एक तरफ जहां लालू प्रसाद यादव की सजा को लेकर चर्चा हो रही है. तो दुसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के राष्ट्रीय उपध्यक्ष शिवानंद तिवारी न्यायपालिका में आरक्षण का मुद्दा उठाने में लगे है. उनका कहना है कि उंच न्यायपालिका में आरक्षण होना चाहिए.
शिवानंद तिवारी का कहना हैं कि हम लोगों ने एक सैद्धांतिक सवाल उठाया है, जो हायर जुडिशल है उसमें आरक्षण होना चाहिए. क्योंकि राष्ट्रपति ने भी कहा था कि समाज के हर तबके का चेहरा हायर जुडिशियरी में दिखाई नहीं दे रहा है. जो हमारे लिए चिंता की बात है. इसके पहले भी केआर नारायणन भी इस विषय को उठा चुके हैं.
जब करिया मुंडा भारतीय जनता पार्टी से लोकसभा के सदस्य थे तो उनकी अध्यक्षता में जस्टिस डिपार्टमेंट की एक कमेटी बनी थी. इसी बात पर विचार करने के लिए कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए या नहीं. वर्ष 2000 के मार्च महीने में जो रिपोर्ट लोकसभा और राज्यसभा को समर्पित की गई उस रिपोर्ट की कॉपी मेरे पास है.
शिवानंद तिवारी ने कहा कि उनका मानना है कि दलित आदिवासी और पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए. हम इस मामले में काम भी कर रहे हैं.
इस पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक सवाल लोगों के दिमाग में आ रहा है कि चारा घोटाला मामले में लालू यादव को ऑलरेडी 5 साल की सजा हो चुकी है .चुनाव लड़ने से भी वंचित कर दिया गया है. अब फिर वही मामले में आज सजा का ऐलान होने वाला है. कल फिर दूसरे का होगा, परसों तीसरे का होगा यह बिल्कुल संविधान विरोधी बात है.
संविधान की धारा 20 (2) कहता है कि किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए तो दंड नहीं मिल सकता. इस मामले में संविधान का प्रोटेक्शन है. इसी आधार पर रांची हाईकोर्ट ने जजमेंट दिया था. लार्जर कॉन्सपिरेसी का जितना भी केस है, लालू यादव और अन्य अभियुक्तों के ऊपर उनको एक माना जाए और इसके आधार पर उनको सजा मिल चुकी है.
उसके बाद इसमें आगे कोई दंड का प्रावधान नहीं बनता. लेकिन अब यह मामला कोर्ट में गया है. वहां जज ने कहा है कि सुनवाई अलग-अलग ही होगी.
ऐन जजमेंट के अवसर पर शिवानंद तिवारी का न्यायपालिका में आरक्षण का मुद्दा उठाने पर जनता दल ने कहा है कि ये आरजेडी के विभीषण है.
इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि यह तो लालू यादव तय करेंगे. ना कि नीतीश कुमार या सुशील मोदी. लालू यादव को हमारे ऊपर विश्वास है. अब कोई क्या बोलता है उससे क्या फर्क पड़ता है. वैसे भी हमारे बोलने या ना बोलने से फैसले पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. कोर्ट को जितना दंड देना होगा वह देंगे.
शिवानंद तिवारी ने कहा कि हमने एक बड़ा सैद्धांतिक सवाल उठाया है. और इसे लेकर हम जनता के बीच में जाएंगे. दलित समाज के लोगों के मन में निश्चित रूप से यह सवाल उठा है. उनको नहीं पता है कि जगन्नाथ मिश्रा और लालू यादव का जो मामला है उसमें तकनीकी फर्क क्या है.
लोग सिर्फ यह जानते हैं कि दोनों एक ही मामले में अभियुक्त है. और एक आदमी की रिहाई हो गई और दूसरा जेल में है. जो दलित समाज के लोग हैं वह सदियों से यह खेल देख रहे हैं.
शिवानंद तिवारी ने आगे कहा कि अब आप उनको टेक्निकल समझाइए कि लालू मुख्यमंत्री थे और जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री नहीं थे. हमलोग इस सवाल को जनता के बीच लेकर जाएंगे. जो हमको भस्मासुर बोल रहें है उनके पास भी मौका है. जो लड़ाई 1990 में शुरू हुई थी वह अधूरी रह गई थी जिसे लेकर अब हम जनता के बीच में जाएंगे.