1946 को जन्मे रघुवंश प्रसाद सिंह का रविवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया. रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही कई हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है. वैशाली के एक छोटे से गांव से निकलकर बिहार और देश की सियासत में अपनी खास पहचान बना लेने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह का 'रघुवंश बाबू' तक का सफर आसान नहीं रहा.
गणित में पीएचडी की उपाधि लेने के बाद सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में लेक्चरर रहते रघुवंश प्रसाद सिंह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में कूद पड़े. तीन महीने जेल की सलाखों के पीछे बिताए और जब साल 1977 में आपातकाल हटने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में रघुवंश को न सिर्फ सीतामढ़ी की बेलसंड सीट से टिकट मिला, बल्कि चुनावी जीत भी दर्ज की. मुख्यमंत्री पद के लिए कर्पूरी ठाकुर का समर्थन किया.
पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मंत्री भी बने और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1985 तक रघुवंश बाबू ने सीतामढ़ी की बेलसंड सीट का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया. लालू से नजदीकियां बढ़ीं और साल 1988 में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद विधान परिषद से बुला लालू ने फिर से मंत्री बना दिया. 1996 में लालू यादव के कहने पर वैशाली सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा और एचडी देवगौड़ा की सरकार में आरजेडी कोटे से राज्यमंत्री बने. आईके गुजराल की सरकार में भी मंत्री रहे.
साल 1999 से 2004 तक संसद में सरकार को घेरने वाले नेता के तौर पर पहचान बनी और रघुवंश प्रसाद सिंह 2004 से 2009 तक डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे. मनरेगा को सफलता पूर्वक लागू कराने का श्रेय भी रघुवंश बाबू को ही जाता है.