बिहार में एनडीए के सीट बंटवारे का रविवार को एलान हो गया. तय फॉर्मूले के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) 6 सीटों पर. सीट शेयरिंग के फॉर्मूले से इस बात की चर्चा है कि क्या रामविलास पासवान और उनकी पार्टी असली अपनी बात मनवाने में कामयाब रही है? क्योंकि लोकसभा सीटों के साथ रामविलास पासवान को राज्यसभा के अगले चुनाव में एनडीए से उम्मीदवार बनाने की भी डील हुई है.
इससे पहले रविवार दोपहर सीएम नीतीश कुमार दिल्ली में अमित शाह के आवास पर पहुंचे. लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान भी बैठक में हाजिर रहे. बिहार में बीजेपी 18, जेडीयू 17 और एलजेपी के 5 सीटों पर लड़ने की खबर थी और राज्यसभा की एक सीट भी एलजेपी को देने का फॉर्मूला तय था. अमित शाह ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसी बात पर मुहर लगा दी.
गौरतलब है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पहले ही ऐलान कर चुके थे कि बीजेपी और जेडीयू बिहार में बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए ने लोकसभा की 31 सीटें जीती थीं. पिछले चुनाव में बीजेपी ने 30 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें 22 पर जीत मिली थी, जबकि रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा ने 6 सीटें जीती थीं और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) को तीन सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि इस बार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी एनडीए का हिस्सा नहीं है क्योंकि उन्होंने सीट शेयरिंग पर अपनी नाराजगी जाहिर की थी और संतोषजनक सीटें न मिलने की आशंका में गठबंधन छोड़ दिया था.
सियासी जानकारों की मानें तो बीजेपी ने लोजपा को 6 सीटें और एक राज्यसभा की उम्मीदवारी देकर यह संकेत दिया है कि वह किसी भी हालत में लोजपा को नाराज नहीं करना चाहती. उपेंद्र कुशवाहा की तरह अगर रामविलास पासवान भी बिदक जाते तो देश में इसका खराब संकेत जाता. इससे अन्य राज्यों में भी एनडीए में बिखराव की आशंका बढ़ जाती. साथ ही, बिहार में पासवान एनडीए के अकेले दलित चेहरे हैं, जिन पर गठबंधन दांव लगाना चाहता है. इसको ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने बड़ी कुर्बानी देते हुए महज 17 सीटों पर ही समझौता कर लिया.
पासवान ने सीटों के बंटवारे पर अपनी बात मनवाई है तो इसके पीछे उनके बेटे चिराग पासवान का भी बड़ा रोल है. एनडीए में बिखराव की खबरों के बीच एलजेपी नेता चिराग पासवान ने ट्वीट कर कहा था कि टीडीपी और आरएलएसपी के एनडीए से अलग होने के बाद गठबंधन नाजुक दौर से गुजर रहा है. इसलिए बीजेपी गठबंधन की पार्टियों की चिंताओं को समय रहते दूर करे. साथ ही बिहार में विपक्ष मजबूत हो रहा है. कांग्रेस और आरजेडी कई छोटी पार्टियों को लामबंद कर रही हैं जिसका असर आगामी आम चुनाव पर पड़ सकता है.
पासवान की पार्टी बिहार में कई सीटों के दलित वोट बैंक पर अपना दबदबा रखती है जिसे बीजेपी किसी हालत में गंवाना नहीं चाहती. लोकसभा में लोजपा के छह सांसद हैं, जबकि बिहार विधानसभा में दो विधायक है. हालांकि राज्यसभा में इस पार्टी का कोई सांसद नहीं है जिसे पासवान इस बार पूरा करने की तैयारी में हैं. पासवान का लगभग पूरा परिवार सांसद है. उन संसदीय क्षेत्रों में दलित वोट बैंक का आधार देखते हुए बीजेपी एनडीए को खतरे में नहीं डालना चाहती क्योंकि 2019 के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए एक एक सीट पर लड़ाई अहम होगी.
रामविलास पासवान को राज्यसभा भेजे जाने के पीछे की तैयारी ये है कि वे अपनी खराब सेहत के चलते चुनाव लड़ना नहीं चाहते. इसकी बजाय वे राज्यसभा जाना चाहते हैं. दूसरी ओर कहा यह जा रहा था कि आरएलएसपी के एनडीए में रहते लोजपा सात सीटों से कम पर राजी नहीं थी, जबकि बीजेपी इतनी सीटें देने को तैयार नहीं थी. तीन राज्यों में हार के बाद बीजेपी बैकफुट पर है. उधर चिराग पासवान के ट्वीट ने भी बीजेपी हाईकमान को साफ संदेश दे दिया कि अगर उन्हें मनमुताबिक सीटें न मिलीं तो वे भी टीडीपी और आरएलएसपी की तरह चुनाव से ठीक पहले अपनी राह अलग कर सकते हैं. इन सब मुद्दों को देखते हुए सीट शेयरिंग में बीजेपी ने अपने गठबंधन सहयोगियों का पूरा ख्याल रखा और उन्हें मनचाही सीटें दीं.