कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर महत्वपूर्ण समय में अपने कार्यकर्ताओं को अकेला छोड़ विदेश रवाना हो गए हैं. उन्होंने ट्वीट पर कहा, 'नार्वे के विदेश मंत्रालय के आमंत्रण पर कुछ दिन के लिए ओस्लो के दौरे पर जा रहा हूं.' वहीं अभी कुछ ही दिन पहले भी राहुल मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन का बिगुल फूंककर रवाना हो गए थे. तब भी पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए असहज स्थिति हो गयी थी. उसी समय एक बड़ा सियासी बदलाव आया था, जिस नीतीश को राहुल विपक्ष के प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने का दांव खेल सकते थे, वो ही विपक्ष को छोड़ बीजेपी के साथ हो गए थे. शायद ये राहुल की बड़ी विफलता थी, जो हमेशा लालू के बजाय नीतीश को प्राथमिकता देते रहे. वहीं अब एक बार फिर लालू यादव की विपक्ष को एकजुट करने के लिए बुलाई गई 'देश बचाओ भाजपा भगाओ' रैली में शामिल न होकर राहुल विदेश दौरे पर निकल गए हैं.
पहले दिखाई दिलचस्पी, फिर पिछे हटे
इस पूरे घटनाक्रम में विपक्ष के लिए एक ही राहत की बात रही कि जेडीयू के बड़े नेता शरद यादव विपक्ष के साथ ही खड़े रहे. इसी को राहत की सांस मानकर राहुल ने गुपचुप तरीके से शरद यादव से मुलाकात भी की और बाद में नीतीश, जेटली की कोशिशों के बावजूद शरद नहीं डिगे. इसके बाद शरद ने मोर्चा खोलते हुए सांझी विरासत के नाम से मोदी सरकार को निशाने पर लेने के सम्मेलन बुलाया. तमाम विपक्षी नेताओं के साथ मजबूती दिखाने के लिए खुद राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ पहुंचे. भाषण में राहुल ने कहा कि अगर हम सब मिलकर संघ और बीजेपी का मुकाबला करें तो वो कहीं नहीं टिकेंगे. सभी खुश थे कि विपक्षी एकता का आगाज हो गया. ऐसे में सभी को उम्मीद थी कि सांझी विरासत कार्यक्रम में विपक्षी एकता की बात करने वाले राहुल भी रविवार को पटना जाएंगे. हालांकि सोनिया ने लालू से बात करके बता दिया कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं और राहुल देश में नहीं हैं. इसलिए विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आजाद और बिहार के प्रभारी सीपी जोशी रैली में कांग्रेस की तरफ से शामिल होंगे.
कार्यकर्ता कैसे दें जवाब
शरद के सम्मेलन से लालू की रैली तक कांग्रेस के भीतर काफी कुछ हुआ. पहले तो कार्यकर्ता सोच रहे थे कि राहुल साफ छवि बनाने के लिए हमेशा से लालू से दूरी बनाते आये हैं. राहुल ने जो अध्यादेश फाड़ा था, उसी के चलते आजतक लालू चुनाव नहीं लड़ सकते. लेकिन इसी बीच राहुल ने खुद ट्वीट कर बताया कि वो नार्वे सरकार के बुलावे पर कुछ दिनों के लिए ओस्लो जा रहे हैं. फिर क्या था, राहुल के लालू की रैली में शामिल नहीं होने की दलीलें दे रहे कार्यकर्ता मायूस हो गए. अब रविवार की लालू की रैली के दिन कार्यकर्ताओं की मुश्किल होगी कि उनको बताना होगा कि राहुल फिर विदेश में हैं. राहुल इस बार राजनैतिक कारणों से नार्वे गए हैं, लेकिन पिछले कई मौकों पर राहुल की विदेश जाने की टाइमिंग विरोधियों के निशाने पर रही है. ऐसे में एक बार फिर विपक्षी एकता की रैली से ठीक पहले राहुल का विदेश जाना कार्यकताओं का जोश घटा रहा है. यही कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए परेशानी का सबब है, लेकिन बात पार्टी के प्रमुख की है तो खुलकर बोले कौन?
माया ने भी दिया झटका
शरद के कार्यक्रम में ममता, अखिलेश ने अपने प्रतिनिधि भेजे तो मायावती ने अपने करीबी सतीश मिश्र की जगह अनजान चेहरे वीर सिंह को भेजा. येचूरी, राजा जैसे लेफ्ट के चेहरे जरूर मौजूद थे. वहीं लालू की प्रस्तावित भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली में शरद यादव, ममता और अखिलेश शिरकत करने वाले हैं, लेकिन मायावती ने ये कहकर झटका दिया कि पहले चुनावी सीटों का बंटवारा हो, फिर वो गठबंधन का हिस्सा बनेंगी और किसी साझा रैली का हिस्सा होंगी।