छुट्टी के लौटने के बाद राहुल गांधी ने दमदार वापसी की है और मजबूत इरादों वाले नेता के तौर पर उभरे हैं. लेकिन बिहार में राहुल और कांग्रेस भंवरजाल में हैं. यहां अक्तूबर में चुनाव होने हैं और राहुल, लालू यादव तथा नीतीश कुमार को लेकर कश्मकश में हैं. अगर लालू और नीतीश का गठबंधन नहीं होता है तो कांग्रेस दोनों में से किसके साथ जाएगी, इस सवाल से राहुल जूझ रह हैं.
उनके पास तीसरा विकल्प है कि क्या लांग टर्म वापसी के लिए अकेले चुनाव लड़ा जाए. राहुल असमंजस में हैं क्योंकि एक ओर पार्टी कार्यकर्ता, खासकर युवा चाहते हैं कि कांग्रेस लांग टर्म वापसी के लिए अकेली लड़े. इनका कहना है कि लगातार गठबंधन में रहने की वजह से कांग्रेस को घाटा हुआ है.
दूसरी ओर राज्य के पार्टी नेता लालू-नीतीश की पीठ पर सवार होकर अपनी-अपनी सीट जीतने की उम्मीद में गठबंधन करना चाहते हैं. इनका कहना है कि बिहार में बीजेपी की हार से देशभर में विपक्ष की वापसी होगी और मोदी का राष्ट्रीय लहर खत्म होगा. और ऐसा तभी संभव है जब कांग्रेस सेकुलर पार्टियों के साथ बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन करती है. इसके अलावा कांग्रेस का चुनावी इतिहास भी बुरा है. पिछले 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में वह 243 सीटों में सिर्फ चार सीटें जीत पाई थी.
पिछले मौकों की तरह लोकसभा चुनावों में भी सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने नीतीश की बजाए लालू को चुना था. इसके बावजूद राहुल गांधी ने उस वक्त नीतीश पर ज्यादा भरोसा दिखाया था. राहुल की पसंद माने जाने वाले बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने खुले तौर पर नीतीश को राज्य में सेकुलर गठबंधन का नेतृत्व सौंपे जाने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन व्यक्तिगत रूप से राज्य कांग्रेस के नेता अभी भी लालू को ज्यादा भरोसेमंद मानते हैं और चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू से समझौता करना भी आसान होगा.
कांग्रेस नेताओं की हिचकिचाहट का पहला नमूना यह है कि राहुल गांधी ने इस महीने का अपना बिहार दौरा कथित तौर पर रद्द कर दिया. जनता परिवार पार्टियों के महागठबंधन की तस्वीर साफ होने के बाद ही वे प्रदेश का दौरा करेंगे.