राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह का रविवार को निधन हो गया. रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे, जिन्होंने पार्टी की बुनियाद रखने से लेकर लालू यादव को बुलंदियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. रघुवंश प्रसाद सिंह को अपने चार दशक के राजनीतिक सफर में राष्ट्रीय पहचान 1999 में लालू यादव के लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद मिली थी. संसद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान रघुवंश प्रसाद सिंह को 'वन मैन ऑपोजिशन' कहा जाता था.
बता दें कि रघुवंश प्रसाद सिंह और लालू यादव ने अपना सियासी सफर एक साथ और एक ही राजनीतिक विचारधारा के साथ किया था. लोकदल में रहते हुए दोनों समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के बेहद करीबियों में गिने जाते थे. कर्पूरी ठाकुर के निधन बाद रघुवंश ही लालू यादव को बिहार की राजनीति में आगे बढ़ाने में सबसे बड़े सारथी रहे.
नहीं छोड़ी दलित-पिछड़ों की राजनीति
तमाम विकट परिस्थितियों के बावजूद रघुवंश प्रसाद सिंह ने न तो दलित-पिछड़ों की राजनीति करनी छोड़ी और न ही लालू यादव का साथ छोड़कर किसी दूसरे दल के साथ गए. लालू जब 1999 में चुनाव हार गए तो सदन में उनकी कमी को भी महसूस नहीं होने दिया और अटल सरकार को घेरने वाले सबसे प्रखर आवाज बने थे.
रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 में केंद्र की राजनीति में आ चुके थे, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1999 से 2004 के बीच.1999 के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट से शरद यादव और लालू प्रसाद यादव आमने-सामने थे. यह चुनाव भले ही लालू यादव के लिए बेहतर न रहा हो, लेकिन रघुवंश प्रसाद की राष्ट्रीय राजनीति के लिए अहम साबित हुआ था. बिहार की सबसे चर्चित मधेपुरा सीट से शरद जीतने में कामयाब रहे थे. 1999 में जब लालू यादव चुनाव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को आरजेडी का संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया.
9 मुद्दों पर रखी थी राय
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी.1999 से 2004 के बीच रघुवंश प्रसाद संसद के सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक थे. उन्होंने एक दिन में कम से कम 4 और अधिकतम 9 मुद्दों पर अपनी पार्टी की राय रखी थी. यह एक किस्म का अपने आप में रिकॉर्ड बन गया था. उस दौर में वाजपेयी सरकार को घेरने में रघुवंश प्रसाद सिंह सबसे आगे नजर आते थे. इस तरह से उन्होंने केंद्रीय राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बनाई थी.
1999 के चुनाव के कुछ दिनों के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह विपक्ष की बेंच पर बैठे थे. बीजेपी नेता अरुण जेटली ने संसद की कार्यवाही में जाते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह को रोक लिया. जेटली मुस्कुराते हुए बोले, 'तो कैसा चल रहा है वन मैन ऑपोजिशन?' रघुवंश प्रसाद सिंह को यह बात समझ में नहीं आई. अरुण जेटली ने उस दिन का एक अंग्रेजी अखबार उनकी ओर खिसका दिया. अखबार में चार कॉलम में रघुवंश प्रसाद की प्रोफाइल छपी थी, जिसका शीर्षक था, 'वन मैन ऑपोजिशन.'
मनरेगा के जनक
हालांकि, रघुवंश प्रसाद बिहार की राजनीति करते थे और लालू प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय थे. रघुवंश प्रसाद सिंह पहली बार 1996 के लोकसभा चुनाव में बिहार के वैशाली से लालू यादव के कहने पर चुनाव लड़कर संसद पहुंचे. देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने. रघुवंश बिहार कोटे से केंद्रीय राज्य मंत्री बने. पशु पालन और डेयरी महकमे के स्वतंत्र प्रभार की जिम्मेदारी मिली. अप्रैल 1997 में देवगौड़ा को एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी.
1997 में इंद्र कुमार गुजराल नए प्रधानमंत्री बने और रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता के कैबिनेट मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद 1998 से लेकर लगातार 2009 तक जीतते रहे. विपक्ष में रहते हुए वह प्रखर आवाज थे और यूपीए-1 में पंचायती राज मंत्री बने. इस दौरान उन्होंने मनरेगा जैसी योजना को अमलीजामा पहनाने का काम किया, जिसके दम पर यूपीए दूसरी बार सत्ता में आने में सफल रही थी.
कांग्रेस रघुवंश प्रसाद को पार्टी में लेना चाहती थी
2009 में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आरजेडी ने कांग्रेस को बाहर से समर्थन दिया. हालांकि, मनमोहन सिंह रघुवंश प्रसाद सिंह को फिर से ग्रामीण विकास मंत्रालय देने के लिए अड़े हुए थे. लेकिन आरजेडी ने सरकार में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था. ऐसे में रघुवंश के सामने कांग्रेस जॉइन करने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन रघुवंश बाबू ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था और लालू यादव के साथ ही रहना पसंद किया. लेकिन जब आरजेडी में बाहुबली रमा सिंह की एंट्री हुई तो रघुवंश प्रसाद ने नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. लालू उन्हें मना पाते उससे पहले ही रघुवंश प्रसाद सिंह दुनिया को अलविदा कह गए.